कृषि कानूनों का एक साल : किसान आंदोलनों की स्थिति जस की तस
पिछले साल संसद के मॉनसून सत्र के अंतिम दिनों में 14 सितंबर को कृषि सुधार अध्यादेश वित्त विधेयक के तौर पर संसद में लाए गए थे.
और 17 सितंबर 2020 को एक साल पहले ये तीनों कानून संसद से पास हुए थे. ये वही कानून हैं जिनके विरोध में पिछले साल नवंबर से राजधानी दिल्ली में शुरू हुआ किसानों का आंदोलन अब तक जारी है. पंजाब, हरियाणा और हिमाचल जैसे राज्यों में किसानों के बीच इसकी सुगबुगाहट पहले ही शुरू हो चुकी थी. पहले मंडियों, जिला मजिस्ट्रेट के दफ्तरों, सड़कों पर छुटपुट प्रदर्शनों और विरोध का सिलसिला शुरू हुआ था. इस बीच किसानों को दिल्ली बुलाकर 14 अक्तूबर और 13 नवंबर 2020 को बातचीत भी की गई थी.
लेकिन 25 नवंबर को किसानों ने दिल्ली कूच करने का ऐलान कर दिया. हालांकि, दिल्ली पुलिस ने कोविड -19 प्रोटोकॉल का हवाला देते हुए राजधानी शहर तक मार्च करने के उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया था. दिल्ली की ओर मार्च कर रहे किसानों को पानी की बौछारों, आंसू गैस का सामना करना पड़ा क्योंकि पुलिस ने उन्हें हरियाणा के अंबाला जिले में तितर-बितर करने की कोशिश की. लेकिन आखिर में दिल्ली की सरहदों पर पश्चिम की ओर से पंजाब, हरियाणा और पूरब की ओर से यूपी, उत्तराखंड के किसानों ने सीमा पर डेरा डाल लिया. इससे पहले इन्हें दिल्ली के निरंकारी मैदान में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के लिए दिल्ली में प्रवेश करने की अनुमति दी जिसे किसानों ने ठुकरा दिया. और कृषि से जुड़े इन तीन अहम विधेयकों पर किसानों का आंदोलन अभी भी जारी है.

इस बीच सरकार की ओर से बातचीत की पेशकश भी हुई और दस से ज्यादा बार बातचीत के चार दौर चले लेकिन बातचीत के सभी दौर फेल रहे. और 26 जनवरी को किसानों की रैली के दौरान लाल किले पर हिंसा भी हुई और इस बीच एक प्रदर्शनकारी की मौत भी हो गई थी. किसान नेता इन कानूनों में संशोधन का सुझाव देने या उन पर चर्चा करने की बजाय तीनों कानूनों को वापस लेने पर अड़े हुए हैं. विरोध प्रदर्शनों में महिलाएं भी बड़ी मात्रा में शामिल हैं. किसान एकता मोर्चा के मुताबिक, अब तक छह सौ से ज्यादा किसानों की मौत हो चुकी है.
पिछले 9 महीने से टिकरी बॉर्डर पर प्रदर्शन में शामिल पंजाब किसान यूनियन की स्टेट कमेटी मेंबर जसवीर कौर नेट ने कृषि कानूनों के एक साल में किसानों की जिंदगी में पिछले एक साल में हुए बदलावों पर एशियाविल से विस्तार से बातचीत की.
जसवीर कौर कहती हैं, “17 तारीख को भी एक साल पूरे होने के मौके पर पंजाब और दूसरी जगह अलग-अलग तरीके से लोगों ने प्रदर्शन किया था. इसमें लोगों ने यह सवाल उठाया कि सरकार एक साल बाद भी कुछ नहीं कर रही है. हम तो अपने प्रदर्शनों को शांतिपूर्वक कर रहे हैं और आगे जहां जहां भी चुनाव आएंगे वोट के जरिए बीजेपी सरकार को चोट देने की कोशिश करेंगे. इसमें हमने बीजेपी को हराने का मिशन लिया है. इसके अलावा 27 सितंबर को हमने भारत बंद का आह्वान किया उसे सफल बनाने के लिए जगह-जगह मीटिंग की जा रही है. तो इसका भी असर होगा.”
पिछले एक साल में आपके या और अन्य किसानों के जीवन में क्या बदलाव आया जो बाहर अपने घर छोड़कर प्रदर्शन कर रहे हैं. इस सवाल के जवाब में जसवीर कहती हैं, “यह बहुत अहम सवाल है. देखिए जो किसान पहले इतने अच्छे से नहीं जानते थे कि कैसे उनकी लूट की जा रही है या देश में क्या चल रहा है राजनीति में क्या चल रहा है. वे लोग जब यहां प्रदर्शनों में आए, और उन्होंने यहां बातें बार बार सुनी कि कैसे कॉर्पोरेट अरबों रुपए देकर सरकार को कंट्रोल कर देते हैं वह उन्हें समझाया गया तो उनको समझ आने लगा. बाकि कुछ लोगों के हाथ में ज्यादा पूंजी है जबकि बहुत बड़े हिस्से में ऐसे लोग हैं जो गरीब हैं यह सब बात भी उन्हें यहां समझ जाए. तो उन्हें भी लगता है कि उन्हें पहले जागरूक हो जाना चाहिए था पहले ना बोल कर उन्होंने गलती कर दी. अब उन्हें भी लगता है कि ये कंपनियां उनकी जमीन छीन लेंगी तो पूंजीवाद, साम्राज्यवाद यह बात भी समझ आई. जैसे वर्ल्ड बैंक का मुझे पता नहीं था कि उन पर किसका कब्जा है तो मुझे पता चला कि दुनिया के जो कुछ बड़े घराने हैं उन्हीं का वह बैंक है. और आईएमएफ और डब्ल्यूएचओ पर भी उन्हीं का कंट्रोल है. इससे हमें भी समझ आने लगा है कि जो साम्राज्य की जकड़ है ना वह पूरी दुनिया में फैली हुई है.”
जसवीर आगे बताती हैं, “अब जहां हम यहां बैठे हैं तो इतिहास की बातें भी होती हैं उसमें हमारी जो कुर्बानियां है उनका पता चलता है, आजादी की लड़ाई की बातें होती हैं, किताबें पढ़ते हैं, इतिहास पढ़ते हैं, जो पढ़ नहीं सकते वह आपस में बातें करते हैं तो इससे उनकी लड़ने की भावना मजबूत होती है, आत्मविश्वास बढ़ता है कि देश को बचाने के लिए अब तो लड़ना पड़ेगा मरना तो एक बार है यानी कि लोगों में जागरूकता आई है. जो महिलाएं पहले कभी नहीं बोली थीं वो अपने बच्चों के हक के लिए स्टेज पर बोलती हैं तो इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ा है तो एक साल में बड़ा बदलाव आया है. और हमारा प्रदर्शन आगे भी जारी है.”
इस बीच कृषि कानून के एक साल पूरे होने पर राजधानी में भी विरोध प्रदर्शन किया गया. कानूनों के विरोध में शिरोमणि अकाली दल सड़क पर उतरा. शिरोमणि अकाली दल ने दिल्ली के रकाबगंज रोड पर अपना विरोध प्रदर्शन ब्लैक फ्राइडे प्रोटेस्ट मॉर्च किया. शिअद प्रमुख सुखबीर बादल और पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल के नेतृत्व में शिरोमणि अकाली दल का यह विरोध मार्च गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब रोड से संसद भवन की ओर निकाला गया. इस बाच दिल्ली में सभी प्रमुख मार्गों को बंद कर दिया गया है, जो हरियाणा से जुड़े हैं. एहतियातन बहादुरगढ़ सिटी मेट्रो स्टेशन के प्रवेश और निकास द्वार को किसान आंदोलन के चलते बंद कर दिया गया था. साथ ही ब्लैक फ्राइडे प्रोटेस्ट मार्च' शामिल होने दिल्ली आ रहे अकाली दल के कार्यकर्ताओं को पुलिस ने बॉर्डर पर ही रोक दिया है. दिल्ली पुलिस ने भी ट्रैफिक अलर्ट जारी किया है. झाड़ोदा कलां बॉर्डर पर दोनों रास्ते किसान आंदोलन की वजह से बैरिकेडिंग लगा कर बंद कर दिए गए हैं.
तीनों कृषि कानून
अगर इन तीनों कृषि कानूनों की बात करें तो पहला कानून, कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020 है, इसके मुताबिक किसान मनचाही जगह पर अपनी फसल बेच सकते हैं. साथ ही बिना किसी रुकावट दूसरे राज्यों में भी फसल बेच और खरीद सकते हैं. दूसरा कानून मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवाओं पर कृषक (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) अनुबंध विधेयक 2020 है. जिसमें देशभर में कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग को लेकर व्यवस्था बनाने का प्रस्ताव है. और फसल खराब होने पर उसके नुकसान की भरपाई किसानों को नहीं बल्कि एग्रीमेंट करने वाले पक्ष या कंपनियों को करनी होगी. जबकि तीसरा आवश्यक वस्तु संशोधन बिल आवश्यक वस्तु अधिनियम को 1955 में बनाया गया था. जिसमें अब खाद्य तेल, तिलहन, दाल, प्याज और आलू जैसे कृषि उत्पादों पर से स्टॉक लिमिट हटा दी गई है.
फिलहाल देखा जाए तो इन कानूनों पर सरकार और किसानों के बीच बातचीत बंद है. बीच-बीच में किसान महापंचायत कर अपना शक्ति प्रदर्शन जरूर कर रहे हैं. लेकिन सरकार की तरफ से तीनों कानूनों को वापस लेने की कोई पहल अभी तक नजर नहीं आ रही है.