हिमाचल लैंडस्लाइड में नौ पर्यटकों की मौत पर बोले पर्यावरणविद, “जंगल, पहाड़ और नदी से छेड़छाड़ न करें”
हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में बस्तेरी के निकट रविवार को पर्यटकों को लेकर जा रहे एक वाहन पर भूस्खलन के बाद भारी चट्टान गिर गई. हादसे में टेंपो ट्रैवलर में सवार नौ पर्यटकों की मौत हो गई, जबकि एक स्थानीय व्यक्ति और दो पर्यटक जख्मी हो गए हैं.
हादसा इतना भयानक था कि वाहन को चट्टानों ने हवा में ही उड़ा दिया और नीचे बास्पा नदी के किनारे दूसरी सड़क पर जा गिरा. इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. इनमें पहाड़ की चोटी से बड़े-बड़े पत्थीर गोली की रफ्तार से नीचे घाटी में लुढ़कते देखे जा सकते हैं. इनकी रफ्तार इतनी तेज थी कि पत्थनरों से नदी पर बना पुल भी ढह गया. घटना के कुछ देर बाद ही यह टवीटर व अन्य सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगा.
Valley bridge Batseri in Sangal valley of Kinnaur collapses: Nine tourists from Delhi NCR are reported to be dead and three others are seriously injured pic.twitter.com/gTQNJ141v5
— DD News (@DDNewslive) July 25, 2021
किन्नौर में हुए इस खौफनाक भूस्खलन पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी शोक जताया है. ट्वीट कर कोविंद ने शोक संतप्त परिवारों के प्रति अपनी संवेदनाएं व्यक्त की हैं. साथ ही घायलों के जल्द स्वस्थ्य होने की कामना भी की है. कोविंद ने हिंदी में ट्वीट किया, “किन्नौर, हिमाचल प्रदेश में हुए भूस्खलन हादसे में कई लोगों की मृत्यु के समाचार से बहुत दुख हुआ. शोक संतप्त परिवारों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करता हूं तथा घायल हुए लोगों के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करता हूं.”
किन्नौर, हिमाचल प्रदेश में हुए भूस्खलन हादसे में कई लोगों की मृत्यु के समाचार से बहुत दुख हुआ। शोक संतप्त परिवारों के प्रति मैं गहरी संवेदना व्यक्त करता हूं और घायल हुए लोगों के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करता हूँ।
— President of India (@rashtrapatibhvn) July 25, 2021
इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर, सीएम जयराम ठाकुर ने भी हादसे में मारे गए लोगों के प्रति शोक व्यक्त किया है. प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष से प्रत्येक मृतक के परिजन के लिये 2-2 लाख रुपये की अनुग्रह राशि तथा घायलों के लिये 50 हजार रुपये देने का एलान भी किया गया है.
दरअसल पिछले कुछ दिनों से पहाड़ी इलाकों में पहाड़ों के टूटने की काफी घटनाएं सामने आई हैं. बताया गया है कि यह हादसा उसी जगह हुआ है, जहां एक दिन पहले भी पहाड़ी से पत्थर गिरे थे और पर्यटकों की कार चकनाचूर हो गई थी.
भूस्खलन की इन घटनाओं में आई तेजी को समझने के लिए हमने पर्यावरणविद प्रोफेसर नीतीश प्रयदर्शी से बातचीत की.
प्रोफ़ेसर प्रियदर्शी एशियाविल से विशेष बातचीत में कहते हैं, “जैसे पहले केदारनाथ त्रासदी हुआ था इसी तरह यहां यह हादसा हुआ है. और इसे हम मैन मेड डिजास्टर कह सकते हैं क्योंकि वहां इतना निर्माण किया गया. क्योंकि जब पहाड़ कटता है तो इससे आसपास का इलाका कमजोर हो जाता है. फिर इससे क्या होता है कि जरा सी भी बारिश होने के बाद अगर थोड़ी सी भी जमीन हिलती है तो गुरुत्वाकर्षण के कारण पूरा का पूरा पहाड़ नीचे आने लगता है. तो यही सबसे बड़ा फैक्टर होता है. अभी किन्नौर में भी ऐसा ही हुआ है गुरुत्वाकर्षण के कारण एक ब्लॉक हटा होगा, इसीलिए तो पत्थर गोली की तरह आ रहा था. और इसमें कंस्ट्रक्शन वगैरह का बहुत बड़ा योगदान होता है क्योंकि इस हादसे में भी आपने देखा कि जहां पत्थर गिर रहे थे वहां आसपास ज्यादा पेड़ नहीं थे. तो आप पेड़ भी हटा दिए, ब्लास्टिंग करते हैं रोड बनाते हैं इसे वाइब्रेशन होने से पहाड़ कमजोर हो जाते हैं. वैसे भी आप पूरे विश्व में देख रहे होंगे कहीं आग लगी है चाइना में बाढ़ आई हुई है. पिछले साल ऑस्ट्रेलिया में आग लगी थी. तो इसमें मानव का बहुत बड़ा योगदान है.”
इससे बचाओ या इन हादसों में कमी कैसे लाई जा सकती है. इस सवाल पर प्रोफेसर प्रियदर्शी कहते हैं, “इनके बचाव का यही तरीका है कि जो इसके कारण है पहले उन्हें हम जाने. दूसरे जंगल, नदी, पहाड़ यह सबसे बड़ी चीज है. इन तीन चीजों को बचाना बहुत जरूरी है इनको आप मत छेड़िए क्यों कि ये हमारा बैलेंस करता है. एक तरीके से ये वातावरण को अनुकूलित करने का काम करता है.”
लेकिन कुछ पहाड़ी इलाकों में सड़क वगैरह बनाना भी जरूरी होता है, इस पर प्रोफेसर प्रियदर्शी कहते हैं, “ठीक है, रोड बनाना जरूरी है, रोड़ बन जाएगी तो लोगों को फायदा होगा. लेकिन उसका ‘ग्रीन कवर’ होना चाहिए, जो मिट्टी और चट्टानों को पकड़ कर रखे. जहां आप रोड बनाते हैं वह ब्लास्टिंग का कम से कम उपयोग कीजिए. क्योंकि विस्फोट करने से चट्टाने हिलती है, इससे आसपास की धरती कंपन की वजह से कमजोर होती है. तो आप पूरी तरीके से सर्वे करके सड़क किस एरिया में बनाना अच्छा रहेगा. साथ ही सड़क बनने के बाद आपको उस सारे एरिया पर नजर रखनी होगी जहां से भूस्खलन हो सकता है. पश्चिमी देशों में या दूसरे देशों में हर साल जो वैज्ञानिक, रोड़ इंजीनियर, भूवैज्ञानिक उस एरिया को आईडेंटिफाई करते हैं जहां भूस्खलन होने की संभावना होती है तो उस एरिया को वे तोड़कर हटा देते हैं और उस रोड को कुछ दिन के लिए बंद कर दिया जाता है ,इससे भूस्खलन का खतरा बंद हो जाता है. दूसरा क्या है कि जहां रोड या कोई और काम हो रहा है वह पेड़ जरूर लगाइए. हालांकि पेड़ लगाने के बाद भी भूस्खलन होगा लेकिन उसका खतरा कम हो जाएगा. भूस्खलन पहले से होता रहा है लेकिन अभी क्या है की इसमें तेजी आई है और इस तेजी का कारण मानव का इसमें हस्तक्षेप है.”
प्रोफेसर प्रियदर्शी आगे कहते हैं, “वर्तमान में सिचुएशन बहुत अच्छी नहीं है. और अभी हम जो कहीं सूखा, कहीं बाढ़, कहीं आग, कहीं भूस्खलन, जो देख रहे हैं इसका मतलब है कि पर्यावरण कहीं ना कहीं असंतुलित हो रहा है. तो आप पेड़ लगाइए, नदी बचाइए, पहाड़ों को बचाइए, और जो भी कंस्ट्रक्शन आप कर रहे हैं वह सस्टेनेबल हो वैज्ञानिकता के आधार पर हो. साथ ही जो हमारे प्राचीन तौर तरीके होते थे उनको भी शामिल कीजिए. अभी हम करते क्या हैं कि जो पेड़ लगाते हैं वह बाहर से मंगा कर लगा देते हैं तो बाहर से पेड़ लगाकर मत लगाइए, जो पेड़ वहां के पर्यावरण के अनुकूल हो उसमें सरवाइव कर सकें, उसी को लगाइए. साथ ही वैज्ञानिक सोच के साथ-साथ वहां के लोकल लोगों की राय भी ली जाए. क्योंकि लोकल लोगों उस इलाके के बारे में ज्यादा जानते हैं. और कोई भी डेवलपमेंट अगर आप लोकल लोगों के राय के बिना लेते हैं तो वह खतरनाक है.”
Related Stories
ओडीएनआई रिपोर्ट : जलवायु परिवर्तन में ‘चिंता वाले देशों’ में भारत, हम पर्यावरण संकटों से निपटने में ‘असुरक्षित’