बिल्ली पालने वाले हो जाएं सावधान, वैज्ञानिकों ने किया इस ख़तरे से आगाह
अमेरिका में 11 फीसदी लोग ही टी गोंडी से संक्रमित हैं, लेकिन यह दर उन इलाकों में बहुत ज्यादा है जहां लोग कच्चा मांस ज्यादा खाते हैं या जहां साफ सफाई ठीक नहीं है. यूरोप और अमेरिका में तो कई जगह यह दर 90 फीसदी से ज्यादा है.
आमतौर पर बिल्लियां इंसान को नुकसान नहीं पहुंचाती. बिल्ली का मांस भी लोग नहीं खाते जिससे की कोई बीमारी बिल्लियों से फैलती हो. लेकिन हाल ही में हुआ रिसर्च इससे कुछ अलग ही बात कह रहा है. इसके मुताबिक एक परजीवी इंसानों में कैंसर का कारण का बन रहा है जो बिल्लियों से फैलता है लेकिन मांस के जरिए इंसानों में संक्रमण लाता है. इसलिए वैज्ञानिकों ने बिल्ली पालने वालों को विशेष रूप से सावधान रहने को कहा है.
वैज्ञानिक काफी समय पहले से टी गोंडी (T Gondii) नाम के परजीवी को लेकर भ्रमित थे. वे ठीक तरह से समझ नहीं पा रहे थे कि इसकी स्कीजोफ्रेनिया सहित मानसिक बुखार में क्या भूमिका है. सौ से अधिक अध्ययनों से यह पता नहीं चल सका है कि परजीवी मानसिक बीमारी से कोई संबंध है. लेकिन इस अध्ययन ने कुछ अलग ही बातें पर रोशनी डाली है.
बिल्लियों में आ जाता है यह परजीवी
टी गोंडी न तो कोई बैक्टीरिया है और ना ही वायरस. यह एक कोशिकीय सूक्ष्यजीवी है जो उस परजीवी का दूर का संबंधी है जो मलेरिया फैलाता है. बिल्लियों में टी गोंडी परजीवी से टॉक्सोप्लास्मोसिस ( Toxoplasmosis) बीमारी होती है. यह परजीवी बिल्लियों के शरीर में कुतरने वाले जानवरों, पक्षियों और दूसरे जानवर खाने से आता है.

आंकलन बताते हैं कि अमेरिका में 40 फीसदी बिल्लियां संक्रमित हैं. इनमें से ज्यादातर में संक्रमण के लक्षण है लेकिन अगर परजीवी लीवर या नर्वस सिस्टम तक पहुंच गया तो वो पीलिया और अंधेपन जैसी बीमारी भी विकसित कर सकते हैं और उनके बर्ताव तक में बदलाव देखा जाता है. संक्रमण के पहले कुछ सप्ताह में बिल्लियां अपने आसपास मलत्याग द्वारा लाखों परजीवी के अंडे रोज पैदा करने लगती हैं इससे कुछ लोगों में तो घरेलू बिल्लियों से सीधे टॉक्सोप्लास्मोसिस संक्रमण आ जाता है, बहुत से लोगों में यह बिल्लियों या उनके मल के पानी और मिट्टी में मिलने से होता है जहां ये परजीवी एक साल तक जिंदा रह सकते हैं.
वैसे तो अमेरिका में 11 फीसदी लोग ही टी गोंडी से संक्रमित हैं, लेकिन यह दर उन इलाकों में बहुत ज्यादा है जहां लोग कच्चा मांस ज्यादा खाते हैं या जहां साफ सफाई ठीक नहीं है. यूरोप और अमेरिका में तो कई जगह यह दर 90 फीसदी से ज्यादा है. स्वस्थ लोगों में टॉक्सोप्लास्मोसिस फ्लू जैसी बीमारी पैदा करता है या फिर किसी तरह के लक्षण दिखाई नहीं देते हैं. लेकिन कई बार कमजोर इम्यूनिटी सिस्टम वालों लोगों में यह घातक होकर जानलेवा हो जाता है. एंटीबायोटिक संक्रमण का इलाज कर सकते हैं, लेकिन दवाइयां परजीवियों से पूरी तरह से मुक्त नहीं कर पाती है.

मानसिक स्वास्थ्य से संबंध
ऐसे में सवाल यह है कि वैज्ञानिक आखिर इस सबको मानसिक बीमारी से क्यों जोड़ रहे हैं. जिन कुतरने वाले जीवों से संक्रमण फैल रहा है वो बिल्लियों के मूत्र को सूंघ नहीं पाते और उनके ख़तरे को नहीं भाप पाते हैं और बिल्लियों के शिकार हो जाते हैं. वैज्ञानिकों को लगता है कि टी गोंडी दिमाग में गांठ बनाकर उसकी काम करने में बदलाव ला देते हैं. इससे जोखिम लेने वाली प्रवृत्ति बढ़ाने वाले तत्व जोपामाइन का स्तर भी बढ़ने लगता है.

दिमाग में गांठ बनाता है
यही परजीवी इंसानी न्यूरोन में भी गांठें (Cysts) बनाता है. जो बढ़ने के बाद इंसानों में दिमागी जलन, डिमेंटिया और साइकोसिस जैसे खतरनाक स्थितियां तक पैदा कर सकता है. वैसे तो सिस्ट नुकसानदायक नहीं रहते हैं, लेकिन पाया यह गया है कि यह संक्रमण व्यक्तिव में बदलावों से स्किट्जोफ्रीनिया और दूसरी मानसिक बीमारियां जल्दी हो सकती है. यहां तक कि यह ऑटिज्म और अल्जाइमर बीमारी का कारण भी बन सकता है.
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