एक दशक से ज्यादा से जरूरतमंदों के शवों को मुफ्त वाहन उपलब्ध कराने वाले प्रयागराज के फैजुल की कहानी
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज जिले में पिछले एक दशक से ज्यादा से एक मुस्लिम व्यक्ति ने सांप्रदायिक सौहार्द की बड़ी मिसाल पेश की है. यहां प्रयागराज के अतरसुइया इलाके के फैजुल पिछले 10 वर्षों से अधिक समय से गरीबों, लावारिशों और जरूरतमंदों के शवों को बिना किसी भेदभाव के मुफ्त में वाहन प्रदान करने का काम कर रहे हैं.
कोरोना काल में दूसरी लहर के दौरान भी जब बहुत से अपने लोग भी मदद के लिए सामने आने में हिचकिचा रहे थे, उस मुश्किल समय में भी फैजुल पूरी शिद्दत से शवों को अस्पताल से घर या घर से शमशान व कब्रिस्तान पहुंचा रहे थे. और वह काम आज भी जारी है. आज भी जब मैंने उन्हें फोन किया तो वे शव लेने के लिए ही रास्ते में जा रहे थे. चार साल पहले तक वह ट्राली से शवों को ढोते थे, लेकिन नीलामी में एक वाहन मिलने पर उन्होंने कुछ लोगों की मदद से वाहन को शव ढोने लायक बनवाया और अब उसी वाहन से शव ढोते हैं. हालांकि उन्हें किसी स्थानीय नेता से कोई मदद नहीं मिली है.
फैजुल ने बताया कि उनके काम का कोई तय समय नहीं है. कहीं से भी फोन आने पर वह अपने ड्राइवर के साथ शव को उसके गंतव्य तक पहुंचाने के लिए निकल पड़ते हैं. फैज़ुल खुद गरीब परिवार से हैं और अपनी अम्मी के साथ किराए के मकान में रहते हैं. अब्बू का कई साल पहले इंतकाल हो चुका. फैजुल के दो भाई हैं, जो अलग रहते हैं.
कहा जा सकता है कि इसके बावजूद भी वह मुफ्त में लोगों को शव वाहन मुहैया कराकर तमाम सक्षम लोगों और सिस्टम को आइना दिखाने का काम भी कर रहे हैं.

पिछले दिनों कोविड लहर के कठिन समय के दौरान भी उनका अधिकांश समय उन लोगों की मदद करने में व्यतीत होता था, जो सबसे ज्यादा जरूरतमंद हैं. कोरोना वायरस से फैली वैश्विक महामारी के मुश्किल दौर में भी जहां लोग अपनों से मुंह मोड़ रहे थे, वहीं फैजुल ने कोविड-19 रोगियों के मृत शरीर को एक स्थान से दूसरे स्थान पर लेकर जाने का काम किया. और जरूरतमंदों को यह सेवा मुफ्त में प्रदान की. यानि एक तरफ जहां महामारी में शवों को घाट तक पहुंचाने में एम्बुलेंस व शव वाहन या तो मिलते नहीं थे या फिर इनके लिए मुंहमांगी कीमत वसूली जा रही थी. ऐसे में फैजुल ज़रूरतमंदों के लिए मसीहा बनकर सामने खड़े थे. और कहीं से भी फोन आने पर अपना शव वाहन लेकर वहां पहुंच जाते थे और बिना किसी शुल्क के गरीब और लावारिस शवों के वाहन का इंतजाम करते थे.

वह कभी किसी से पैसे नहीं मांगते हैं. किसी ने पैसे दे दिए तो उससे ड्राइवर की सैलरी और गाड़ी के मेंटेनेंस में खर्च कर देते हैं. उन्होंने बताया कि जनता के सहयोग से ही वह समाजसेवा कर पा रहे हैं क्योंकि उनकी आमदनी का कोई जरिया नहीं है. शव ढोते समय सामर्थ्यवान लोग डीजल का पैसा दे देते हैं जिससे उनकी गाड़ी चलती रहती है. फैजुल ने गाड़ी चलाने के लिए एक ड्राइवर भी रखा है, जो कुछ पैसा मिलता है, इस ड्राइवर को देते हैं.

फैजुल ने एशियाविल से बातचीत में बताया, “मैंने चार बहन और दो भाइयों की शादी करने के बाद बस से समाज सेवा के लिए यही काम करना शुरू कर दिया. यह काम हम प्रयागराज और उसके आसपास के इलाके में 50-60 किलोमीटर तक करते हैं. हमने हिंदू मुस्लिम का कोई भेदभाव नहीं किया.हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई कोई भी हो बिना किसी भेदभाव के हम चले जाते हैं. दिन हो रात हो हमारा कोई समय नहीं है. जहां से भी खबर आती है बस चल देते हैं. साथ ही थाने की लावारिस लाशों को भी लाते हैं. अभी इस गाड़ी से 4 साल से कर रहे हैं उससे पहले 12-13 साल ट्रॉली से भी किया था. और जब ट्रॉली से करते थे तो बिल्कुल कुछ नहीं लेते थे लेकिन अब गाड़ी में अगर कोई अपनी मर्जी से दे देता है तो ले लेते हैं उससे डीजल वगैरह भरा लेते हैं ड्राइवर को दे देते हैं. अभी महामारी (कोविड) के 45 दिनों में हमने 650 बॉडी अपनी गाड़ी से लेकर गए थे. महामारी की वजह से लोग लाश को छूते नहीं थे लेकिन हम अपने ड्राइवर के साथ उन्हें उठाते थे. हमें समाज सेवा में ही अपना जीवन बिताना है. जब मर जाएंगे तभी यह काम बंद होगा.”

बहरहाल, कोरोना की महामारी के इस मुश्किल दौर में जब हर दिन प्रयागराज में दर्जनों मौतें हो रही थीं और शवों के अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाटों पर घंटों लाइन में लगकर इंतजार करना पड़ रहा था. उस वक्त में उसके बाद आज भी फैजुल लोगों के लिए न केवल मददगार के रुप में सामने आये, बल्कि लोगों के लिए मसीहा भी बने हुए हैं. ऐसे में उन लोगों को भी फैजुल से प्रेरणा लेकर मानवता की सेवा करनी चाहिए जो आपदा में अवसर की तलाश कर रहे थे. एशियाविल भी फैज़ुल के इस काम की सराहना करता है