माओवादियों और सुरक्षाबलों की लड़ाई का समाधान क्या होगा
मध्य भारत के कई राज्यों में माओवादियों और सुरक्षाबलों के बीच जारी संघर्ष का समाधान तलाशने के लिए हिंदी, गोंडी और हल्बी भाषा में जनमत सर्वेक्षण कराया जा रहा है. इसके नतीजे 2 अक्तूबर को जारी किए जाएंगे.
भारत के कई राज्यों में इस समय माओवादी आंदोलन सक्रिय है. माओवादी देश में हथियार के बल पर अपनी सरकार की स्थापना के उद्देश्य से हथियारबंद संघर्ष में शामिल हैं.

माओवादियों और सुरक्षाबलों की बीच यह लड़ाई पिछले 40 सालों से जारी है. इस लड़ाई में अबतक हजारों लोगों की मौत हो चुकी है. मरने वालों में माओवादी लड़ाकों और सुरक्षा बलों के जवानों के साथ-साथ बड़ी संख्या में आम आदिवासी भी शामिल हैं.
इस लड़ाई का परिणाण यह है कि ये इलाके सुरक्षा बलों की छावनी में बदल चुके है और माओवादियों के कब्जे वाले इलाकों में विकास की किरण आज तक नहीं पहुंच पाई है. आदिवासी बहुल ये इलाके आज बिजली, सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं से भी महरूम हैं.
इस लड़ाई और इसके समाधान पर लोगों की राय जानने के लिए 'नई शांति प्रक्रिया' ने एक राय़शुमारी शुमारी या जनमत संग्रह शुरू किया है. 'नई शांति प्रक्रिया' छत्तीसगढ़ के कई संगठनों का एक समूह है.
मिस्डकॉल देकर लें भाग
इस प्रक्रिया में भाग लेने वाले लोगों को 7477288444 पर मिस्ड कॉल देना होगा. इसके बाद से एक दूसरे नंबर से फोन आएगा. उसके जवाब में जवाब देने वाला व्यक्ति हिंदी, गोंडी और हल्बी भाषा में अपनी बात रख सकता है. वो इन भाषाओं में अपने विचार को व्यक्त कर सकते हैं. गोंडी और हल्बी, छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में बोली जाने वाली प्रमुख भाषाएं हैं.
इसके अलावा शहरी क्षेत्र के लोगों के लिए ऑनलाइन रायशुमारी भी की जा रही है. इन दोनों माध्यमों के जरिए लोग 2 अक्तूबर तक अपनी राय जाहिर कर सकते हैं. 2 अक्तूबर को होन वाली 'चुप्पी तोड़ो' नाम की ई रैली में इस जनमत सर्वेक्षण के परिणाम घोषित किए जाएंगे.

इसमें शामिल होने वाले लोगों से यह पूछा जाएगा कि कितने लोग यह मानते हैं कि माओवादियों और पुलिस के बीच पिछले 40 साल से चल रही हिंसा एक राजनैतिक लड़ाई है और इसका समाधान बातचीत से ढूंढा जाना चाहिए. कितने लोग यह मानते हैं कि इसका समाधान प्रति हिंसा यानि पुलिस या सेना की मदद से ही मिल सकता है.
इस जनमत संग्रह के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए एक व्यापक प्रचार अभियान चलाया जा रहा है. इसके लिए कार्यकर्ता मोटरसाइकिलों से गांवों में जाकर लोगों को इस जनमत संग्रह के बारे में बता रहे हैं. ये कार्यकर्ता उन इलाकों में भी जा रहे हैं, जो कथित तौर पर माओवादियों के कब्जे में है.
'नई शांति प्रक्रिया' के संयोजक शुभ्रांशु चौधरी ने बताया कि 'चैकले मांदी' नाम से बैठकों की एक श्रृंखला भी शुरू की जा रही है. 'चैकले मांदी' दरअसल गोंडी भाषा का एक शब्द है. इसका अर्थ होता है, 'सुख शांति के लिए बैठकें'
उन्होंने बताया कि इन बैठकों में इन बैठकों में दोनों तरफ की हिंसा से पीड़ित परिवारों को शामिल किया जाएगा. इन बैठकों में हिंसा को रोकने पर उनकी राय मांगी जाएगी और आगे के कार्यक्रम की रूपरेखा भी बनाई जाएगी.
चौधरी ने सरकारी आंकड़ों के हवाले से बताया कि पिछले 20 साल से इस तरह की हिंसा में 12 हजार से अधिक लोगों की जान गई है. इसमें 27 सौ पुलिसकर्मी शामिल हैं.