‘हसदेव अरण्य बचाओ’ की लड़ाई दिल्ली पहुंची, प्रेस क्लब में कॉन्फ्रेंस, पर्यावरण मंत्रालय को बताया ‘पर्यावरण विनाश मंत्रालय’
छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य के 1.70 लाख हेक्टेयर के घने जंगल में कोयला खनन के खिलाफ हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन और संयुक्त किसान मोर्चा ने दिल्ली के प्रेस क्लब में सांझी प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इसमें मुख्य रूप से आदिवासी किसानों के ऊपर हो रहे आक्रमण को केन्द्रित किया गया.
छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य के 1.70 लाख हेक्टेयर के घने जंगल में कोयला खनन के खिलाफ हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन और संयुक्त किसान मोर्चा ने दिल्ली के प्रेस क्लब में सांझी प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इसमें मुख्य रूप से आदिवासी किसानों के ऊपर हो रहे आक्रमण को केन्द्रित किया गया. और हसदेव के जंगल को स्थानीय लोगों के लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण बताया और सभी से इसे बचाने की अपील की गई. साथ ही सरकारों पर सारे नियमों को धता बताकर कोरपोरेट को फायदा पहुंचाने के लिए इन जंगलों को सौंपने का आरोप लगाया. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस मे, पर्यावरणीय रिसर्च से जुड़ी कांची कोहली, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला, संयुक्त किसान मोर्चा से युद्धवीर सिंह, हन्नान मौला और उमेश्वर सिंह अर्मो व हसदेव के कुछ स्थानीय लोग भी शामिल हुए. प्रेस वार्ता से ठीक पहले हसदेव अरण्य के प्रतिनिधिमंडल ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी से भी उनके आवास पर मुलाकात की थी.
गौरतलब है कि इस परियोजना के खिलाफ इसी महीने आदिवासियों ने तीन सौ किलोमीटर की पद यात्रा कर राज्यपाल और मुख्यमंत्री से मुलाक़ात की थी लेकिन सप्ताह भर बाद ही पिछले दिनों केंद्र सरकार ने परसा इलाके में ग़ैरक़ानूनी तरीके से कोयला खनन की वन स्वीकृति को मंज़ूरी दे दी. हालांकि इन क्षेत्रों में जमीन अधिग्रहण के लिए ग्रामसभाओं की अनुमति जरूरी है. लेकिन आरोप है कि कोयला खनन परियोजनाओं को हासिल करने के लिए पर्यावरणीय स्वीकृति की प्रक्रिया के दौरान फर्जी ग्रामसभाओं का आयोजन कर फैसला लिया गया. बता दें कि इस इलाके को पर्यावरण मंत्रालय ने 2010 में ‘नो गो एरिया’ घोषित किया था.
इस मौके पर कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए पर्यावरणविद कांची कोहली ने कहा कि हसदेव बचेगा तो ही देश बचेगा. क्योंकि हसदेव अरण्य पूरे देश के पर्यावरण को संतुलित रखता है. हसदेव न केवल आजीविका, जैव विविधतता और वन्य जीवों के संरक्षण के लिए ज़रूरी है बल्कि यह पूरी धरती के सामने आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए भी ज़रुरी है. वहीं संयुक्त किसान मोर्चा के नेता युद्धवीर सिंह ने आदिवासी किसानों के मुद्दों पर समर्थन जताते हुए कहा कि वन क्षेत्र के आदिवासी किसानों के मुद्दे भी मैदानी किसानों के मुद्दों जैसे ही अतिमहत्त्वपूर्ण हैं. आदिवासी समुदाय के लोगों ने इन घने जंगलों को पीढ़ियों से बचा कर रखा है और उनके जंगल बचाने के संघर्ष को भी संयुक्त किसान मोर्चा अपना समर्थन दे रहा है और आगे इसे लेकर एक निश्चित रणनीति बनाई जाएगी.

हसदेव से शामिल होने आईं स्थानीय ग्रामीण शकुंतला एशियाविल से बातचीत में कहती हैं, “हम खेती करते हैं और अधिकतर उसे जंगल पर आश्रित हैं. लेकिन हमारे यहां जो जल, जंगल, जमीन है उसको लूटने की कोशिश की जा रही है. अगर जंगल खत्म हो जाता है तो हमारी जीविका के सारे साधन समाप्त हो जाएंगे और वहां जितने आदिवासी रहते हैं उनका पूरी तरीके से अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा. हम अपने जंगल, जमीन को नहीं देना चाहते उसे संरक्षित रखना चाहते हैं.”

इस मौके पर एक प्रेस विज्ञप्ति भी जारी की गई जिसमें इससे संबंधित बातों और मांगों का जिक्र किया गया है.
इस विज्ञप्ति के मुताबिक, 2015 से केंद्र सरकार ने कानूनों में संशोधन करके, लोगों की सहमति को दरकिनार करते हुए और अडानी और अन्य कंपनियों को कीमती कोयला-समृद्ध भूमि सौंपकर अपने साथियों को संतुष्ट करने के लिए उद्देश्य से झुकी है. हसदेव अरण्य जैसे पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण ‘नो-गो’ क्षेत्रों की रक्षा के लिए पूर्व प्रतिबद्धताओं के बावजूद हसदेव अरण्य में सात कोयला ब्लॉक आवंटित किए गए हैं. अकेले छत्तीसगढ़ में 2015 और 2020 के बीच 7.6 करोड़ टन सालाना की राशि के 7 कोयला ब्लॉक इस मार्ग के माध्यम से अदानी को सौंपे गए हैं ताकि अदानी इन ब्लॉकों का खनन करके मुनाफा कमा सकें. और जिन सार्वजनिक उपक्रमों को कोयला ब्लॉक आवंटित किए गए हैं, उन्होंने बड़े कॉरपोरेट घरानों के साथ “माइन डेवलपर कम ऑपरेटर” अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं, जिससे वे पिछले दरवाजे से खदानों के वास्तविक मालिक बन गए हैं.
इस मौके पर हसदेव अरण्य बचाओ आंदोलन के प्रमुख उमेश्वर सिंह अर्मो ने कहा कि सरकार द्वारा हमारे अधिकारों को कुचलने के लिए नए नए कानून लाकर जमीन अधिग्रहित की जा रही है यह बहुत ही दुखद है. हंसदेव देश और संविधान को बचाने की लड़ाई है और इसी बात को हम केंद्र सरकार, कॉल मंत्रालय, पर्यावरण विभाग को भी लगातार कहते आए हैं. क्योंकि सीधा-सीधा अगर हम देखें तो पहले समय में जब किसी को बीमारी होती थी तो ऑक्सीजन की कमी जैसी बातें नहीं आती थी कि ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत हो रही है लेकिन अभी कोरोना के दौरान आपने देखा की ऑक्सीजन की कमी की बातों हुई. हम यही बताना चाह रहे हैं कि हंसदेव का जो जंगल है वह भी ऑक्सीजन का काम कर रहा था और उसी को बचाने की हम लड़ाई लड़ रहे है. दूसरा, जंगल कटने से हाथी खेतों की तरफ बढ़ते हैं जिससे किसानों का नुकसान होता है. साथ में हाथियों की मौत हो रही है. और इस बात को हम सभी जगह उठाते आ रहे हैं चाहे वह धरने के जरिए हो चाहे दूसरे तरीके से पैदल यात्रा करके या फिर संवैधानिक रूप से ज्ञापन देकर यह हम लड़ाई लंबे लंबे समय से लड़ रहे हैं. और यही कहेंगे कि अगर हमें बचना है देश को बचाना है तो फिर हंसते को बचाना बहुत जरूरी है.”विज्ञप्ति में आरोप लगाया गया है कि अडानी के खनन कार्यों को सुविधाजनक बनाने के लिए, सरकार पैसा और वन अधिकार अधिनियम के तहत “ग्राम सभा” की सहमति की आवश्यकता को दरकिनार कर रही है और बिना परामर्श के ही मदनपुर दक्षिण, गिधमुडी पटुरिया, केते एक्सटेंशन और परसा कोयला ब्लॉक के लिए भूमि अधिग्रहण के लिए अधिसूचना जारी की है. दुर्भाग्य से, छत्तीसगढ़ राज्य सरकार इन स्पष्ट रूप से अवैध और अलोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के प्रति मूकदर्शक बनी हुई है. दो साल से समुदाय इस फर्ज़ी ग्राम सभा का विरोध कर रहा है, लेकिन मुख्यमंत्री के आश्वासन के बावजूद राज्य सरकार इस मामले पर संज्ञान लेने में नाकाम रही है.
अंत में एशियाविल से बातचीत में पर्यावरणविद और लगभग एक दशक से हसदेव पर नजर रख रहीं कांची कोली कहती है, “जो नारा है हंसदेव बचेगा देश बचेगा यह समझना बहुत आवश्यक है क्योंकि आज की जो परिस्थिति है और कोविड के बाद यह समझना जरूरी है कि पर्यावरण को बचाना कितना जरूरी है, स्वास्थ्य को बचाना कितनी जरूरी है खाद्य सुरक्षा के लिए जरूरी है और लोगों की आजीविका कितनी जरूरी है. अगर इन सारे पहलुओं को समझ के हम संविधान की ओर निकले तो देश निश्चित ही आगे बढ़ सकता है क्योंकि हंसदेव कोई एक कोयले की खदान नहीं है बल्कि स्थानीय समुदाय, हाथी, जैव विविधता सभी का इलाका है.”

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