जल, जंगल और ज़मीन बचाने एकजुट हुए गुजरात के आदिवासियों ने भरी हुंकार
आदिवासियों की मांग है कि स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के आसपास के गांवों की जमीन निर्माण कार्यों के लिए नहीं ली जाए और आंदोलन कर रहे आदिवासियों पर दर्ज एफआईआर वापस ली जाए.
गुजरात के नर्मदा ज़िले में स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के आसपास के क्षेत्रों में निर्माण कार्यों का विरोध कर रहे हज़ारों आदिवासियों ने अपने विरोध को नए स्तर तक पहुंचा दिया है. 28 जनवरी को क़रीब 30 हज़ार आदिवासियों ने पैदल मार्च निकाला. मार्च केवड़िया गांव से शुरू हुआ और 25 किलोमीटर पैदल चल कर ये आदिवासी राजपीपला के ज़िलाधिकारी ऑफिस पहुंचे.
इस पदयात्रा में पुरुषों के साथ बड़ी तादाद में महिलाओं की भी हिस्सेदारी थी. इस मार्च में गुजरात के साथ-साथ राजस्थान और महाराष्ट्र के भी कुछ आदिवासियों ने भी हिस्सा लिया. इस मार्च का नेतृत्व कर रहे आदिवासी नेता राज वसावा के अनुसार, 'भूमि अधिग्रहण, विस्थापन, आदिवासी विस्तार को खत्म करने, संविधान की अनुसुची 5 का उल्लंघन करने से इन लोगों में गुस्सा भर गया है.'
इस रैली में भीलिस्तान टाईगर सेना, आदिवासी एकता परिषद, इंडीजीनस आर्मी ऑफ इंडिया, आदिवासी महासभा, ज़मीन आदिवासी बचाओ आंदोलन समिति ने हिस्सा लिया. नर्मदा घाटी के आदिवासियों ने अपनी कई मांगें जिलाधिकारी के माध्यम से गुजरात सरकार के सामने रखीं.
ज्ञापन में मांगें
निर्माण कार्यों के लिए स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के आस-पास के गांवों की भूमि ना ली जाए.
19 जनवरी को आदिवासी लोगों और कार्यकर्ताओं पर दर्ज एफआईआर वापस ली जाए.
साल 1961-62 में विकास परियोजना के लिए ली गई ज़मीनें, जिनका आज तक उपयोग नहीं हुआ है वो वापिस मूल मालिकों को लौटा दी जाए.
संविधान की अनुसूची 5 का पालन हो. ग्राम सभा को इससे संबंधित अधिकार दिए जाएं.
सरदार सरोवर बांध का पानी इन गांवों में सिंचाई और पीने की व्यवस्था के लिए दिया जाए.
केवड़िया और गुरुडेश्वर समेत सभी गांवों में पुलिस बल की तैनाती तत्कालप्रभाव से वापस ली जाए.
19 जनवरी को आदिवासी महिलाओं पर लाठियां बरसाने वाले पुलिस कर्मी – जिन्होंने राष्ट्रीय ध्वज का भी अपमान किया था, उन पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज हो.
केवड़िया और गुरुडेश्वर में चल रही विकास परियोजनाओं में आदिवासी नौजवानों को रोज़गार देने की व्यवस्था हो.
दरअसल 19 जनवरी को आदिवासियों ने हरियाणा भवन की नींव रखने पहुंचे मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का विरोध किया था. इस मौक़े पर प्रदर्शन कर रहे आदिवासियों की पुलिस से झड़प हुई जिसमें पुलिस ने इन पर लाठियां बरसाई थी.
स्टेच्यू ऑफ यूनिटी से प्रभावित हुए आदिवासी
अक्टूबर 2018 में प्रधानमंत्री ने सरदार पटेल के स्टेच्यू ऑफ यूनिटी का अनावरण किया. इस अवसर को मोदी सरकार ने एक राष्ट्रीय उपलब्धि की तरह पेश किया. सरकार ने ये दावा किया कि दुनिया की इस सबसे उंची मूर्ति को देखने के लिए दुनिया भर से लाखों लोग हर साल यहां आएंगें. इससे रोज़गार पैदा के अवसर पैदा होंगें. सो प्रधानमंत्री की इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट में करीब 72 गांवों की ज़मीन ले लगी गई. इस ज़मीन पर सरकार रेलवे स्टेशन, होटल और पर्यटकों के लिए दूसरी सुविधाएं बनाना चाहती है. लेकिन आदिवासियों का कहना है कि पांचवी अनुसूची के क्षेत्र में आदिवासियों की अनुमति के बिना ज़मीन का अधिग्रहण ग़ैर क़ानूनी है.
सरकार से नाराज़ इन आदिवासियों का कहना है कि वे अपनी मांगों को लेकर जल्दी ही दिल्ली कूच करेंगे और देश के ध्यान में इस मुद्दे को लाएंगें.