बाराबंकी में मस्जिद गिराने में क्या प्रशासन ने कोर्ट के आदेश की अवहेलना की?
“इस मस्जिद में हम जुमे की नमाज पढ़ाने अपने मदरसे से मौलाना भेजते थे. 15 मार्च तक इसमें नमाज हुई है. 1990 में चकबंदी में आबादी, पाठशाला के साथ यह मस्जिद भी दर्ज है. 1968 से यह मस्जिद वक्फ बोर्ड में दर्ज है. 1959 में इसका बिजली का क्नेक्शन कराया था और इसका बिल मार्च 2021 तक भरा है. फिर भी प्रशासन ने इसे अचानक ढ़हा दिया.” बाराबंकी शहर काजी मौलाना अब्दुल मुस्तफा ने फोन पर एशियाविल से हुई बातचीत में ये बातें कहीं.
दरअसल उत्तर प्रदेश के बाराबंकी ज़िले के रामसनेही घाट में तहसील परिसर में मौजूद ग़रीब नवाज़ मस्जिद, जिसे तहसील वाली मस्जिद भी कहा जाता है, को ज़िला प्रशासन ने 'अवैध निर्माण' बताते हुए सोमवार 17 मई को रात में बुलडोज़र से गिरा दिया था. इसकी मुस्लिम संगठनों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है और मस्जिद के पुनर्निर्माण के साथ ही दोषी अधिकारियों पर कार्यवाही की मांग भी की है.


मस्जिद के प्रबंधकों का दावा है कि मस्जिद कहीं ज़्यादा पुरानी है. उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड ने हाई कोर्ट के स्थगन आदेश के बावजूद प्रशासन की इस कार्रवाई को अवैध बताया है और इसे हाई कोर्ट में चुनौती देने का फ़ैसला किया है.
यहां के मुस्लिम समुदाय का भी कहना है कि यह विवादित स्थल नहीं था बल्कि एक मस्जिद थी और वहां पर नमाज पढ़ी जाती थी. यह मस्जिद 6 दशक से भी ज्यादा पुरानी है. इनका कहना है कि कुछ दिन पहले 24 अप्रैल को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा था कि 31 मई तक कोरोना महामारी को देखते हुए किसी भी सरकारी संपत्ति पर बने धार्मिक निर्माण पर कार्रवाई नहीं होगी. इसके बाद भी प्रशासन ने जबरन यह मस्जिद गिराई है. इसे लेकर मुस्लिम समुदाय में काफी गुस्सा है. प्रशासन की ओर से गिराई गई जिस मस्जिद को ज़िला प्रशासन अवैध निर्माण बता रहा है, सुन्नी सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड के दस्तावेज़ों में वो पिछले छह दशक से 'तहसील वाली मस्जिद' के तौर पर दर्ज है.
काजी मौलाना अब्दुल मुस्तफा बताते हैं, “15 मार्च को एसडीएम ने एक नोटिस भेजा कि आप इस मस्जिद की मिल्कियत का सबूत दें तो मस्जिद कमेटी के लोग 17 मार्च को इसके कागज ले गए थे उन्होंने इंकार कर दिया कि हम नहीं लेंगे लेकिन जब ज्यादा कहा तो उन्होंने कागज़ रख लिए लेकिन रिसीविंग नहीं दी. तो इसके बाद मस्जिद कमेटी वाले हाईकोर्ट चले गए. हाईकोर्ट ने कहा कि 15 दिन के अंदर अपनी मिल्कियत का कागज डीएम-एसडीएम को पहुंचा दीजिए. 2 अप्रैल को लोगों ने डीएम-एसडीएम को कागज पहुंचा दिया. फिर भी ये 17 मई को अचानक मस्जिद को शहीद कर दिया गया. इसके लिए सुबह 11:00 बजे एलान किया कि आज बहुत सख्त लॉकडाउन रहेगा यहां तक कि मेडिकल स्टोर वगैरह भी बंद करा दिए कि कोई घर से बाहर नहीं निकलेगा और फिर शाम को जेसीबी और डंपर बुलाकर मस्जिद को शहीद करा दिया. उसमें कुरान पाक रखा हुआ था हदीसें रखी हुई थीं सब को शहीद कर दिया और ले जाकर कल्याणी नदी में बहा दिया.”

मौलाना मुस्तफा मस्जिद के इतिहास के बारे में बताते हैं, “वक्फ बोर्ड में यह मस्जिद रजिस्टर्ड है. एक अनवार साहब थे जो दस्तावेज लिखते थे और मस्जिद के मुक्तावली भी थे उन्होंने 1968 में इसे वक्फ बोर्ड में दर्ज कराया था और 1959 में इन्होंने अपने और मस्जिद के नाम से इस मस्जिद में बिजली भी लगवाई थी. मार्च 2021 तक उसका बिल भी जमा किया गया है. 2019 में भी यह मस्जिद वक्फ बोर्ड में दर्ज की गई थी. इसके अलावा इस मस्जिद में एक खलीलुल्ला साहब भी थे जो चपरासी थे वह 9-9-1968 से लेकर 89 तक यहां रहे,और इसमें नमाज पढ़ी पढ़ते रहे अभी भी वह मौजूद है जो इसकी गवाही दे सकते हैं. फिर भी अब यह प्रशासन में क्यों तोड़ती के बारे में तो वही बता सकते हैं हम तो यही कह सकते हैं 1967 से लेकर अभी तक इन लोगों ने वहां नमाज पढ़िए वहां मौजूद है ईद बकरा ईद में हजारों नमाजी रहते थे.”

अंत में मौलाना मुस्तफा उम्मीद से कहते हैं, “बाकी अभी हम कोर्ट जाएंगे गिलानी साहब को सारे कागजात दिए गए थे तो उनकी तबीयत अभी थोड़ा खराब है उनकी तबीयत सही हो जाएगी इंशा अल्लाह ताला कोर्ट में कार्रवाई की जाएगी. हम यही चाहते हैं कि मस्जिद दोबारा अवश्य बने और जब तक नहीं बन पाती है तो हमें वहां अजान और नमाज की पढ़ने की इजाजत दी जाए. हम कोई तशद्दुद करना नहीं चाहते हम तो अमन और शांति के साथ के साथ रहना चाहते हैं हम तो यही चाहते हैं कि कोर्ट के जरिए हमें इंसाफ मिले और हमें उम्मीद है कि कोर्ट इंसाफ करेगा.”
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने रामसनेहीघाट तहसील में स्थित एक सदी पुरानी मस्जिद को ढहाये जाने पर सख्त नाराजगी जाहिर की है. साथ ही सरकार से इस वारदात के जिम्मेदार अफसरों को निलंबित कर मामले की न्यायिक जांच कराने और मस्जिद के पुनर्निर्माण की मांग की.
उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी इस घटना की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए एक प्रेस विज्ञप्ति भी जारी की है. बोर्ड के अध्यक्ष जुफर अहमद फारूकी ने बयान में कहा, "प्रशासन ने खास तौर पर रामसनेहीघाट के उप जिलाधिकारी द्वारा अवैध अतिक्रमण हटाने के नाम पर तहसील परिसर के पास स्थित 100 साल पुरानी एक मस्जिद को ध्वस्त कर दिया है. मैं इस अवैध और मनमानी कार्रवाई की कड़ी निंदा करता हूं."

उन्होंने कहा, "यह कार्रवाई न सिर्फ कानून के खिलाफ है बल्कि शक्तियों का दुरुपयोग भी है. साथ ही हाईकोर्ट द्वारा गत 24 अप्रैल को पारित आदेश का खुला उल्लंघन है. उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड उस मस्जिद की बहाली, घटना की उच्चस्तरीय न्यायिक जांच और दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए हाईकोर्ट में जल्द ही मुकदमा दायर करेगा."
हालांकि रामसनेहीघाट के उप जिलाधिकारी दिव्यांशु पटेल ने इस घटना के बाद दावा किया कि तहसील परिसर में स्थित उस भवन को हाईकोर्ट के आदेश पर अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 133 के तहत ढहाया गया है. इस बारे में विवाद बढ़ने पर बाराबंकी डीएम आदर्श सिंह ने भी बयान जारी कर इस ध्वस्तीकरण का बचाव किया था.
बाराबंकी के सामाजिक कार्यकर्ता वकास वारसी मस्जिद के ध्वसत करने पर एशियाविल से कहते हैं, “ इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 24 अप्रैल को अपने एक आदेश में कहा था कि 31-5- 2021 तक किसी भी तरह के डिमोशन को डिस्ट्रिक्ट या अन्य कोर्ट ना तो पारित करेंगे और न ही उसकी तामील करेंगे. लेकिन इस मस्जिद को पुलिस ने हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ मनमाने और गैरकानूनी तरीके से ध्वस्त कर दिया. साथ ही इससे लोगों की भावनाओं को आहत किया है. जबकि बाराबंकी में कोविड के भी बहुत बुरे हालात हैं लॉक डाउन है. साथ ही डेढ़ सौ से ज्यादा लोगों के खिलाफ गलत एफआईआर दर्ज की.”
वकास आगे बताते हैं, “दरअसल एसडीएम आवास और इस मस्जिद के बीच में एक रोड़ का फासला है. वहां लोकल लोगों ने मुझे बताया कि एसडीएम साहब की गाड़ी यहां जुमे के दिन थोड़ी भीड़ ज्यादा होती है तो जाम में फंस गई थी बस तभी से उन्होंने पहले नोटिस दिया और अभी उसको डिमोलिश करा दिया. 2 तारीख को इन्होंने अपने ही एसडीएम कोर्ट से निर्णय दे दिया कि यह अवैध है और 17 मेें इसे ध्वस्त कर दिया. अब बस जिला प्रशासन यह साबित करने में लगा है कि वह मस्जिद नहीं थी. जबकि यहां के लोगों का कहना है कि ये मस्जिद तहसील से पहले से ही यहां है और इसमें नमाज होती थी. इसकी तस्वीरें भी मौजूद हैं.”
गौरतलब रहे कि इससे पहले भी इस मस्जिद को लेकर बवाल हो चुका है और रामसनेहीघाट कोतवाली पुलिस ने 150 से अधिक लोगों पर काफी गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज कर कुछ लोगों को जेल भी भेजा था.