क्या करने उत्तर प्रदेश आए हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खासमखास अरविंद कुमार शर्मा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी आईएएस अधिकारी अरविंद कुमार शर्मा के रिटायरमेंट से दो साल पहले वीआरएस लेकर उत्तर प्रदेश में विधान परिषद का चुनाव लड़ने का क्या है नफा-नुकसान बता रहे हैं राजेश कुमार आर्य
दिल्ली में तैनात 1988 बैच के गुजरात कैडर के एक आईएएस अधिकारी ने रिटायरमेंट से करीब 2 साल पहले 12 जनवरी को वीआरएस या स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली. इसके दो दिन वो लखनऊ जाकर बीजेपी में शामिल हो गए. इसके अगले दिन 15 जनवरी को बीजेपी ने उन्हें विधान परिषद चुनाव में उतारने का ऐलान कर दिया. उनका निर्विरोध चुना जाना तय है.

अरविंद कुमार शर्मा नाम के इस पूर्व आईएएस ने इन दिनों उत्तर प्रदेश की राजनीति में हलचल मचा रखी है. बीजेपी और सरकार के नेता-कार्यकर्ता और छोटे-बड़े अधिकारी शर्मा से नजदीकी बढ़ाने में लगे हुए हैं. शर्मा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी हैं. वो मोदी के साथ उस समय से हैं, जब वो पहली बार गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे. प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी उन्हें दिल्ली ले आए. शर्मा उत्तर प्रदेश के मऊ जिले के मुहम्मदाबाद गोहना तहसील के रानीपुर ब्लॉक के काझाखुर्द गांव के रहने वाले हैं.
उत्तर प्रदेश का राजनीतिक
उत्तर प्रदेश में बीते एक हफ्ते का घटनाक्रम जिस तेजी से बदला है, उससे कयास लगाए जा रहे हैं कि शर्मा को प्रदेश की सत्ता में कोई बड़ी जिम्मेदारी मिलेगी. कुछ लोगों का कहना है कि शर्मा को उपमुख्यमंत्री बनाया जा सकता है. वहीं कुछ लोगों का अनुमान है कि शर्मा उत्तर प्रदेश के अगले गृहमंत्री होंगे.
शर्मा को लेकर बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने क्या सोच रखा है, यह तय होगा 21 जनवरी के बाद. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा उस दिन दो दिन के यूपी दौरे पर लखनऊ पहुंचेंगे. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी के लिए उत्तर प्रदेश काफी महत्वपूर्ण है, उनके मिशन यूपी को कामयाब बनाने के लिए ही शर्मा को लखनऊ भेजा गया है. राज्य विधानसभा का चुनाव अगले साल होना है.

लखनऊ में रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र नाथ भट्ट पिछले कई दशकों से उत्तर प्रदेश और देश की राजनीति पर निगाह रखे हुए हैं. अरविंद शर्मा के राजनीति में पदार्पण के सवाल पर वो कहते हैं, '' देखिए जब कोई सेना युद्ध में उतरती है, उससे पहले वह हर तरह की तैयारी करती है. अपने घर को दुरुस्त करती है. यह सब भी चुनाव से पहले की तैयारी है.''
राजपूत बनाम ब्राह्मण
वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार लखनऊ में रहते हैं, मैंने उनसे पूछा कि अरविंद कुमार शर्मा के आने से उत्तर प्रदेश में क्या बदलने जा रहा है. इस सवाल पर वो कहते हैं, ''अरविंद कुमार शर्मा, मोदी जी के खास अफसर थे, उन्होंने उन्होंने लखनऊ भेज दिया है. लेकिन उनका आना मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अच्छा नहीं लगा.''
वो कहते हैं कि उत्तर प्रदेश के लॉ एंड आर्डर की स्थिति और राजनीतिक हालात को लेकर दिल्ली शिकायत पहुंची थी. इसी के बाद अरविंद कुमार शर्मा लखनऊ भेजे गए हैं. वो कहते हैं कि आखिर बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व शर्मा के जरिए करवाना क्या चाहता है, यह बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के 21-22 जनवरी के लखनऊ दौरे के बाद ही पता ही चल पाएगा.
पिछले साल मार्च में करोना काल शुरू होने के बाद से उत्तर प्रदेश में नौकरशाही हावी नजर आ रही है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी टीम-11 के अधिकारियों के साथ प्रदेश चला रहे हैं. प्रदेश में मंत्रिमंडल का तो पता ही नहीं चलता है.

योगी आदित्यनाथ से जुड़ी एक और बात राजनीतिक गलियारे में कही जाती है, वह यह कि उनके राज में राजपूतों की खूब धनक है. और ब्राह्मण किनारे लगाए जा रहे हैं. बीजेपी इन आरोपों का कई बार अप्रत्यक्ष रूप से जवाब देते हुए नजर भी आई है. लेकिन बात पूरी तरह अभी तक सैटल नहीं हुई है.
योगी आदित्यनाथ की राजनीति
वीरेंद्र भट्ट कहते हैं, ''योगी आदित्यनाथ के राज में बीजेपी के परंपरागत वोट बैंक सवर्णों में दिक्कत आई है. वो कहते हैं कि यूपी में सवर्ण समुदाय की दो प्रमुख जातिया हैं, ब्राह्मण और राजपूत. लेकिन ये कभी भी एक पाले में नहीं रह सकती हैं. इसी तरह की कभी यादव औऱ कुर्मी एक साथ नहीं रह सकते हैं, दोनों पिछड़े वर्ग की प्रमुख जातिया हैं, इसी तरह से दलितों की दो प्रमुख जातिया जाटव और पासी एक खाने में नहीं रह सकती हैं. वो कहते हैं कि जनसंख्या के नजरिए से यूपी की सबसे बड़ी सवर्ण जाति ब्राह्मण है. लेकिन यहां मुख्यमंत्री एक राजपूत बन गया. ऐसे में प्रदेश में जो जातिय संतुलन बना है, उससे ब्राह्मणों में नाराजगी है. उन्हें लगता है कि उन्हें उनका वाजिब हक नहीं मिला है.''
वो कहते हैं कि अरविंद शर्मा का आना इसी लड़ाई में संतुलन बनाने का प्रयास है, हालांकि वो जाति के भूमिहार हैं. वीरेंद्र भट्ट कहते हैं कि इस बात की चर्चा है कि अरविंद शर्मा को प्रदेश का गृह मंत्री बनाया जा सकता है. ऐसे में वो नौकरशाही पर नियंत्रण करेंगे.
योगी आदित्यनाथ को लेकर कुछ ऐसी ही बात अंबरीश कुमार भी कहते हैं. वो कहते हैं कि योगी जी 4 साल 11 महीने राजपूत रहते हैं और अंत का एक महीने में हिंदू हो जाते हैं. लेकिन वो एक और बात कहते हैं, वह यह कि योगी आदित्यनाथ और बीजेपी के दूसरे अन्य नेताओं में एक अंतर यह है कि योगी जी हिंदुत्व को जीते हैं, वह संन्यासी हैं, भगवा ही पहनते हैं, इससे हिंदूवादी नेता के रूप में उनकी स्वीकार्यता अधिक है.

अरविंद कुमार शर्मा को अगर कैबिनेट विस्तार में गृह मंत्री का पद दिया जाता है, पिछले कई दशक में वो प्रदेश के पहले गृहमंत्री होंगे. क्योंकि पिछले कई मुख्यमंत्रियों ने यह विभाग अपने पास ही रखा है. इसके साथ-साथ यह कदम योगी आदित्यनाथ की ताकत कम करने जैसा ही भी होगा. लेकिन क्या योगी आदित्यनाथ यह स्वीकार कर पाएंगे. क्या वह प्रदेश में कोई दूसरा पॉवर सेंटर बनने देंगे. इन सभी सवालों का जवाब मिलेगा बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के 21-22 जनवरी के दौरे के बाद. तब तक के लिए कीजिए इंतजार.