सड़क पर आई लैटरल इंट्री के खिलाफ लड़ाई, जतंर-मंतर पर दलितों ने भरी हुंकार
केंद्र सरकार के मंत्रालयों और विभागों में वरिष्ठ पदों पर सीधी भर्तियों के खिलाफ लोग अब लामबंद होने लगे हैं. मंगलवार को इसके खिलाफ दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक बड़ा प्रदर्शन आयोजित किया गया.
केंद्र सरकार के मंत्रालयों और विभागों में लैटरल इंट्री का अब सड़क पर विरोध होने लगा है. लैटरल इंट्री के विरोधी इसे संविधान के खिलाफ और आरक्षण खत्म करने वाला मान रहे हैं. इसके विरोध में अब लोग सड़कों पर उतरने लगे हैं. मंगलवार को नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर दलितों ने इसके खिलाफ हुंकार भरी. इस विरोध प्रदर्शन की अपील मिशन जय भीम नाम के संगठन ने की थी.

दरअसल नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने ज्वाइंट सेक्रेटरी और डायरेक्टर स्तर के 30 पदों को लैटरल इंट्री से भरने का फैसला किया है. ये पद केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के लिए हैं. जिन 30 पदों का विज्ञापन निकाला गया है, उनमें से 3 पद ज्वाइंट सेक्रेटरी और 27 पद डायरेक्टर के लिए हैं. इन पदों पर भर्ती के लिए संघ लोक सेवा आयोग ने 5 फरवरी को विज्ञापन निकाला था. इसके लिए आवेदन करने की अंतिम तिथि 22 मार्च है.
यूपीएससी का विज्ञापन
विज्ञापन के मुताबिक कांट्रैक्ट के आधार पर होने वाली यह भर्ती 3 साल के लिए होगी. लेकिन इसे बढाकर 5 साल तक भी किया जा सकता है. खास बात यह है कि ये सभी पद अनारक्षित हैं, यानि की इसमें आरक्षण नहीं मिलेगा.
नरेंद्र मोदी की सरकार इससे पहले 2018 में इस तरह से ज्वाइंट सेक्रेटरी स्तर के 9 पदों पर भर्ती कर चुकी है. उसमें भी किसी तरह के आरक्षण का पालन नहीं किया गया था. पहली बार सरकार ने जब लैटरल इंट्री के लिए विज्ञापन निकाला था तो 9 पदों के लिए 6 हजार 77 लोगों ने आवेदन किया था. संघ लोक सेवा आयोग ने इनमें से अंबर दुबे को नागरिक उड्डयन, अरुण गोयल को वाणिज्य, राजीव सक्सेना को आर्थिक मामले, सुजीत कुमार बाजपेयी को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन, सौरभ मिश्र को वित्तीय सेवाएं, दिनेश दयानंद जगदाले को नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा, सुमन प्रसाद सिंह को सड़क परिवहन और राजमार्ग, भूषण कुमार को शिपिंग और काकोली घोष को कृषि, सहयोग और किसान कल्याण के लिए चुना था. इनमें से कोई भी व्यक्ति एससी-एसटी, ओबीसी या अल्पसंख्यक वर्ग का नहीं है.

दिल्ली सरकार में मंत्री और आम आदमी पार्टी (आप) के नेता राजेंद्र पाल गौतम ने कहा कि हर साल दो करोड़ नौकरियां देने का वादा कर सत्ता में आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब लैटरल इंट्री से लोगों की भर्ती कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि देश की भावनाओं को समझते हुए सरकार को लैटरल इंट्री को बंद कर देना चाहिए.
क्यों नहीं मिल रहा है आरक्षण
जंतर-मंतर पर हुए विरोध प्रदर्शन में दलितों के साथ-साथ ओबीसी और अल्पसंख्यक समाज के लोग भी शामिल थे. दिल्ली के यमुना विहार इलाके से आए शब्बीर खान की चिंता कुछ अलग है. लैटरल इंट्री का विरोध के सवाल पर उन्होंने कहा कि सरकार अगर इस तरह से ही लोगों की भर्ती करेगी तो पढ़-लिखकर आईएएस-आईपीएस बनने का सपना देखने वाले दलित, पिछड़ों और अल्पसंख्यक युवाओं को धक्का खाना पड़ेगा.
प्रदर्शन में आम आदमी पार्टी की छात्र शाखा छात्र-युवा संघर्ष समिति (सीवाईएसएस) के कार्यकर्ता भी शामिल हुए. सीवाईएसएस के जेएनयू शाखा के प्रमुख निखिल कुमार ने कहा कि नरेंद्र मोदी की सरकार पूंजीवाद और ब्राह्मणवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही लैटरल इंट्री की भूमिका बनानी शुरू कर दी थी. उन्होंने बताया कि 2014 में सिविल सेवा के 1364 पदों के लिए यूपीएससी ने विज्ञापन निकाला था. वहीं 2020 में निकाले गए विज्ञापन में इन पदों की संख्या घटकर 740 ही रह गई. इस तरह सरकार ने सिविल सेवा के पदों में 40 फीसदी की कटौती कर दी. बाद में इन पदों को लैटरल इंट्री से भरा जाएगा. उन्होंने बताया कि नरेंद्र मोदी जिस तरह से आगे बढ़ रहे हैं, उस पर आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल ही नियंत्रण लगा सकते हैं.

संविधान बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक और दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाले प्रोफेसर रतनलाल लैटरल इंट्री के खिलाफ काफी मुखर हैं. लैटरल इंट्री और किसानों के आंदोलन के समर्थन में संविधान बचाओ संघर्ष समिति ने 7 मार्च को 'भारत बंद' की अपील की है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस की सरकारों का गवर्नेंस ब्रिटेन के लिबरलिज्म से आता था. लेकिन नरेंद्र मोदी की सरकार के गवर्नेंस का दर्शन मुनस्मृति से आता है. वो कहते हैं कि चाहें वह रोहित वेमुला की आत्महत्या का मामला हो या लेटरल इंट्री का, ये कोई घटनाएं नहीं हैं बल्कि ये इस बात के संकेत हैं कि दलितों-पिछड़ों के हकों को छीनकर पेशवाई की स्थापना फिर की जाएगी. उन्होंने सवाल उठाया कि लैटरल इंट्री के सवाल पर आयरन गेट मानी जानी वाली देश की आईएएस लॉबी चुप क्यों है.
भाजपा खुले आम अपनों को लाने के लिए पिछला दरवाज़ा खोल रही है और जो अभ्यर्थी सालों-साल मेहनत करते हैं उनका क्या.
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) February 7, 2021
भाजपा सरकार अब ख़ुद को भी ठेके पर देकर विश्व भ्रमण पर निकल जाए वैसे भी उनसे देश नहीं संभल रहा है. pic.twitter.com/4TpkYIYorD
लैटरल इंट्री के खिलाफ सपा प्रमुख अखिलेश यादव और कांग्रेस नेता उदित राज भी सवाल उठा चुके हैं. सपा के राज्य सभा सांसद प्रोफेसर रामगोपाल यादव ने 9 फरवरी को राज्य सभा में इस मसले को उठाया भी था.
लैटरल इंट्री देश में पहली बार नहीं हो रहा है. यह बहुत पहले से होता आ रहा है. अंतर सिर्फ इतना आया है कि नरेंद्र मोदी सरकार ने इस काम को विज्ञापन निकालकर करना शुरू किया है.
इससे पहले की सरकारें डॉक्टर मनमोहन सिंह, विमल जालान, विजय केलकर, मोंटेक सिंह आहलुवालिया, राकेश मोहन, जयराम रमेश और अरविंद सुब्रह्मण्यम जैसे लोगों को लैटरल इंट्री के जरिए ही लेकर आई थीं. अपने काम की बदौलत ही डॉक्टर मनमोहन सिंह और जयराम रमेश जैसे लोग राजनीति में भी आए और प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्री पद तक का सफर तय किया.

कांग्रेस नेता एम विरप्पा मोइली के नेतृत्व वाले दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने भी सरकार में वरिष्ठ पदों पर लैटरल इंट्री से लोगों के भरे जाने की सिफारिश की थी.
अब देखना यह है कि सरकार ने इन विरोध-प्रदर्शनों को कितनी गंभीरता से लेती है. लैटरल इंट्री के विरोधियों की सबसे बड़ी आपत्ति लैटरल इंट्री में आरक्षण के नियमों का पालन न करना ही है. क्या सरकार इस दिशा में कोई कदम उठाएगी.