Proflie: जानिए उनके बारे में, जिनकी WhatsApp के ज़रिए जासूसी की गई
जिन लोगों के नाम अब तक सामने आए हैं, उनमें से ज़्यादातर मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील और पत्रकार हैं.
स्पाईवेयर पेगासस के ज़रिए लोगों के व्हाट्सऐप में घुसकर जासूसी करने का मामला बड़ा हो गया है. भारत में दो दर्जन लोगों की कथित तौर पर जासूसी करने के मामले में इंडियन एक्सप्रेस ने कई पीड़ितों के नाम सार्वजनिक किए हैं. इनमें दलित एक्टिविस्ट से लेकर, पत्रकार, प्रोफेसर और वकील जैसे अलग-अलग क्षेत्रों के लोग शामिल हैं. पेगासस एक इज़रायली स्पाईवेयर है जिसके ज़रिए इन लोगों के व्हाट्सऐप में घुसकर इनकी सारी गतिविधियों पर नज़र रखी जा रही थी.
यही नहीं, एक बार अगर पेगासस फोन में इंस्टॉल हो गया तो निगरानी रखने वाला व्यक्ति पीड़ित के फोन का कैमरा तक ऑन कर सकता है. उनके फोन के सारे कॉन्टैक्ट्स, सारे चैट्स, एसएमएस, गैलरी समेत सबकुछ देख-सुन सकता है. फोन कॉल पर होने वाली बातचीत भी इसके ज़रिए सुनी जा सकती है. पेगासस को इज़रायल के एक एनजीओ ने डेवलप किया है. पेगासस का कहना है कि उसने सिर्फ़ ज़िम्मेदार प्राधिकरण को ही इसका एक्सेस दिया है.
मामले के तूल पकड़ने के बाद व्हाट्सऐप की मालिक कंपनी फ़ेसबुक ने पेगासस के ख़िलाफ़ अमेरिका की एक अदालत में मुक़दमा दर्ज कराया है. भारत में जिन लोगों की जासूसी की गई, वे हैं:
1. आनंद तेलतुंबड़े: आनंद प्रोफ़ेसर, स्कॉलर, ऐक्टिविस्ट और लेखक हैं. भारत में जाति व्यवस्था और संघर्ष पर उन्होंने कई किताबें लिखी हैं. दलित अधिकार के वो मुखर समर्थक हैं. फ़िलहाल वे गोवा इंस्टीट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट में पढ़ाते हैं. अब तक वो 9 नौ किताबें लिख चुके हैं. आनंद तेलतुंबड़े मार्क्सवादी-अंबेडकरवादी परंपरा के चिंतक हैं. पिछले साल पुलिस ने उनके घर में व्यापक तलाशी लेने के बाद उन्हें हिरासत में लिया था. पुलिस ने आरोप लगाया था कि भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में आनंद तेलतुंबड़े का भी हाथ है.
पहली लाइन में: सीमा आज़ाद, शालिनी गेड़ा, संतोष भारतीय; दूसरी लाइन: बेला भाटिया, सरोज गिरी, आनंद तेलतुंबड़े और सबसे नीचे शुभ्रांशु चौधरी
2. बेला भाटिया: बस्तर में रहती हैं. छत्तीसगढ़ में बीते कई साल से राजकीय दमन के ख़िलाफ़ वे बेहद मुखर रही हैं. बेला भाटिया देश की जानी-मानी एक्टिविस्ट हैं. वे सीएसडीएस की एसोसिएट फेलो के साथ-साथ टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज़ की मानद प्रोफ़ेसर रह चुकी हैं. ग्रामीण भारत में दलितों, आदिवासियों और वंचितों के हालात को लेकर उन्होंने व्यापक अध्ययन किया है. खाड़ी युद्ध पर भी बेला भाटिया ने किताबें लिखी हैं.
3. रवीन्द्रनाथ भल्ला: मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं. भल्ला तेलंगाना हाई कोर्ट में वकील हैं साथ ही कमेटी फॉर रिलीज़ ऑफ़ पॉलिटिकल प्रिजनर्स यानी सीआरपीपी के आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के महाचिव हैं. सीआरपीपी की स्थापना 2007 में हुई थी. एसएआर गिलानी इसके पहले अध्यक्ष थे. भीमा-कोरेगांव मामले में गिरफ़्तार रोना विल्सन भी इस संस्था से जुड़े थे. सीआरपीपी की स्थापना अलग-अलग आरोपों में जेल में बंद मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की रिहाई सुनिश्चित कराने के लिए की गई थी.
4. शालिनी गेड़ा: जगदलपुर लीगल एड नामक संस्था चलाती हैं. भीमा-कोरेगांव मामले में जेल में बंद मानवाधिकार कार्यकर्ता और वकील सुधा भारद्वाज की क़रीबी हैं. फ़िलहाल उनका केस भी लड़ रही हैं. बस्तर में रहती हैं. छत्तीसगढ़ में राजकीय दमन के ख़िलाफ़ शालिनी गेड़ा लगातार बोलती रहती हैं. आदिवासियों को क़ानूनी मदद पहुंचाती हैं.
5. सीमा आज़ाद: फ़रवरी 2010 में यूपी पुलिस ने सीमा आज़ाद को उनके पति विश्वविजय के साथ गिरफ़्तार किया था. पुलिस ने उन पर माओवादियों से जुड़े होने का आरोप लगाया था. बाद में दोनों रिहा हुए. सीमा आज़ाद दस्तक नामक पत्रिका निकालती हैं. वे पीयूसीएल से जुड़ी रही हैं. मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं. कविताएं भी लिखती हैं. उत्तर प्रदेश में ही रहती हैं.
6. सरोज गिरी: सरोज दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र पढ़ाते हैं. मानवाधिकार के मुद्दे पर मुखर रहते हैं. माओवाद पर हमले के नाम पर चलाए गए ऑपरेशन ग्रीन हंट के मुखर आलोचक रहे हैं. आदिवासियों के दमन के ख़िलाफ़ लगातार लिखते-बोलते रहते हैं. असहमति के अधिकार के समर्थक हैं. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर हो रहे हमले के ख़िलाफ़ भी वो आवाज़ उठाते रहे हैं.
7. शुभ्रांशु चौधरी: बीबीसी के पूर्व पत्रकार शुभ्रांशु चौधरी बीते कई साल से छत्तीसगढ़ में सक्रिय हैं. वे वहां पर सीजी नेट स्वर नाम से मोबाइल न्यूज़ ऐप चलाते हैं. 2014 में उन्होंने एडवर्ड स्नोडन को पछाड़ते हुए डिजिटल एक्टिविज़्म अवॉर्ड जीता था. लेट्स कॉल हिम वासु नाम से उन्होंने एक किताब भी लिखी है जो छत्तीसगढ़ में माओवाद, आदिवासी और पुलिस के त्रिकोणीय संघर्ष पर आधारित है.
8. आशीष गुप्ता: असमिया अख़बार प्रतिदिन के दिल्ली में ब्यूरो प्रमुख हैं. मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं. पीयूडीआर से जुड़े हुए हैं. भीमा-कोरेगांव मामले में गिरफ़्तार हुए गौतम नवलखा के क़रीबी हैं. आदिवासी और दलित अधिकारों के लिए बोलते-लिखते रहे हैं. देश में घूम-घूमकर कई जगहों से फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट जारी की है. कॉरपोरेट्स और सरकार के नेक्सस के चलते ग़रीबों पर होने वाले ज़ुल्म के विरोध में वो बोलते रहे हैं.
9. निहाल सिंह राठौड़: नागपुर में वकालत करते हैं. भीमा-कोरेगांव मामले में गिरफ़्तार वकील सुरेन्द्र गाडलिंग के वो जूनियर हैं. ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क के नागपुर चैप्टर को हेड करते हैं. फ़िलहाल वो सुरेन्द्र गाडलिंग का केस लड़ रहे हैं.
10. अंकित ग्रेवाल: पेशे से वकील हैं. मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं. चंडीगढ़ में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में वकालत करते हैं.
11. जगदीश मेश्राम: महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में रहते हैं. मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं. वकालत करते हैं. इंडियन एसोसिएशन ऑफ़ पीपल्स लॉयर्स से भी जुड़े हुए हैं. आदिवासी और दलित अधिकारों के मुखर समर्थक हैं.
12. विवक सुंदर: मुंबई में रहते हैं. पर्यावरणविद हैं. मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं. जल-जंगल-ज़मीन की लड़ाई में मुखर रहे हैं. प्राकृतिक संपदाओं की लूट के ख़िलाफ़ वे बोलते रहते हैं.
13. राजीव शर्मा: दिल्ली में रहते हैं. पत्रकार और स्तंभकार हैं. रणनीतिक मुद्दों पर कॉलम लिखते हैं.
14. संतोष भारतीय: जनता दल के पूर्व सांसद हैं. दिल्ली में रहते हैं. चौथी दुनिया नाम से अख़बार निकालते हैं. अन्ना हज़ारे के आंदोलन से जुड़े रहे हैं. 1989 में एक मात्र बार वो फर्रुखाबाद सीट से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे थे.
15. अजमल ख़ान: दिल्ली में रहते हैं. स्वतंत्र शोधकर्ता और मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं. टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज़ से पढ़े हैं.
16. सिद्धांत सिब्बल: दिल्ली में रहते हैं. पत्रकार हैं. ज़ी समूह के चैनल वियॉन में कूटनीति और रक्षा विषय कवर करते हैं.
17. अमर सिंह चहल: चंडीगढ़ में रहते हैं. वकील हैं. मानवाधिकार के मुद्दे पर मुखर रहते हैं. लॉयर्स फॉर ह्यूमन राइट्स इंटरनेशनल से जुड़े हैं.
18. डिग्री प्रसाद चौहान: छत्तीसगढ़ में रहते हैं. मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं. पीयूसीएल से जुड़े हैं. दलित और आदिवासी अधिकारों के बारे में लगातार बोलते रहते हैं.