छत्तीसगढ़ में जारी हिंसा के शांतिपूर्ण समाधान का रास्ता तलाशने के उद्देश्य से शुक्रवार से एक पदयात्रा शुरू हुई, इसका नाम रखा गया है, 'दांडी मार्च 2.0'. यह पदयात्रा 23 मार्च को राजधानी रायपुर में खत्म होगी.
माओवाद प्रभावित मध्य भारत में शांति की स्थापना के लिए 'दांडी यात्रा 2.0' शुक्रवार को शुरू हुई. छत्तीसगढ़ के नारायणपुर से शुरू हुई यह पदयात्रा 23 मार्च को राजधानी रायपुर पहुंचकर खत्म होगी. यात्रा में शामिल माओवादी हिंसा और राज्य प्रायोजित हिंसा पीड़ित परिवार और नागरिक समाज के सदस्य 222 किलोमीटर की दूरी तय करेंगे.

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 91 साल पहले 12 मार्च 1930 को ही अंग्रेजों के बनाए नमक कानून को तोड़ने के लिए दांडी यात्रा का नेतृत्व किया था. गांधी ने 78 लोगों के साथ अहमदाबाद के साबरमती आश्रम से नवसारी जिले के गांव दांडी तक 24 दिन तक पैदल यात्रा की थी. दां
गांधी जी की दांडी यात्रा
गांधी जी की इस दांडी यात्रा से प्रेरित होकर इस पदयात्रा का नाम 'दांडी मार्च 2.0' रखा गया है. 222 किलोमीटर की यह यात्रा नारायणपुर से रायपुर के बीच होगी. नारायणपुर को नक्सलवादियों की राजधानी और रायपुर राज्य सरकार की राजधानी है. इसे ध्यान में रखकर ही पदयात्रा इन दो शहरों के बीच हो रही है.
पदयात्रा का लक्ष्य सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच कभी न खत्म होने वाली लड़ाई को रोकना और बस्तर को हिंसा मुक्त बनाना है.

दांडी मार्च 2.0 को पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने हरी झंडी दिखाकर रवाना किया. पदयात्रियों को रवाना करने से पहले उन्होंने कहा, "जब गांधीजी ने नमक कानून तोड़ा तो भारत एक ब्रिटिश उपनिवेश था. लेकिन अब जब हमारी सरकार है तो हम संविधान का पालन करने और बस्तर में शांति लाने की अपील करते हैं. सरकार के साथ हम अन्य पक्षों से भी इस मुद्दे को सुलझाने के लिए शांतिपूर्ण तरीके से बात करने की अपील करते हैं.''
नई शांति प्रक्रिया
छत्तीसगढ़ में नई शांति प्रक्रिया की शुरुआत 2018 में हुई थी. इसका लक्ष्य नक्सलवाद या माओवाद प्रभावित मध्य भारत में शांति की स्थापना करना है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए अभी पिछले महीने ही एक समिति की गठन किया गया है.

वरिष्ठ पत्रकार शुभ्रांशु चौधरी नई शांति प्रक्रिया के संयोजक हैं. वो दांडी मार्च 2.0 में भी शामिल हैं. उन्होंने 'एशियाविल हिंदी' को बताया, '' गांधी जी की दांडी यात्रा से प्रेरित होकर इस पदयात्रा की शुरूआत की गई है. दांडी यात्रा में गांधी जी के साथ 78 लोग चल रहे थे, हमारा लक्ष्य भी यात्रा में उतने ही लोगों को शामिल करना था. लेकिन इस यात्रा में अभी हमारे साथ 100 से अधिक लोग चल रहे हैं. इससे लगता है कि लोगों को इस यात्रा से काफी उम्मीदें हैं.''
उन्होंने बताया कि इस यात्रा को लेकर स्थानीय लोगों में काफी उत्साह है और वो सहयोगात्मक प्रतिक्रिया दे रहे हैं. चौधरी ने बताया कि यात्रा में शामिल लोगों ने समस्या से आम लोगों को अवगत कराने के लिए एक नाटक तैयार किया है,जिसे लोगों के बीच पेश किया जाएगा.
दरअसल बीते साल अक्तूबर में बस्तर में एक जनमत संग्रह आयोजित किया गया था. टेलीफोन और ऑनलाइन आयोजित इस जनमत संग्रह में शामिल लोगों में से 92 फीसदी लोगों ने हिंसा के समाधान के लिए शांतिपूर्ण बातचीत के पक्ष में मतदान किया था.

पदयात्रा के रायपुर पहुंचने पर चैकले मांदी (गोंडी शब्द, जिसका अर्थ होता है शांति के लिए बैठक) आयोजित किया जाएगा. इसमें पीड़ित, सर्व आदिवासी समाज के सदस्य और सिविल सोसाइटी के लोग अपनी राय और मांगों को रखेंगे.
हिंसा का परिणाम
केंद्रीय गृह मंत्रालय के लेफ्ट विंग एक्स्ट्रीमिजम डिविजन का कहना है कि छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, बिहार, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और केरल वामपंथी उग्रवाद से पीड़ित राज्य हैं. इन उग्र वामपंथियों को माओवादी या नक्सलवादी के नाम से जाना जाता है.
सरकार के मुताबिक 2004 से 2019 के बीच नक्सलियों ने देश के अलग-अलग हिस्सों में 8 हजार 197 लोगों की हत्या की है. सरकार के मुताबिक मारे गए अधिकांश लोग आदिवासी थे.

यह सिक्के का एक पहलू है. दूसरा पहलू सरकार प्रायोजित हिंसा है. इसमें भी लोग मारे गए हैं और मारे जा रहे हैं. इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, छत्तीसगढ़ में सलवा जुड़ुम नाम से चलाया गया अभियान. इसमें भी बड़ी संख्या में लोग मारे गए थे और गांव के गांव उजाड़ दिए गए थे. वहीं बहुत से आम लोग पुलिस और सुरक्षा बलों की बरबर्रता के भी शिकार हुए हैं. इसका आंकड़ा अभी किसी भी पक्ष ने जारी नहीं किया है.