नोटिस भेजकर किसान आंदोलन को दबाना चाह रही है योगी सरकार?
किसान आंदोलन में भाग लेने की आशंका के नाम पर उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में कई किसानों और किसान नेताओं को नोटिस भेज कर उन्हें लाखों रुपये की जमानतें देने की बात कही गई है.
पंजाब-हरियाणा से शुरू हुआ किसान आंदोलन पूरे देश में फैल गया है. बीजेपी के शासन वाले राज्य इसे रोकने में जुटे हुए हैं. दिल्ली आ रहे किसानों को रोकने के लिए हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार ने क्या-क्या किया, इसे सबने देखा. वहीं किसानों को आंदोलन में शामिल होने से रोकने के लिए उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार एक अलग ही रास्ता अपना रही है. वह किसानों और किसान नेताओं को नोटिस भेजकर उन्हें पाबंद कर रही है. कानून के जानकार इन नोटिसों को विरोध-प्रदर्शन के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बता रहे हैं.

उत्तर प्रदेश में इस तरह का पहला मामला संभल में आया था. वहां के 12 किसानों और किसान नेताओं को प्रशासन ने अपराध दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत ये नोटिस जारी किए गए थे.
किसानों को नोटिस
इसके बाद अभी इसी हफ्ते सीतापुर जिले के कई लोगों को इस तरह की नोटिस जारी की गई. जिन लोगों को नोटिस जारी की गई है, उन्हें लाखों रुपये के पर्सनल बांड और जमानतें देने को कहा गया है.
सीतापुर सदर तहसील के एसडीएम ने हरगांव थाने के रौना गांव के 4 किसानों को सीआरपीसी की धारा 111 के तहत नोटिस भेजा है. इसमें कहा गया है कि ये लोग किसान आंदोलन में एक समूह बनाकर 23 जनवरी को लखनऊ और 26 जनवरी को दिल्ली में शांति व्यवस्था को भंग कर सकते हैं. इसलिए इन लोगों को भारी जमानतों में पाबंद किया जाना जरूरी है.

19 जनवरी को जारी इस नोटिस में कहा गया है कि वो उनके कार्यालय में हाजिर होकर 6 महीने तक शांति बनाए रखने के लिए 5-5 लाख रुपये का पर्सनल बांड और 5-5 लाख रुपये के 2-2 जमानतें दाखिल करें.
एक नोटिस सीतापुर जिले के मिश्रिख तहसील के एसडीएम ने मिश्रिख थाने के भिठौली गांव निवासी वंदना को जारी किया है. इसमें भी आशंका जताई है कि वो किसान बिलों को लेकर शांति व्यवस्था को भंग कर सकती हैं. एसडीएम ने वंदना को 6 महीने तक शांति बनाए रखने के लिए 10 लाख रुपये का पर्सनल बांड और 10-10 लाख रुपये की दो जमानतें दाखिल करने को कहा है.

मिश्रिख के एसडीएम ने नैमिषारण्य पुलिस थाने के औरंगाबाद इलाके के निवासी चार किसान नेताओं को भी इसी तरह की नोटिस जारी की है. इनको लेकर आशंका जताई गई है कि वो 23 जनवरी को लखनऊ और 26 जनवरी को दिल्ली में शांति व्यवस्था भंग कर सकते हैं.
शांति भंग की आशंका
इन नोटिस को लेकर 'एशियाविल हिंदी' ने मिश्रिख के एसडीएम ने बात की. उन्होंने बताया कि ये नोटिस शांति व्यवस्था को बनाए रखने के लिए जारी किए गए हैं. उन्होंने बताया कि पुलिस से रिपोर्ट मिली थी कि वंदना शांति व्यवस्था भंग कर सकती हैं और वो धारा-144 को तोड़ सकती हैं.
जब उनसे यह पूछा कि क्या उत्तर प्रदेश में आंदोलन करना अपराध हो गया है, इस सवाल पर उन्होंने कहा कि नहीं नोटिस में आंदोलन की बात नहीं कही गई है. उन्होंने कहा कि दरअसल पंचायत चुनाव की वजह से धारा-144 लगी हुई है, इसलिए यह नोटिस जारी की गई है.
नोटिस में जमानत की धनराशि अधिक रखने के सवाल पर एस़डीएम ने कहा कि यह सब प्रिवेंटिव एक्शन (निषेधात्मक कार्रवाई) है, इसलिए जिनको यह जारी किया गया है, उन्हें केवल एक कागज भर कर ही देना होगा, बहुत परेशान होने की जरूरत नहीं है.

इन नोटिसों को किसान आंदोलन को कुचलने की कार्रवाई के तौर पर देखा जा रहा है. कानून के जानकार इसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन मान रहे हैं.
संतोष सिंह इलाहाबाद हाई कोर्ट में वकालत करते हैं. इन नोटिसों के सवाल पर वो कहते हैं कि धारा-302 और धारा-376 में भी अदालतें इतनी अधिक धनराशि की जामनतें नहीं भरवाती हैं. इन मामलों में अधिकतम 50 हजार रुपये की जमानत या बांड की बात होती है. लेकिन शांति भंग की आशंका के नाम पर इतनी बड़ी धनराशि की जमानत मांगी जा रही है, यह आपत्तिजनक है.
वो कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट कहता है कि विरोध-प्रदर्शन करना लोगों का अधिकार है. वो कहते हैं कि जिन लोगों को नोटिस जारी हुआ है, वो प्रदर्शन करने ही तो जा रहे हैं. लेकिन उसे समाज के लिए खतरा मान लिया गया है. संतोष सिंह कहते हैं कि इस तरह की नोटिस भेजना लोगों के मौलिक और जनतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन है.