दोनों हाथ-पैर तोड़ने और सिर फाड़ने वालों की सलामती की दुआ करते हुए दुनिया से विदा हो गए हाजी फिरदौस
क्रिकेट मैच के विवाद के बाद फैले सांप्रदायिक उन्माद में घायल हुए हाजी फिरदौस की शनिवार को इंदौर के एक अस्पताल में मौत हो गई. पिटाई में उनके पूरे शरीर में चोटें आई थीं. लेकिन वो अंत तक हमलावरों की सलामती की दुआ करते रहे.
मध्य प्रदेश में क्रिकेट खेलने को लेकर बच्चों के बीच हुए विवाद के बाद फैली सांप्रदायिक आग में 70 साल के एक बुजुर्ग की जान चली गई. मामला शाजापुर जिले के अकोदिया मंडी का है.

अकोदिया में 9 फरवरी की शाम लड़के क्रिकेट खेल रहे थे. इनमें हिंदू-मुसलमान दोनों थे. इस दौरान गेंद एक युवक के पैर में लग गई. एक लड़का जब गेंद लेने गया तो, जिस लड़के को चोट लगी थी उसने कहा कि पहले पैर पकड़ों, उसके बाद ही गेंद मिलेगी. इस पर गेंद लेने गए युवक ने कहा कि पैर तो वह केवल अल्लाह के पकड़ता है. इतना सुनने के बाद उस युवक ने गेंद मांगने वाले को पीट दिया. इसके बाद कुछ और लड़कों से उस लड़के को भी पीट दिया.
क्रिकेट मैच का विवाद
इसके बाद इस घटना ने सांप्रदायिक घटना का रूप ले लिया. हिंदुओं की उग्र भीड़ ने थाना घेर कर कार्रवाई की मांग की. पुलिस ने तत्काल 6 लड़कों पर धारा 307 और अन्य धाराओं के तहत मामला दर्ज कर लिया. मामले को सांप्रदायिक रूप लेता देख मुस्लिम पक्ष के लोगों ने सभी आरोपियों को पुलिस के हवाले कर दिया.
अकोदिया निवासी 70 साल के हाजी फिरदौस खाना बनाने का काम करते थे. घटना वाली रात वो कहीं से खाना बनाकर लौट रहे थे. रास्ते में उन्मादी भीड़ ने 70 साल के उस बुजुर्ग को पकड़ लिया और लाठी-डंडों और तलवार से उनकी जमकर पिटाई कर दी.
फिरदौस की 7 बेटियां और दो बेटे हैं. उनके सबसे बड़े दामाद दिलशाद ने 'एशियाविल हिंदी' को बताया कि इस पिटाई में हाजी साहब के दोनों पैर में 5 फ्रैक्चर, दोनों हाथों में फ्रैक्चर हुए थे. तलवार से सिर पर किए गए हमले से जो घाव हुआ था, उसमें डॉक्टरों ने करीब 22 टांके लगाए. वो बताते हैं कि हाजी साहब के पेट और पीठ को लाठियों से पीटा गया था. दिलशाद बताते हैं कि हाजी साहब के शरीर का ऐसा कोई भी हिस्सा नहीं था, जिसपर चोट न आई हो.
दिलशाद बताते हैं कि हाजी फिरदौस को इलाज के लिए पहले शुजालपुर ले जाया गया. वहां से डॉक्टरों ने उन्हें इंदौर रेफर कर दिया गया. उसी रात उन्हें इंदौर ले जाया गया. वहां उनके ऑपरेशन भी किए गए. बाद में हालत खराब होने पर उन्हें वेंटिलेटर पर रखना पड़ा. लेकिन 20 फरवरी की सुबह करीब 11 बजे इंदौर के सेवालय अस्पताल में उनका इंतकाल हो गया.
दिलशाद बताते हैं कि इतनी पिटाई के बाद भी हाजी फिरदौस अंत समय तक यह कहते रहे कि प्रशासन हमलावरों के खिलाफ कार्रवाई करे तो ठीक है. लेकिन आप लोग अपनी तरफ से कोई झगड़ा-बवाल मत करना. वो हमलावरों की सलामती के लिए अल्लाह से दुआ मांगते रहे.

वो बताते हैं कि हाजी फिरदौस के इलाज पर 6 लाख से अधिक रुपये का खर्च आया था और प्रशासन ने उन्हें 50 हजार रुपये की मदद की है. दिलशाद बताते हैं कि शनिवार को हाजी फिरदौस को दफनाने के बाद कुछ अधिकारी आए थे. उन्होंने अगले 2-4 रोज में परिवार को 4 लाख रुपये की मदद करने का आश्वासन दिया है.
दो आरोपी गिरफ्तार
अकोदिया पुलिस थाने के प्रभारी अवधेश ने 'एशियाविल हिंदी' को बताया कि इस मामले में पहले से दर्ज एफआईआर में हत्या की धाराएं भी जोड़ दी गई हैं. उन्होंने बताया कि इस मामले में नामजद बताए गए लोगों में से दो लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है और बाकी के लोगों को गिरफ्तार करने की कोशिश की जा रही है.
इस सांप्रदायिक मामले में पुलिस कहीं न कहीं पक्षपात करती नजर आती है. पुलिस ने क्रिकेट मैच को लेकर हुए झगड़े में जिस तरह से कार्रवाई की और धारा-307 के तहत मामला दर्ज किया, उसने वहीं तेजी हाजी फिरदौस की हुई बेरहम पिटाई के मामले में नहीं दिखाई.
शाजापुर के शहर काजी रहमतुल्लाह बताते हैं कि हाजी फिरदौस के मामले में कई पर अपील करने, उनकी मेडिकल रिपोर्ट दिखाने और उनका वीडियो कलेक्टर-एसपी को दिखाने के बाद पुलिस ने घटना के 3 दिन बाद एफआईआर में धारा-307 को जोड़ा. वो कहते हैं कि शुरू में पुलिस इस मामले में पक्षपात करती हुई नजर आई.
रहमतुल्लाह बताते हैं कि हाजी फिरदौस की इंदौर के अस्पताल में हुई मौत के बाद प्रशासन और पुलिस ने कोशिश की उनका अंतिम संस्कार इंदौर में ही कर दिया जाए. इसके बाद उन लोगों ने अधिकारियों से कहा कि हाजी फिरदौस को कम से कम उन्हें उनके गांव में दफनाने तो दिया जाए. इन लोगों ने पुलिस को आश्वासन दिया कि इस दौरान वहां कोई विरोध-प्रदर्शन नहीं होगा. वो बताते हैं कि अधिकारियों को हमारी बात समझ में आई और उन्होंने अकोदिया में उन्हें दफनाने की इजाजत दे दी.
अमन-चैन की खातिर
रहमतुल्लाह बताते हैं कि हाजी फिरदौस को शनिवार देर रात अकोदिया में बहुत ही शांति पूर्ण माहौल में दफनाया गया. उन्होंने बताया कि उनकी कुरानख्वानी भी रविवार को बहुत शांतिपूर्ण ढंग से हुई. वो बताते हैं कि उन लोगों की पहली कोशिश यह है कि शहर का अमन-चैन न बिगड़े. शातिं बनी रहे और लोग आपस में मिल-जुलकर रहें. और वो इन्हीं कोशिशों में लगे हुए हैं.
पिछले कुछ समय से मध्य प्रदेश में जिस तरह से सांप्रदायिक उन्माद फैला है, वह हैरान करने वाला है. बीते साल के अंतिम हफ्ते में महाकाल के शहर उज्जैन में राम मंदिर के लिए चंदा जुटाने के लिए आयोजित रैली में उत्तेजक नारेबाजी और रैली पर हुए पथराव के बाद सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी थी. बाद में ऐसी ही हिंसा मंदसौर और इंदौर में भी हुई. उसी हिंसा की ताजा कड़ी है, अकोदिया में हुई यह घटना. इन घटनाओं के दौरान प्रशासन और पुलिस का जो रवैया रहा है, वह बहुत ही निराशाजनक है. उम्मीद करिए कि यह उन्माद यहीं थम जाए.