दो सीटों के चुनाव क्यों लड़ना चाहती हैं ममता बनर्जी
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ने सोमवार को एक रैली में घोषणा की कि वो नंदीग्राम से चुनाव लड़ सकती हैं. इसे तृणमूल कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में जाने वाले सुवेंदु अधिकारी को घेरने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है.
पश्चिम बंगाल में इस साल विधानसभा के चुनाव होने हैं. इस वजह से वहां का राजनीतिक तापमान गरमाया हुआ है. रोज ब रोज बयानों के तीर चल रहे हैं. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को को घोषणा की कि वो पूर्वी मिदनापुर की नंदीग्राम सीट से चुनाव लड़ेंगी. कहा जा रहा है कि इस घोषणा से ममता ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं. यह घोषणा कर उन्होंने बीजेपी और टीएमसी के बागियों को सीधे चुनौती दी है. उनका इशारा तृणमूल कांग्रेस छोड़कर बीजेपी का दामन थामने वाले सुवेंदु अधिकारी पर है.

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस घोषणा से ममता ने सुवेंदु को उनके ही किले में घेरने के साथ-साथ पार्टी का मनोबल और ऊंचा होगा. वहीं ममता की इस चुनौती को स्वीकार करते हुए सुवेंदु अधिकारी ने कहा है कि आगामी चुनाव में वो अगर 50 हजार से कम वोटों से ममता बनर्जी को नहीं हरा पाए तो राजनीति छोड़ देंगे. उन्होंने कहा कि उनकी उम्मीदवारी पर अंतिम फैसला बीजेपी के शीर्ष नेता बातचीत के बात लेंगे. बीजेपी में टीमएसी की तरह मनमाने तरीके से फैसले नहीं लिए जाते हैं.
ममता की रणनीति
ममता बनर्जी ने सोमवार को नंदीग्राम के तेखाली इलाके में एक विशाल रैली को संबोधित किया. इस दौरान ममता ने यह जताने की कोशिश की कि वो कोलकाता में अमित शाह, जेपी नड्डा के दौरे या बीजेपी नेताओं के शक्ति प्रदर्शन से विचलित नहीं हैं. बीजेपी के आक्रामक तेवरों के खिलाफ वह बैकफुट पर नहीं आएंगी.
ममता ने सोमवार को नंदीग्राम की रैली में कहा, "मैं नंदीग्राम से चुनाव लडूंगी. यह मेरे लिए लकी है. नंदीग्राम मेरी बड़ी बहन है, भवानीपुर मेरी छोटी बहन है...अगर संभव हुआ तो मैं दोनों जगह से चुनाव लड़ूंगी. यदि मैं किसी कारणवश भवानीपुर से चुनाव नहीं लड़ पाई तो कोई और चुनाव लड़ेगा."
बंगाल में अबतक सुवेंदु के अलावा तृणमूल कांग्रेस के 6 से ज्यादा विधायक और दो सांसद भी पाला बदल चुके हैं. ऐसे में बागी नेताओं के खिलाफ ममता का आक्रामक रुख तृणमूल नेताओं के लिए उत्साह बढ़ाने वाला होगा, जो पार्टी में मची भगदड़ को लेकर संशकित हैं या पलायन का मन बना रहे हैं.

बीजेपी ने भले ही बंगाल में अभी मुख्यमंत्री पद का कोई चेहरा पेश न किया हो, लेकिन सुवेंदु बड़ा चेहरा बनकर उभरे हैं. इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि जब ममता नंदीग्राम में हुंकार भर रही थीं तो उसी वक्त सुवेंदु दक्षिण कोलकाता में ममता के गढ़ में बीजेपी के रोड शो का संचालन कर रहे थे. वे मिदनापुर के अलावा आसपास के कई ग्रामीण इलाकों की सीटों पर बड़ा असर रखते हैं.
ममता के लिए सिंगुर के साथ नंदीग्राम निजी तौर पर मायने रखता है. कांग्रेस से अलग 1998 में तृणमूल कांग्रेस बनाने के बावजूद ममता लंबे समय तक वामपंथी किले को भेदने में नाकाम रही थीं. लेकिन नंदीग्राम के आंदोलन ने ही ममता को वो सियासी ऊर्जा दी, जिसके जरिए उन्होंने लेफ्ट के 34 साल पुराने शासन का अंत कर दिया.

सिंगुर में टाटा के नैनो प्रोजेक्ट की तरह 2007 में नंदीग्राम में एक केमिकल फैक्ट्री बनाने के विरोध में किसान आंदोलन कर रहे थे. आंदोलन उग्र होने के बीच नंदीग्राम में किसानों पर फायरिंग में 14 लोगों की मौत से कोहराम मच गया. आरोप था कि लेफ्ट के सशस्त्र कार्यकर्ताओं और पुलिस ने गोलियां चलाईं थीं. ममता की अगुवाई में टीएमसी ने यहीं से बुद्धदेव भट्टाचार्य की तत्कालीन वामपंथी सरकार के खिलाफ बिगुल फूंका था और 2011 में बंगाल की सत्ता हासिल की थी.
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