बजट 2020: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन की चुनौती, घटती आमदनी और बढ़ता घाटा
वित्तमंत्री के लिए बेहद मुश्किल हालात हैं. क्योंकि उनके लिए खुद ही रखे गए 3.3 प्रतिशत वित्तीय घाटे के लक्ष्य को हासिल करना मुश्किल होगा. यह तय नज़र आ ही रहा है कि वित्त मंत्री के लिए खुद ही तय किए लक्ष्यों को हासिल करना नामुमकिन है. मंदी के इस दौर में ख़र्च में कटौती हालात और बिगाड़ देगा. इसके साथ ही जितनी मंदी बढ़ेगी उतना ही सरकार को टैक्स कम प्राप्त होगा. टैक्स के अलावा सरकार की बाक़ी आमदनी भी घट जाएगी.

वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन जिन हालात में अपना दूसरा बजट पेश करेंगी वो बहुत अच्छे नहीं हैं. अर्थव्यवस्था की वृध्दि दर लगातार गिर रही है, राजस्व लक्ष्य से काफ़ी दूर हैं, सरकार के लेन-देन बजट अनुमानों का मखौल उड़ा रहे हैं और सार्वजनिक क्षेत्र में सरकारी हिस्सेदारी बेचने की योजना सिरे नहीं चढ़ रही है. इन हालातों के बीच वित्तमंत्री अपना 2020-21 का आम बजट तैयार कर रही हैं. उनसे सामने दो चैलेंज हैं. सबसे पहले तो उन्हे वित्तमंत्री के तौर पर यह दिखाना होगा कि सरकार ने जो टैक्स और नॉन टैक्स रेवन्यू हासिल किया वो अनुमान से ज़्यादा इधर उधर नहीं है.
इसके साथ ही उन्हे यह भी साबित करना होगा कि सरकार का ग़ैर क़र्ज पूंजी की प्राप्ती (मुख्यत: विनिवेश और निजीकरण के ज़रिए प्राप्त पूंजी) बजट के अनुमान के आप-पास थी. वित्तमंत्री को यह भी दिखाना होगा कि विभागवार बजट में जो धन का आवंटन किया गया था, उसी तरह से पैसा विभागों को मिला और ख़र्च हुआ. कम से कम इतना तो वित्तमंत्री के उम्मीद की ही जाएगी. क्योंकि कुछ जानकारों का यह भी कहना है यहां तक कि बजट मे जो राजस्व और ख़र्च बताए गए थे उनमें भी काफ़ी कमी रही है.
वित्तमंत्री की दूसरी मुश्किल है उन्हे बीते साल के अनुमानों के आधार पर उन्हे यह बताना होगा कि वो साल 2020-21 में किस मद में कितना ख़र्च करेंगी और यह पैसा उन्हे कहां से मिलेगा. इसके साथ उनके सामने यह भी चुनौती होगी कि वो जो आंकड़े दें वो भरोसे लायक हों. वित्तमंत्री को इसके अलावा यह भी बताना होगा कि विशेष कार्यक्रमों या योजनाओं (पुरानी जिन्हे रिपैकेज़ किया गया है या फिर नई योजनाएं) के लिए धन कहां से आएगा. इसके साथ ही बजट में वो सारी बातें होनी चाहिएं जिनसे मार्केट, बिजनेस और आम आदमी को लगे कि आर्थिक मंदी से निकलने की गंभीर कोशिश की जा रही है.
इस दिशा में वित्तमंत्री के लिए पहली ही चुनौती से पार पाना कठिन होगा. अभी तक जो तथ्य सामने हैं उनसे लगता है कि राजस्व और आमदनी दोनों ही लक्ष्य से काफ़ी कम रहे हैं. यानि सरकार को अनुमान से कम पैसा प्राप्त हुआ है. कंट्रोलर जनरल ऑफ़ अकाउंट की तरफ से जारी ताज़ा आंकड़ों के हिसाब से साल के पहले 8 महीनों में (अप्रैल-नवबंर 2019) पूरे साल के ग़ैर कर्ज़ आमदनी अनुमान का मात्र 48.6 प्रतिशत ही सरकार को प्राप्त हुआ थी. जबकि सरकार का ख़र्च अनुमान का 65.3 प्रतिशत रहा. यानि आमदनी अनुमान से कम और ख़र्च अनुमान से ज़्यादा. मतलब यह हुआ कि सरकार का वित्तीय घाटा बढ़ने वाला है.
दो क्षेत्रों में यह होना मुश्किल है. पहला मामला है अप्रत्यक्ष टैक्स का जिसमें मुख्यत जीएसटी है जो केन्द्र सरकार को मिलता है. जीएसटी को कुछ इस तरह से बनाया गया कि साल भर में जो टैक्स साल भर में जमा होता है वो सरकार को पूरे साल के दौरान मिलता है. लेकिन इसके बावजूद केन्द्र का जीएसटी कलेक्शन अनुमान से काफ़ी कम है. सीतारमन के पिछले बजट मे जीएसटी से मिलने वाले पैसे का अनुमान पहले के मुक़ाबले कम कर दिया गया था. उनके अनुमान के मुताबिक 2019-20 में क़रीब 5 लाख 26 हज़ार करोड़ रूपए केन्द्रीय जीएसटी के रूप में मिलने थे. 2018-19 में केन्द्रीय जीएसटी की राशी 6 लाख 4 हज़ार रूपए थी. इसकी मुख्य वजह थी कि 2018-19 में जीएसटी कलेक्शन 4 लाख 58 हजार करोड़ रूपए ही रहा था. 2019-20 के लिए के अनुमान 5.26 लाख करोड़ सीजीएसटी के अनुमान का मतलब था कि हर महीने सरकार को क़रीब 43830 करोड़ रुपए मिलना चाहिए था. लेकिन 2019-20 के पहले 8 महीनों में सीजीएसटी से सरकार को हर महीने क़रीब 41000 करोड़ रूपए ही मिल पाए. यानि पहले से ही अनुमानों में कटौती की गई थी, उसके बावजूद इस मामले में लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सकेगा.
दूसरा क्षेत्र जिसमें सरकार को बजट 2020 उम्मीद और लक्ष्य से कम पैसा मिलने वाला है वो है विनिवेश और निजीकरण. केन्द्र ने विनिवेश के ज़रिए क़रीब 1,05000 करोड़ रूपए हासिल करने का लक्ष्य रखा था. लेकिन अब जब इस वित्त वर्ष में सिर्फ़ ढ़ाई महीने बचे हैं और सरकार को विनिवेश से मात्र 18000 करोड़ रूपए मिले हैं. सरकार की तरफ से तुरत फुरत में सार्वजनिक संपति को बेचने की तैयारी हो रही है. लेकिन इसके बावजूद लगता नहीं है कि इतने कम समय में सरकार अपना लक्ष्य हासिल कर पाएगी. सरकार को सुप्रीम कोर्ट से कुछ राहत ज़रूर मिली है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने टेलीकॉम कंपनियों की उस याचिका को ख़ारिज कर दिया जिसमें इन कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट से 1.47 लाख करोड़ रूपए का जुर्माना माफ़ कर दिया जाए. लेकिन सरकार की दो मुश्किलें हैं. एक 31 मार्च से पहले कंपनियों से यह पैसा सरकार को मिलेगा यह मुश्किल है. दूसरा सरकार यह भी दिखाना चाहती है कि सरकार बिजनेस फ्रैंडली है.
सिर्फ़ डायरेक्ट टैक्स है जिससे सरकार को साल के अंत में कुछ राहत मिल सकती थी. लेकिन इसमें भी वित्तमंत्री ने खुद ही मुसिबत मोल ले ली. पिछले सितंबर महीने में कॉरपोरेट टैक्स में बड़ी कटौती का ऐलान किया. उन्होने कॉरपोरेट टैक्स को 30 प्रतिशत (सरचार्ज के साथ 34.61 प्रतिशत) को 22 प्रतिशत कर दिया (या फिर कह लीजिए की 25.17 प्रतिशत) उन घरेलू कंपनियों के लिए जो टैक्स छूट या दूसरी कोई छूट नहीं लेती. इसके अलावा नई घरेलू कंपनी जो 1 अक्टूबर 2019 को या उसके बाद शुरू होंगीं सिर्फ़ 15 प्रतिशत (जो कुल मिलाकर 17.01 प्रतिशत होगा) टैक्स देंगी. इसके अलावा न्यूनतम वैकल्पिक टैक्स जो कंपनियों पर लागू है उसे 18.5 प्रतिशत से घटा कर 15 प्रतिशत कर दिया गया. कंपनियों को दी गई इस छूट से सरकार का क़रीब 1.45 लाख करोड़ रूपए के टैक्स का घाटा होगा. यह घाटा कुल जीडीपी का 0.8 प्रतिशत के बराबर है.
ये सारे वजह वो हैं जो कि वित्तमंत्री के लिए बेहद मुश्किल हालात पैदा करती हैं. क्योंकि उनके लिए खुद ही रखे गए 3.3 प्रतिशत वित्तीय घाटे के लक्ष्य को हासिल करना मुश्किल होगा. यह भी तय नज़र आ ही रहा है कि वित्त मंत्री के लिए खुद ही तय किए लक्ष्यों को हासिल करना नामुमकिन है. लेकिन चिंता की बात उनके लिए यह है कि वो लक्ष्य से बहुत ज़्यादा दूर ना रह जाएं, ऐसा भी नहीं कर पाएंगी. यानि वित्तमंत्री अपने अनुमानों और लक्ष्य को हासिल करने में बुरी तरह विफल हो रही हैं.
टैक्स और दूसरे राजस्व में गिरावट के अलावा सरकार ने 2020 में खुद जीडीपी की वृध्दि दर 7.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है. जिसे पहले क़रीब 12 प्रतिशत बताया जा रहा था. इसका मतलब यह हुआ कि जीडीपी के अनुपात में वित्तीय घाटे के आंकड़े अनुमान से ज़्यादा होगें और जीडीपी के आंकडे कम रहेंगे. इन दोनों ही वजहों से जीडीपी और वित्तीय घाटे का अनुपात काफ़ी बढ़ जाएगा, अगर वित्तमंत्री ख़र्च में भारी कटौती की तैयारी ना कर रही हों.
लेकिन इस समय ख़र्च में कटौती अक्लमंदी का फ़ैसला नहीं होगा. क्योंकि मंदी के इस दौर में ख़र्च में कटौती हालात और बिगाड़ देगा. इसके साथ ही जितनी मंदी बढ़ेगी उतना ही सरकार को टैक्स कम प्राप्त होगा. टैक्स के अलावा सरकार की बाक़ी आमदनी भी घट जाएगी. जैसा कि सीएजी और दूसरे संस्थान यह बताते रहे हैं कि वित्तीय घाटे के आंकड़े सरकार के कर्ज़ का सही सही हिसाब नहीं देते हैं. क्योंकि सरकार के बहुत से ऐसे ख़र्चे होते हैं जिनका बजट में ज़िक्र ही नहीं होता है. मसलन फूड सब्सिडी, बैंकों में पूंजी लगाना या फिर सिंचाई पर ख़र्च यह सब सरकार कर्ज़ लेकर करती है. इन सब को मिलाकर देखें तो घाटा जीडीपी का कुल 5 प्रतिशत से भी ज़्यादा हो जाता है.