क्या उत्तर प्रदेश के जाटों और मुसलमानों को एक कर पाएगा किसान आंदोलन
मुजफ्फरनगर में 2013 में हुए दंगों के बाद जाट और मुसलमानों के रिश्ते में दरार पड़ गई थी. लेकिन किसान आंदोलन को जिस तरह से मुसलमान समर्थन कर रहे हैं, उससे यह खाई पटती हुई नजर आ रही है.
गणतंत्र दिवस पर किसानों ने दिल्ली में ट्रैक्टर परेड निकाली थी. इस दौरान कुछ लोगों ने लालकिले में उत्पात मचाया था. अगले दिन दिल्ली-यूपी सीमा पर गाजीपुर में किसानों के धरनास्थल को योगी सरकार ने खाली कराने की कोशिश की. वहां कुछ सौ किसान ही रह गए थे और तंबू भी खाली हो रहे थे. इस दौरान किसान नेता राकेश टिकैत ने आरोप लगाया कि गाजियाबाद का एक बीजेपी विधायक अपने लठैतों के साथ वहां किसानों को मारने आया था. यह कहते हुए टिकैत फफक कर रो पड़े.

गणतंत्र दिवस पर हुई हिंसा के बाद कमजोर पड़ रहे किसान आंदोलन को टिकैत के आंसुओं ने नई ताकत दे दी. टिकैत को रोता देख पश्चिम उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और हरियाणा के किसान रात में ही गाजीपुर के लिए निकल पड़े. अगले दिन सुबह गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों का सैलाब उमड़ पड़ा. धरनास्थल 'किसान एकता जिंदाबाद' के नारों से गूंज उठा.
महापंचायतों की राजनीति
इसके बाद से पश्चिम उत्तर प्रदेश में महापंचायतों का सिलसिला शुरू हो गया. पहली महापंचायत मुजफ्फरनगर में आयोजित की गई. यह राकेश टिकैत का गृह जिला भी है. मथुरा और बड़ौत में महापंचायत हो चुकी है. कई और शहरों में इनके आयोजन की तैयारी चल रही है.
मुजफ्फरनगर की महापंचायत एक मायने में खास रही. वह यह कि उसमें बड़ी संख्या में मुसलमान शामिल हुए. भाकियू नेता गुलाम मोहम्मद जौला की मुसलमानों में जबरदस्त पैठ हैं. महापंचायत में उन्होंने टिकैत को उनकी दो सबसे बड़ी गलतियों, मुसलमानों की हत्या और अजीत सिंह को हरवाने की याद दिलाई. महापंचायत के मंच पर राकेश टिकैत के बड़े भाई नरेश टिकैत और अजित सिंह के बेटे जयंत चौधरी मौजूद थे. महापंचायत में शामिल लोगों ने बीजेपी के बहिष्कार का भी फैसला किया.
राजनीतिक विश्लेषक मुजफ्फरनगर की इस महापंचायत को पश्चिम उत्तर प्रदेश की राजनीति के लिए एक बड़ी घटना मान रहे हैं. दरअसल बीजेपी के 2014 में सत्ता में आने से पहले 2013 में मुजफ्फरनगर में सांप्रदायिक दंगे हुए थे. इनमें 66 लोग मारे गए थे. इनमें से अधिकांश मुसलमान थे. दंगों की वजह से 60 हजार से ज्यादा लोगों को बेघर होना पड़ा था. उस समय प्रदेश में अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी की सरकार थी. दंगों ने जाटों और मुसलमानों के रिश्ते में गहरी खाई पैदा कर दी. विश्लेषकों को लगता है कि महापंचायतों में जिस तरह मुसलमान शिरकत कर रहे हैं, वो पश्चिम उत्तर प्रदेश की राजनीति को नई दिशा देंगे.

दरअसल मुजफ्फरनगर दंगों के बाद बीजेपी जीत के जिस घोड़े पर सवार हुई थी, वह आज भी सरपट दौड़ा जा रहा है. उसकी लगाम अभी तक कोई थाम नहीं पाया है.
राजनीतिक मायने
प्रोफेसर सुधीर पंवार लखनऊ विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं. पश्चिम उत्तर प्रदेश से आने वाले पंवार समाजवादी पार्टी से जुड़े हुए हैं. पश्चिम उत्तर प्रदेश की बदलती राजनीति के सवाल पर वो कहते हैं कि मुजफ्फरनगर दंगों के बाद समाजवादी पार्टी हिंदुओं को ठीक से रिस्पांस नहीं कर पाई. और बीजेपी ने इसे भुना लिया. लेकिन इस किसान आंदोलन को देखने से लगता है कि बीजेपी अब जाटों का नुकसान उठाने को तैयार है. जाटों की कमी को पूरा करने के लिए बीजेपी ने गुर्जर विधायक नंदकिशोर गुर्जर को टिकैत के खिलाफ मैदान में उतार दिया. वो कहते हैं कि हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह जाट या गुर्जर का आंदोलन नहीं है, यह किसानों का आंदोलन है और किसान बीजेपी के इस सरकार से बहुत नाराज हैं. आने वाले चुनावों में बीजेपी को इस नाराजगी की कीमत चुकानी पड़ेगी. वो कहते हैं कि किसानों की इस नाराजगी का फायदा समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल उठा सकते हैं. किसान उनके पीछे लामबंद हो सकता है, क्योंकि दोनों किसानों से जुड़ी पार्टियां हैं.
मुजफ्फरनगर में हुई तीन हत्याओं के बाद अगस्त 2013 में एक महापंचायत आयोजित की गई थी. इसमें भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) और बीजेपी के नेता शामिल हुए थे. इसी महापंचायत के बाद ही दंगे भड़के थे. इसने पश्चिम उत्तर प्रदेश के सामाजिक ताने-बाने को बहुत नुकसान पहुंचाया था. खास बात यह है कि दंगों के बाद दर्ज मुकदमों में आरोपियों के रूप में राकेश टिकैत और नरेश टिकैत के भी नाम थे. यहां तक कि गाजीपुर में रोते हुए टिकैत ने कहा भी था कि उन्होंने बीजेपी को वोट दिया था और बीजेपी ने मेरे साथ गद्दारी की है.

तो क्या यह माना जाए कि राकेश टिकैत के रोने के बाद मुसलमान मुजफ्फरनगर दंगों के दर्द को भुलाकर महापंचायतों में शामिल हो रहे हैं. यह सवाल मैंने मेरठ निवासी पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता जाकिर अली त्यागी से पूछा. वो कहते हैं कि मुजफ्फरनगर दंगों की शुरूआत जौला-जौली गांव से हुई थी. और गुलाम मोहम्मद जौला वहीं के रहने वाले हैं. उनके समर्थकों की संख्या अच्छी-खासी है. त्यागी कहते हैं कि जिस तरह जौला ने जाटों को उनकी गलतियां याद दिलाईं और जिस तरह वो वो नरेश टिकैत और जयंत चौधरी से गले मिले, उससे मुसलमानों में बहुत बड़ा संदेश गया. उन्हें लगा कि हमारे साथ जो हुआ, हमें उसे अब भूल जाना चाहिए और हमारे नेताओं ने जाटों को गले लगा लिया है. इसके बाद से जहां भी महापंचायत हो रही है, मुसलमान उसमें बड़ी संख्या में शामिल हो रहे हैं. त्यागी कहते हैं कि अब जाट भी अब यह मानने लगे हैं कि मुजफ्फरनगर दंगा, अजित सिंह को हराना और बीजेपी को वोट देना उनकी गलती थी.
वहीं प्रोफेसर पंवार कहते हैं कि 2013 के दंगों के बाद से जाटों और मुसलमानों के रिश्ते में पैदा हुई खाई, इतनी आसानी से नहीं भरेगी, इसमें अभी समय लगेगा. यह काम धीरे-धीरे होगा.
बीजेपी कैसे हारेगी
वरिष्ठ पत्रकार और 'जनसत्ता' के नेशनल ब्यूरो प्रमुख अनिल बंसल मरेठ में रहते हैं. पश्चिम उत्तर प्रदेश के सामाजिक-राजनीतिक समीकरणों में आए इस बदलाव को लेकर मैंने उनसे सवाल किया. वो कहते हैं कि अगर हिंदू-मुसलमान वाली समस्या का समाधान हो गया तो अजित सिंह की पार्टी इस जाट-मुसलमान गठजोड़ का फायदा उठा लेगी. इसी को देखते हुए जयंत चौधरी जगह-जगह रैलियां कर रहे हैं. लेकिन अगर बीजेपी ने फिर कोई सांप्रदायिक कार्ड खेल दिया तो यह गठबंधन कामयाब नहीं हो पाएगा. वो कहते हैं कि बीजेपी को हराने के लिए सपा, बसपा, कांग्रेस और रालोद को एक होना होगा.

पश्चिम उत्तर प्रदेश में राजनीतिक रूप से मजबूत एक और जाति है, वह है गुर्जर. इसी जाति के नेता और सांसद हुकुम सिंह ने 2016 में कैराना से हिंदुओं के पलायन का मुद्दा उठाया था. इस मुद्दे ने तेजी से ध्रुवीकरण किया. और 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की. लेकिन हुकुम सिंह के निधन से खाली हुई कैरान सीट पर हुए उपचुनाव में उनकी बेटी और बीजेपी उम्मीदवार मृगांका सिंह को हार का सामना करना पड़ा.ी
राकेश टिकैत 27 जनवरी को गाजीपुर बॉर्डर पर रोते हुए गाजियाबाद के जिस बीजेपी की ओर इशारा कर रहे थे, उनका नाम है, नंदकिशोर गुर्जर. वो लोनी विधानसभा से जीते हैं. कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नंदकिशोर गुर्जर को गाजीपुर बॉर्डर भेजकर बीजेपी ने जाटों और गुर्जरों को लड़ाने की कोशिश की थी. इस घटनाक्रम पर जब मैंने मुजफ्फरनगर के वरिष्ठ पत्रकार संजीव से सवाल किया तो उन्होंने बताया कि हुकुम सिंह की पुण्यतिथि पर बुधवार को गुर्जर समाज की एक सभा हुई थी. इसमें नंदकिशोर गुर्जर भी शामिल हुए थे. उन्होंने पत्रकारों से बातचीत में टिकैत के आरोपों को नकारा था और कहा कि वो उस दिन गाजीपुर नहीं गए थे. लेकिन इसके साथ ही उन्होंने राकेश टिकैत का मानसिक इलाज कराने की सलाह दे डाली.
गुर्जर किधर हैं
इस बीच खबर यह है कि गुर्जर किसानों को लामबंद करने के लिए हरियाणा के बड़े गुर्जर नेता और केंद्रीय मंत्री कृष्णपाल गुर्जर सामने आए हैं. वो बड़े गुर्जर नेताओं के साथ बैठक कर रहे हैं.

वहीं जाटों और मुसलमानों को करीब आता देख बीजेपी ने भी अपनी तैयारी तेज कर दी है. योगी सरकार ने गाजीपुर के धरनास्थल को खाली करवाने के लिए कई तुगलकी फरमान जारी किए थे. किसानों की बिजली-पानी की सप्लाई तक काट दी थी. लेकिन टिकैत के आंसुओं से बर्फ पिघलती देख योगी सरकार ने अपने कमद वापस खींच लिए हैं. बीजेपी के नेता भी पश्चिम यूपी में सक्रिय हो गए हैं. जाट नेता और कैबिनेट मंत्री भूपेंद्र चौधरी किसानों की बैठकों में कृषि कानूनों के फायदे गिना रहे हैं. खबर यह भी है कि अगले हफ्ते से योगी के मंत्री पश्चिम यूपी के गांवों में जाकर किसानों की कृषि कानूनों पर नाराजगी दूर करने की कोशिश करेंगे.
अब पश्चिम उत्तर प्रदेश का यह मजबूत वोट बैंक किस करवट बैठेगा, यह इस बात पर निर्भरा करेगा कि कौन राजनीतिक दल इन्हें अपने पाले में कर पाता है. इसका परिणाम जानने के लिए आपको अगले साल मार्च तक इंतजार करना होगा.