पृथ्वी अगर चपटी होती तो सबकुछ ख़त्म हो गया होता, सब मर चुके होते.
धरती गोल है. संतरे की तरह गोल. थोड़ी सी झुकी हुई. लेकिन, हज़ारों साल तक लोगों का मानना था कि पृथ्वी गोल नहीं बल्कि चपटी है. 1957 में जब सोवियत संघ ने स्पुतनिक 1 सैटेलाइट का परीक्षण किया तो इसने पृथ्वी का पूरा चक्कर काट लिया. इसके बाद पृथ्वी की गोलाई पर सारे शक-सुबहों को विराम लग गया.
लेकिन, आज भी दुनिया में कुछ लोग ऐसे हैं जिनका मानना है कि गोलाई वाला तर्क बेकार है और पृथ्वी असल में चपटी ही है. फ्लैट-अर्थर्स (Flat-Earthers) नामक ये समूह हाल में फिर से इंटरनेट पर उगा और तब से बेहद बुनियादी सिद्धांतों को चुनौती देने की शुरुआत कर दी. इनका कहना है कि पृथ्वी गोल पिंड की तरह व्यवहार तो करती है, लेकिन असल में है ये चपटी.
लाइव साइंस में स्टेफनी पपास ने इस पर एक दिलचस्प व्याख्या पेश की है. उनके मुताबिक़ अगर धरती सच में चपटी होती तो इसका व्यवहार उस तरह नहीं होता जिस तरह आज हम देख रहे हैं. असल में धरती पर जीवन की कोई गुंजाइश नहीं बचती. सबकुछ मर गया होता.
ग्रहों का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक डेविड स्टीवेंसन का मानना है कि अगर कोई ग्रह डिस्क के आकार में चपटा होगा तो इसको काफी तेज़ गति से घुमाने की दरकार होगी और अगर अपनी कक्षा में ये उस रफ़्तार से घूमेगा तो इसके खंड-खंड हो जाएंगे. 1850 के दशक में अंतरिक्ष वैज्ञानिक जेम्स क्लेर्क मैक्सवेल ने गणितीय पद्धति के सहारे ये दिखाया कि ब्रह्मांड में डिस्क के आकार में ग्रहों की मौजूदगी मुमकिन नहीं है.
मैक्सवेल ने शनि ग्रह के छल्लों का अध्ययन करने के दौरान ये सिद्धांत दिया था. उनके मुताबिक़ शनि के छल्ले में अलग-अलग असंख्य पिंड मौजूद हैं. उन्होंने इस दौरान ये भी कहा था कि ग्रहों के आकार का कोई भी पिंड आकाशगंगा में डिस्क की शक्ल में मौजूद नहीं हो सकता.
अप्रत्याशित रूप से तीव्र गति से घुमाए बग़ैर धरती को चपटी रखना अकल्पनीय है. अगर ऐसा हुआ तो चंद घंटों के भीतर गुरुत्वाकर्षण वापस इसे गोल आकार में तब्दील कर देगा. गुरुत्वाकर्षण हर दिशा में बराबर खिंचाव रखता है. ग्रहों के गोल आकार के पीछे यही सबसे बड़ी वजह है. इस गुरुत्वाकर्षण की काट एक ही हो सकती है और वो इसके घूमने की तीव्र गति. मैक्सवेल ने अपने सिद्धांत में बताया था कि पृथ्वी के मौजूदा गुरुत्वाकर्षण को देखते हुए इसका चपटा होना नामुमकिन है.
अगर इस गुरुत्वाकर्ण को शून्य मान लें तो धरती पर मौजूदा जन-जीवन की पूरी अवधारणा ही तहस-नहस हो जाएगी. वायुमंडल का क्या होगा? ये चुटकी बजाते ही ग़ायब हो जाएगा क्योंकि गुरुत्वाकर्षण की बदौलत ही पृथ्वी के चारों तरफ़ इसकी मोटी परत बनी हुई है. समंदर के ज्वार-भाटे का क्या होगा? वो भी पलक झपकते ही ख़त्म हो जाएंगे क्योंकि चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण के कारण समंदर पर ज्वार-भाटे बनते हैं. ख़ुद चंद्रमा का क्या होगा? वो भी ग़ायब हो जाएगा क्योंकि अब तक के सारे सिद्धांत बताते हैं कि गुरुत्वाकर्षण के चलते ही चंद्रमा अपनी मौजूदा जगह पर मौजूद है. वैज्ञानिकों का ये भी मानना है कि पृथ्वी की परतदार अंदरूनी बनावट के लिए भी गुरुत्वाकर्षण ही ज़िम्मेदार है. इसलिए सबसे घना और ठोस तत्व केंद्र में मौजूद है और हल्के पदार्थ उससे ऊपर की तरफ़. अगर इसकी बनावट परतदार नहीं होती तो पृथ्वी का व्यवहार पूरी तरह अलहदा होता.
गुरुत्वाकर्षण के कारण ही पृथ्वी के बाहरी हिस्से में पानी का विशाल भंडार है. ये डायनामिक चुंबक की तरह काम करता है और ग्रह के इर्द-गिर्द चुंबकीय क्षेत्र का निर्माण करता है. इसी से इस ग्रह का वातावरण (वायुमंडल समेत सारे मंडल) सोलर विंड में ग़ायब नहीं होता. माना जाता है कि मंगल ग्रह का वातावरण 4 अरब साल पहले इसी तरह ग़ायब हुआ था.
अगर पृथ्वी चपटी होती तो इसके टैक्टोनिक प्लेट भी काम नहीं करता. वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर दो प्लेट अलग-अलग स्तर पर गतिशील हो तो गोलाई में ही मुमकिन है. फ्लैट पृथ्वी के पैरोकार तो यहां तक कह देते हैं कि ये सारी बातें चपटी धरती में भी मुमकिन है, लेकिन इसके पीछ कोई गणितीय या भौतिक साक्ष्य पेश नहीं कर पाते. लिहाज़ा अगर आपके मन में अब तक पृथ्वी की गोलाई पर शक है तो इसे अब दूर फेंक दीजिए.