उत्तर प्रदेश में क्या बिहार दोहरा पाएंगे असदउद्दीन ओवैसी
बिहार विधानसभा चुनाव में 5 सीटें जीतने के बाद एमआईएम प्रमुख असदउद्दीन ओवैसी की नजर अगले साल होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव पर लगी हुई है. क्या वो अपने मंसूबे में कामयाब हो पाएंगे.
बिहार विधानसभा चुनाव में मिली सफलता से उत्साहित ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम या एमआईएम) ने उत्तर प्रदेश में अपनी सक्रियता बढ़ा दी है. एमआईएम के अध्यक्ष और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने बीते दिनों आजमगढ़ में दस्तक दी. वो वाराणसी के बावतपुर हवाई अड्डे से एक काफिले के साथ आजमगढ़ रवाना हुए थे. रास्ते में उनका जमकर स्वागत-अभिनंदन हुआ. यह देखकर एमआईएम के नेता और कार्यकर्ता उत्साहित हैं. लेकिन गुरुवार को बीजेपी सासंद साक्षी महाराज के एक बयान ने एमआईएम के लिए रंग में भंग डालने का काम किया. लेकिन पार्टी ने साक्षी महाराज के बयान को बहुत अधिक तवज्जो नहीं दी है.

वाराणसी से आजमगढ़ के रास्ते में ओवैसी को जिस तरह की प्रतिक्रिया मिला, उससे एमआईएम और उसके नेता-कार्यकर्ता खासे उत्साहित हैं. लेकिन यह प्रदेश की सत्ता में वापसी की कोशिश कर रही समाजवादी पार्टी के लिए थोड़ी परेशान करने वाली बात है. वजह यह है कि उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की जनसंख्या करीब 19 फीसदी है. और समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में खुद को मुसलमानों का सबसे बड़ा हितैषी मानती है. उसे इस तरह से समझ सकते हैं कि विधानसभा में समाजवादी पार्टी के 49 विधायक हैं. इनमें से 17 मुसलमान हैं. ऐसे में मुसलमान वोटों पर ओवैसी की दावेदारी से समाजवादी खेमे में हलचल है.
एमआईएम बनाम समाजवादी पार्टी
लखनऊ में रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार उत्तर प्रदेश में असदउद्दीन ओवैसी की इंट्री को बहुत महत्व नहीं देते हैं. वो कहते हैं कि बिहार में ओवैसी को फायदा मिला, यह सही है. लेकिन बिहार की स्थिति की तुलना में उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल की स्थिति अलग है. वो कहते हैं कि सीएए-एनआरसी के खिलाफ ओवैसी की पार्टी ने बिहार के सीमांचल में काफी काम किया था. इसका उसे फायदा भी मिला. लेकिन उत्तर प्रदेश के चुनाव में भी उन्हें फायदा हो इसकी संभावना कम है.
एमआईएम ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए ओमप्रकाश राजभर की भागीदारी संकल्प मोर्चा से हाथ मिलाया है. राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) ने 2017 का विधानसभा चुनाव बीजेपी के साथ मिलकर लड़ा था. आठ सीटों पर लड़ने वाली एसबीएसपी ने 4 सीटों पर जीत दर्ज की थी. ओवैसी की यात्रा के दौरान ओमप्रकाश राजभर उनके साथ थे.
एसबीएसपी के राष्ट्रीय महासचिव और प्रवक्ता अरुण राजभर कहते हैं कि ओवैसी की इस यात्रा ने राजनीतिक दलों को परेशान कर दिया है. वो पहले मुसलमानों को अपना वोट बैंक मानते थे. वो मानते थे कि मुसलमान उनके झोले में हैं, हमने उनके झोले से सामान उठाकर भागीदारी मोर्चे के झोले में रख दिया है. इससे राजनीतिक दल परेशान हैं. राजभर कहते हैं कि 2022 के चुनाव में भागीदारी मोर्चा की सरकार बनेगी.

अरुण राजभर कहते हैं कि मुसलमानों की आज जो स्थिति है, उसके लिए कांग्रेस जिम्मेदार है. वो कहते हैं कि कांग्रेस ने मुसलमानों का वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया. वो कहते हैं कि इसी तरह से प्रदेश में 4-4 बार सरकार बनाकर सपा और बसपा ने लोगों को लूटा. लेकिन अब लोग इस बात को समझ गए हैं और लोग अब भागीदारी देने वाले लोगों को अपना वोट देंगे.
ओवैसी पर साक्षी महाराज का बयान
हैदराबाद के सांसद असदउद्दीन ओवैसी के आजमगढ़ दौरे के अगले दिन बीजेपी सांसद साक्षी महाराज के एक बयान ने राजनीतिक हलचल पैदा कर दी. उन्होंने कहा कि ओवैसी ने बिहार में बीजेपी की मदद की थी. भगवान और खुदा उन्हें सेहतमंद रखें, वो हमारी उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में भी मदद करेंगे.
ओवैसी पर इस तरह के आरोप पहले भी लगते रहे हैं. लेकिन पहली बार बीजेपी के किसी नेता इस बात को स्वीकार किया है. साक्षी महाराज के इस बयान की एमआईएम ने बहुत तवज्जो नहीं दी. एमआईएम के प्रवक्ता अदील अल्वी कहते हैं कि साभी महाराज ने समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के कहने पर यह बयान दिया है. वो कहते हैं कि साक्षी महाराज पर मुलायम सिंह यादव के कई एहसान हैं. मुलायम सिंह की ही मदद से साक्षी महाराज पहली बार राज्य सभा पहुंचे थे. उन्हीं एहसानों को वो अब इन बयानों से उतार रहे हैं.
अल्वी कहते हैं, ''हमपर इन आरोपों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. वो कहते हैं कि न तो हम किसी को हराने के लिए हैं और न ही किसी को जिताने के लिए. हम खुद के जीतने के लिए हैं. उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा से बड़ा कोई गठबंधन नहीं हो सकता था. लेकिन नतीजा क्या हुआ. बिहार में हम केवल एक सीट पर लड़े थे, वहां से कांग्रेस जीती थी. लेकिन बाकी की 39 सीटें बीजेपी ने जीत लीं. इसलिए अब ऐसे बयान का अब कोई मतलब नहीं है.''

अदील अल्वी के बयानों से अरुण राजभर भी सहमती जताते हैं. वो कहते हैं कि साक्षी महाराज को 2000 में राज्य सभा भेजने के लिए मुलामय सिंह ने अपने विधायकों से उन्हें वोट दिलवाया था. राजभर कहते हैं कि साक्षी महाराज से सपा ही बयान दिलवा रही है. वो कहते हैं कि जो मुसलमान पहले सपा के साथ थे, वो अब ओवैसी के साथ आ गए हैं, इससे सपा परेशान हैं और वो साक्षी महाराज से इस तरह के बयान दिलवा रही है.
अखिलेश बनाम योगी आदित्यनाथ
वहीं अंबरीश कुमार, अल्वी और राजभर के आरोपों से सहमत नहीं हैं. वो कहते हैं राजनीति में साक्षी महाराज के बयान को कोई गंभीरता से नहीं लेता है. उनके बयान का कोई मतलब नहीं है. वो इस तरह के उटपटांग बयानों के लिए मशहूर रहे हैं.
ओवैसी का उत्तर प्रदेश में क्या महत्व हैं, इसे इस बात से समझ सकते हैं कि वाराणसी में उतरने के बाद उन्होंने कहा कि अखिलेश सरकार के शासनकाल में उन्हें 12 बार यूपी में प्रवेश करने से रोका गया और 28 बार उनको उत्तर प्रदेश में आने की इजाजत नहीं दी गई. वहीं अभी तक ऐसी कोई खबर नहीं है कि प्रदेश की योगी आदित्यनाथ की सरकार ने ओवैसी की उत्तर प्रदेश यात्रा में किसी तरह की बाधा डालने की कोशिश की हो.

अब यह देखने वाली बात होगी कि अगले साल होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले या बाद में प्रदेश की राजनीति किस करवट बैठती है. लेकिन इसके लिए हमें और इंतजार करना होगा.