बाटला हाउस एनकाउंटर : राष्ट्रीय उलेमा कौंसिल ने 13वीं बरसी पर पीएम को संबोधित ज्ञापन सौंप न्यायिक जांच की मांग की
बाटला हाउस मुठभेड़ को 13 साल बीत चुके हैं. दिल्ली के जामिया नगर इलाके में 19 सितंबर 2008 को हुए इस एनकाउंटर ने देश में तहलका मचा दिया था.
इस एनकाउंटर पर शुरु से ही सवाल उठते रहे हैं. एनकाउंटर की 13वीं बरसी पर आजमगढ़ जिले में राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल के कार्यकर्ता और नेताओं ने रविवार को कलेक्ट्रेट पहुंचकर प्रदर्शन किया. प्रदर्शन के बाद घटना की न्यायिक जांच कराने की मांग का ज्ञापन जिला प्रशासन को सौंपा. जिसमें बटला हाउस एनकाउंटर की न्यायिक जांच की मांग की गई.
राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना आमिर रशादी ने बयान देते हुए कहा कि 2008 में दिल्ली में हुए बम धमाको के 6 दिन बाद तत्कालीन कांग्रेस सरकार के गृह मंत्री के इशारे पर दिल्ली पुलिस द्वारा सरकार की किरकिरी होने से बचाने व मुस्लिम नौजवानो को बलि का बकरा बनाने की नियत से साजिश रच कर 19 सितम्बर, 2008 को दिल्ली के बटला हाउस में फर्ज़ी मुदभेड़ के दौरान दो बेकसुर मुस्लिम नौजावान आतिफ व साजिद के साथ एक जांबाज़ पुलिस इंस्पेक्टर को मौत के घाट उतार दिया गया था और अनेक मुस्लिम नौजवानो को इस केस में फंसा कर उनकी जिंदगियां बरबाद कर दी गईं.
आज बटला हॉउस इनकाउंटर की 13वीं बरसी पर @RUConline के कार्यकर्ताओं ने देश भर में इस इनकाउंटर की जांच की मांग को मज़बूती से उठाया और प्रण लिया कि जबतक जांच नही हो जाती हमारा संघर्ष जारी रहेगा क्योंकि ये लड़ाई पूरी क़ौम के दामन पर लगे दाग़ को मिटाने की है।#BatlaHouseFakeEncounter pic.twitter.com/NZyfd87fm5
— Rashtriya Ulama Council (RUC) (@RUConline) September 19, 2021
राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल के प्रवक्ता तलहा रशादी ने एशियाविल को बताया, “इस एनकाउंटर के बाद कांग्रेस सरकार ने अपने कानूनी कर्तव्यों का भी पालन से नही किया, जब कि सी0आर0पी0सी0 की धारा 176 के अंतर्गत किसी भी प्रकार के पुलिस टकराव में अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो उस घटना की मजिस्ट्रेट जांच करवाना अनिवार्य है. इसी सम्बन्ध में माननीय उच्चतम न्यायालय की भी गाइड लाइन है जिसके अनुसार किसी भी एनकाउंटर की न्याययिक जांच कराया जाना अनिवार्य है. इन सब के बावजूद बटला हाउस एनकाउंटर केस में आरम्भ से ही कानून कि धज्जियां उड़ाई गईं, एक बहादुर पुलिस अफसर एवं दो प्रतिभावान छात्रों की मौत हुई परन्तु न तो कांग्रेस, न भाजपा की केन्द्र सरकार और न ही चुनाव से पहले इस एनकाउंटर पर सवाल उठाने वाले अरविंद केजरीवाल ने सत्ता में आने के बाद इसकी जांच करवाना मुनासिब समझा. आखिर क्या वजह है कि इस एनकाउंटर की जांच नहीं करायी जा रही है? अगर एनकाउंटर सही था तो जांच में भी तो वही सच निकलकर आएगा. इसका सच सामने आना ही चाहिये क्योंकि ये एनकाउंटर सिर्फ एक क्षेत्र विशेष के नही बल्कि पूरे देश के मुसलमानों की अस्मिता और आआत्मसम्मान पर सवाल है.”
दूसरी ओर सामाजिक-राजनीतिक संगठन रिहाई मंच ने भी इस पर सवाल उठाते हुए कहा कि जयपुर अहमदाबाद, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में होने वाले कई धमाकों के आरोपियों के विभिन्न राज्यों में चल रहे मुकदमों की गति और अभियोजन द्वारा मुकदमों की जल्द सुनवाई में अरुचि कई तरह के सवाल पैदा करती है. रिहाई मंच की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि जहां एक तरफ हैदराबाद धमाकों की सुनवाई सत्र न्यायालय में अभूतपूर्व तेज़ी देखने को मिली और आरोपी असदुल्लाह अख्तर को दोषी करार दिया गया, तो दिल्ली में बाटला हाउस इनकाउंटर मामले की जगह मोहन चंद्र शर्मा की हत्या का मुकदमा चलाया गया और दो आरोपियों को निचली अदालत से सज़ा हुई. जयपुर धमाकों का फैसला ग्यारह साल बाद आया. अहमदाबाद में सुनवाई पूरी हो चुकी है, लेकिन अभी तक न्यायालय ने फैसला नहीं सुनाया है. दिल्ली में चल रहे मुकदमे अभी जारी हैं तो उत्तर प्रदेश में दो आरोपियों को गोरखपुर न्यायालय में पेश किया गया है, लेकिन मुकदमे की कार्रवाई नहीं चल रही है. कई आरोपियों को अन्य आतंकी वारदातों में लिप्त दिखाया गया है, उन्हें अब तक न्यायालय में हाजिर नहीं किया गया है.
बयान में इस पूरे मामले की न्यायिक प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुये कहा गया है कि ऐसा लगता है बाटला हाउस फर्जी इनकाउंटर मामले में उठने वाले सवालों और न्यायिक या किसी निष्पक्ष ऐजेंसी से जांच के मामले से बचने के लिए कुछ मुकदमों की सुनवाई तेज़ी से की गई और अपने पक्ष में निर्णय प्राप्त कर सवालों के जवाब और जांच के मामले को दफन कर दिया गया. साथ ही यह भी सुनिश्चित किया गया कि अगर कुछ आरोपों से आरोपी बरी भी हो जाएं तो दूसरी जगह सुनवाई के नाम पर उनको लंबे समय तक कैद रखने की गुंजाइश बाकी रहे. सवाल यह भी उठता है कि जिन जगहों पर निचली अदालत से फैसले आ चुके हैं वहां उच्च न्यायालय में की गई अपील की सालों से सुनवाई नहीं हो रही है. हैदराबाद में असदुल्लाह का मामला हो या दिल्ली में शहज़ाद और आरिज़ का या फिर उत्तर प्रदेश में तारिक कासमी और नूर इस्लाम का सभी मामले हाईकोर्ट में लंबित हैं.
बता दें कि 13 सितंबर 2008 को दिल्ली में सीरियल ब्लास्ट के बाद 19 सितंबर 2008 को दिल्ली में ही बटला एनकाउंटर हुआ था, जिसमें आजमगढ़ के दो लोगों की मौत हो गई थी. इस पर सवाल उठाते हुए उलेमा काउंसिल का गठन भी हुआ था और हर साल जांच की मांग की जाती है. बटला हाउस एनकाउंटर के बाद देश ही नहीं, पूरी दुनिया में जामिया नगर के इस छोटे से इलाके का नाम फैल गया. एनकाउंटर के बाद इस पर जमकर विवाद हुआ. कई छात्र संगठनों, यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और कई संगठनों ने इसे गलत बताते हुए विरोध जताया. इसकी बरसी पर हर साल जगह- जगह विभिन्न संगठनों के लोग इसकी न्यायिक जांच को लेकर प्रदर्शन करते हैं.
