पश्चिम उत्तर प्रदेश में नरेंद्र मोदी सरकार के मंत्री संजीव बालियान का क्यों हो रहा है विरोध
पिछले कुछ दिनों से केंद्रीय राज्य मंत्री डॉक्टर संजीब बालियान को पश्चिम उत्तर प्रदेश के इलाकों में भारी विरोध का सामना करना पड़ा है. यहां जानिए क्या है इसकी वजह.
इन दिनों जाटलैंड यानी की पश्चिम उत्तर प्रदेश किसान आंदोलन का अखाड़ा बना हुआ है. यहां के लोग केंद्र सरकार के नए कृषि कानूनों को लेकर गुस्से में हैं. जब भी मौका मिल रहा है, वो इसे जाहिर कर रहे हैं. बीजेपी नेता और केंद्रीय राज्य मंत्री डॉक्टर संजीव बालियान को पिछले कुछ दिनों से इस गुस्से का सामना करना पड़ रहा है. मुजफ्फरनगर के शाहपुर थानाक्षेत्र के सौरम गांव में सोमवार रात यह विरोध मारपीट में बदल गया.

बालियान को शामली और भैंसवाल में इसी तरह किसानों के विरोध का सामना करना पड़ा था. राजनीतिक हलके में कहा जा रहा है कि बीजेपी नेता अमित शाह ने बालियान को किसानों के गुस्से को शांत करने की जिम्मेदारी दी है. क्योंकि भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष नरेश टिकैत और प्रवक्ता राकेश टिकैत भी जाटों के उसी खाप से आते हैं, जिससे बालियान का नाता है. इससे पहले बालियान ने खुद को पश्चिम बंगाल में सीमित कर रखा था. लेकिन अमित शाह के कहने पर उन्हें अपने क्षेत्र में आना पड़ा है. लेकिन वहां लोग उनका भारी विरोध कर रहे हैं.
बालियान का बयान
मुजफ्फरनगर के वरिष्ठ पत्रकार संजीव बताते हैं कि लाल किले पर 26 जनवरी की घटना के बाद बालियान बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह के साथ रामपुर चौराहे पर आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल हुए थे. इसमें उन्होंने किसान आंदोलन को कुछ मुट्ठी भर लोगों का आंदोलन बताया था. संजीव बताते हैं कि इस बयान का नकारात्मक असर पड़ा. जिन लोगों को लगता था कि बालियान किसान आंदोलन के समाधान में मददगार होंगे और वो नरेंद्र मोदी-अमित शाह के सामने किसानों का पक्ष मजबूती से रखेंगे. उन्हें इस बयान से धक्का लगा. संजीव बताते हैं कि गाजीपुर बॉर्डर पर राकेश टिकैत के रोने के बाद किसान आंदोलन के और मजबूत होने में बालियान के बयान का भी हाथ था.
सौरम गांव का खाप पंचायत की राजनीति में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है. यहां की चौपाल से सुनाए गए फैसले की गूंज को पश्चिम उत्तर प्रदेश के साथ-साथ हरियाणा-राजस्थान की राजनीति में भी फील किया जा सकता है.

किसान आंदोलन में चौधरी अजित सिंह का राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) भी सक्रिय है. गाजीपुर की घटना के बाद रालोद ने राकेश टिकैत को समर्थन की घोषणा की. इसके पूर्व सांसद जयंत चौधरी अगले ही दिन राकेश टिकैत से मिलने गाजीपुर पहुंचे थे. सिसौली में हुई महापंचायत के मंच पर भी जयंत चौधरी पहुंचे थे. उसके बाद से रालोद ने कई जगह किसान महापंचायतें आयोजिक की हैं.
रालोद की सक्रियता
पश्चिम उत्तर प्रदेश में जिस तरह से किसानों के बीच कांग्रेस सक्रिय हुई है और किसान महापंचायतों में लोग प्रियंका गांधी को लोग सुनने आ रहे हैं, उससे रालोद थोड़ी चिंतित है. यही वजह है कि सौरम में मंगलवार को हुई पंचायत में अजित सिंह खुद पहुंचे. उन्होंने कहा कि वो किसानों के साथ मजबूती से खड़े हैं. महापंचायतों के जरिए रालोद अपनी राजनीतिक जमीन वापस पाना चाहती है. इसमें भाकीयू उसकी मददगार साबित हो सकती है.
सौरम की घटना के बाद रालोद और भाकियू समर्थकों ने शाहपुर थाने को घेर लिया था. मुकदमा दर्ज होने के आश्वासन के बाद ही वो हटे थे. पीड़ित पक्ष की शिकायत पर हुई कार्रवाई के बारे में जानने के लिए 'एशियाविल हिंदी' ने शाहपुर थाने के प्रभारी, वहां के पुलिस क्षेत्राधिकारी, पुलिस अधीक्षक (ग्रामीण), पुलिस के मीडिया सेल, पुलिस के पीआरओ और पुलिस अधीक्षक तक से उनके मोबाइल नंबरों पर बात करने की कोशिश की.लेकिन किसी ने भी जबाव नहीं दिया.

वहीं इस घटना के बाद संजीव बालियान ने मंगलवार को मुजफ्फरनगर में एक प्रेस कांफ्रेंस कर सफाई दी. उन्होंने सौरम और भैंसवाल में हुए विरोध और हाथापाई की घटना के पीछे रालोद और सपा नेताओं का हाथ बताया. उन्होंने इसे सुनियोजित साजिश बताते हुए इसकी जांच कराने की मांग की.
अजित राठी रालोद के मुजफ्फरनगर जिला अध्यक्ष हैं. बालियान के आरोपों को गलत बताते हुए उन्होंने 'एशियाविल हिंदी' से पूछा कि क्या जनता को अपने जनप्रतिनिधि से सवाल पूछने का अधिकार नहीं है. वो कहते हैं कि लोगों के सवालों के जवाब देने की जगह वो सवाल पूछने वालों को रालोद का कार्यकर्ता बता देते हैं. और 'किसान एकता जिंदाबाद' का नारा लगाने वालों को रालोद का बता देते हैं. राठी कहते हैं कि सवाल पूछने वाले किसान हैं और उनका दल किसानों के साथ है. किसान आंदोलन का राजनीतिक फायदा उठाने के सवाल पर राठी कहते हैं कि रोलोद किसानों की राजनीति करती है और अगर हम किसानों की बात नहीं करेंगे तो क्या करेंगे. वो कहते हैं कि इसमें राजनीतिक फायदा उठाने वाली कोई बात नहीं है.