लोकसभा चुनाव के मतदान के अभी तीन चरण और नतीजे आने बाकी हैं. लेकिन प्रधानमंत्री पद की दौड़ अभी से शुरू हो गई है. उत्तर प्रदेश में सपा-बसप-रालोद गठबंधन और कांग्रेस के वाकयुद्ध को भी इसी रूप में देखा जा रहा है.
उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के मतदान के अभी तीन चरण बाकी हैं. लेकिन विपक्ष यानी सपा-बसपा-रालोद के गठबंधन और कांग्रेस में नोक-झोंक शुरू हो गई है. बीजेपी बाहर से तमाशा देख रही है.
उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में करीब 24 साल बाद ंमंच साझा करते सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव और बसा प्रमुख मायावती.
इसकी शुरुआत बुधवार को उस समय हुई जब कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने रायबरेली में कहा कि कांग्रेस ने कुछ ऐसे उम्मीदवार खड़े किए हैं, जो बीजेपी का वोट काटेंगे. इसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक चुनावी जनसभा में कह दिया कि सपा-बसपा पर बीजेपी का नियंत्रण है.
कांग्रेस के दो शीर्ष नेताओं के इन बयानों ने सपा-बसपा को भड़का दिया. मायावती ने आज कांग्रेस पर हमला करते हुए कहा कि बीजेपी की तरह कांग्रेस भी अनाप-शनाप बकने लगी है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस और बीजेपी एक ही थाली के चट्टे-बट्टे हैं.
कांग्रेस-बीजेपी
इससे पहले समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में कांग्रेस पर कई आरोप लगाए थे. उनका कहना था कि कांग्रेस का जनता में कोई आधार नहीं है, इसलिए वो इस तरह के बहाना बना रही है. सपा प्रमुख ने कांग्रेस और बीजेपी में कोई अंतर न बताते हुए कहा कि कांग्रेस बीजेपी को फायदा पहुंचा रही है.
अखिलेश यादव ने राहुल गांधी के उन आरोपों को भी नकारते हुए कहा था, ''हमें कोई भी नियंत्रित नहीं करता है. हम राजनीतिक दल हैं. यह सपा-बसपा-रालोद का गठबंधन है, जो उत्तर प्रदेश में सत्ताधारी दल को चुनौती देने को तैयार है.''
सपा प्रमुख अखिलेश यादव.
प्रियंका ने आज एक बार फिर दोहराया कि कांग्रेस के बहुत से उम्मीदवार बीजेपी का वोट काटेंगे. एक टीवी चैनल ने प्रियंका गांधी से जब यह पूछा कि मायावती आरोप लगाती रही हैं कि आप बीजेपी को मदद पहुंचा रही हैं, तो उन्होंने कहा, ''मैं यह कह रही हूं कि मैं जान दे दूंगी लेकिन मैं उनकी मदद नहीं करूंगी...इससे बढ़कर मैं और क्या कह सकती हूं.''
दरअसल सपा-बसपा और कांग्रेस का मनमुटाव लोकसभा चुनाव की घोषणा से बहुत पहले से ही है. ऐसी उम्मीद थी कि लोकसभा चुनाव के लिए इन दलों में कोई समझौता हो जाए. लेकिन ऐसा हो नहीं पाया.
बिगड़ता तालमेल
योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने और केशव प्रसाद मौर्य के उपमुख्यमंत्री बनने के बाद गोरखपुर और फूलपुर में हुए लोकसभा उपचुनाव के लिए भी सपा-बसपा और कांग्रेस में कोई समझौता नहीं हो पाया था. सपा-बसपा ने यह चुनाव मिलकर लड़ा. कांग्रेस ने इन सीटों पर उम्मीदवार उतारे. जीत सपा के हाथ लगी. लेकिन इसके बाद कैराना में हुए लोकसभा के उपचुनाव में कांग्रेस ने उम्मीदवार नहीं उतारा. इससे लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन की एक और आस जगी..
लेकिन मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा के लिए दिसंबर 2018 में हुए चुनाव में ये दल फिर अलग-अलग लड़े. इससे गठबंधन की उम्मीदों को झटका लगा.
उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा के गठबंधन की घोषणा से पहले मायावती का स्वागत करते अखिलेश यादव.
इसके बाद सपा-बसपा-रालोद ने कांग्रेस को झटका देते हए लोकसभा चुनाव के लिए आपस में समझौता कर लिया. बाद में इसमें रालोद भी शामिल हो गया. सपा-बसपा ने कहा कि वो अमेठी और रायबरेली में उम्मीदवरा नहीं खड़े करेगी.
राजनीतिक विश्लेषक कांग्रेस और गठबंधन के नेताओं में जारी वाकयुद्ध को प्रधानमंत्री पद की दौड़ से जोड़कर देख रहे हैं. प्रधानमंत्री पद का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है. देश में सभी अधिक लोकसभी की 80 सीटें उत्तर प्रदेश में हैं.
मायावती का सपना
दरअसल मायावती का प्रधानमंत्री बनने का पुराना सपना है. इस बार उन्हें राह थोड़ी आसान दिख रही है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी यह साफ कर चुके हैं कि उनके पिता और सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव प्रधानमंत्री पद की रेस में नहीं हैं.
माना जा रहा है कि इस चुनाव में बीजेपी को झटका लगेगा और कांग्रेस फायदे में रहेगी. सपा-बसपा के गठबंधन के पुराने प्रदर्शन को देखते हुए लग रहा है कि यह गठबंधन बड़ी जीत दर्ज करेगा. अगर सपा-बसपा का गठबंधन 50 या उससे अधिक सीटें जीत लेता है, तो केंद्र में गठबंधन की सरकार बनने की दशा में प्रधानमंत्री पद पर मायावती का दावा मजबूत हो जाएगा. ऐसे में यह गठबंधन उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को पांव पसारने का मौका क्यों देगा.
एक दूसरी बात जो कही जा रही है, वह यह कि अगर बीजेपी को इतनी सीटें न मिले कि वह सरकार बना पाए तो वह दलित प्रधानमंत्री के नाम पर मायावती को समर्थन दे सकती है. बीजेपी और बीएसपी पहले भी तीन बार उत्तर प्रदेश में मिली-जुली सरकार बना चुके हैं.
कांग्रेस की कोशिश
उधर कांग्रेस के बारे में भी यह माना जा रहा है कि उसकी कोशिश है कि राज्य में बीजेपी तो हारे लेकिन गठबंधन को बहुत बड़ी जीत से रोका जाए. कांग्रेस में इस तरह की राय है कि अगर गठबंधन को 60 सीटें मिल जाती हैं तो केन्द्र में ग़ैर बीजेपी गठबंधन सरकार का नेतृत्व कांग्रेस के हाथ से निकल सकता है. समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनने से रोक चुके हैं. सोनिया गांधी ने 1999 में राष्ट्रपति से सामने 272 सांसदों की सूची पेश की थी, जिसमें समाजवादी पार्टी के सांसदों के नाम भी थे. लेकिन मुलायम सिंह यादव सही समय पर पीछे हट गए थे. बीएसपी की नेता मायावती भी तोल-मोल के मामले में निपुण हैं.
मेरठ के एक अस्पताल में भर्ती भीम आर्मी नेता चंद्रशेखर से मिलतीं प्रियंका गांधी.
कांग्रेस ने पिछले कुछ सालों में जिस तरह से पीएल पुनिया और जिग्नेश मेवानी जैसे दलित नेताओं को खड़ा किया है, मायावती उससे भी नाराज हैं. प्रियंका गांधी ने मेरठ के एक अस्पताल में भर्ती भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर से जिस तरह से मुलाकात की, उसने मायावती की नाराजगी को और बढ़ा दिया. मध्य प्रदेश की गुना सीट पर बसपा उम्मीदवार को जिस तरह से कांग्रेस ने अपने पाले में किया है, उससे मायावती और नाराज हैं.
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