रोहिंग्या रिफ्यूजी : हम भी भारत के लिए अपना योगदान देना चाहते हैं
रोहिंग्या मुस्लिम 2012 में बर्मा से जान बचा कर भागे थे। तब से वह भारत और अलग अलग देशों में रिफ्यूजी की तरह रह रहें है। भारत में कई इलाकों में उनके रिफ्यूजी कैंप हैं। अली जौहर रोहिंग्या रिफ्यूजी हैं और अब वो एक युवा वालंटियर की तरह समाज के लिए काम कर रहें हैं।
रोहिंग्या मुस्लिम 2012 में बर्मा से जान बचा कर भागे थे। तब से वह भारत और अलग अलग देशों में रिफ्यूजी की तरह रह रहें है। भारत में कई इलाकों में उनके रिफ्यूजी कैंप हैं। अली जौहर रोहिंग्या रिफ्यूजी हैं और अब वो एक युवा वालंटियर की तरह समाज के लिए काम कर रहें हैं। उनका कहना है कि जून में रोहिंग्या रिफ्यूजी कैंप में लगी आग पहली बार नहीं है , इससे पहले भी 2018 में इसी तरह की आग की वारदात हो चुकी है। उनका कहना है कि वो अंतरराष्ट्रीय समुदाय और भारत सरकार से उम्मीद कर रहें हैं कि रोहिंग्या रिफ्यूजी के लिए एक बेहतर ज़िन्दगी की व्यवस्था की जाए। उनका दावा है कि रोहिंग्या रिफ्यूजी किसी पर बोझ नहीं बनना चाहते हैं, बल्कि भारत के लिए एसेट यानी संपत्ति बनना चाहते हैं और भारतीय समुदाय में अपना योगदान देना चाहते है ताकि जब हम यहाँ से जाए तो लोग हमें याद करें। बीते 12 जून की रात दिल्ली के कालिंदी कुंज इलाके में रोहिंग्या रिफ्यूजी के कैंप में आग लग गयी थी , जिसमें 55 झुग्गियां जलकर राख हो गयी थी। लगभग 250 लोग इसवक़्त बेघर हो चुके हैं। अली जौहर जैसे कार्यकर्ता का कहना है कि इस महामारी के दौरान रोज़ी रोटी ढूंढ़ना और दोबारा नयी ज़िन्दगी शुरू करना काफी मुश्किल होने वाला है। साथ ही ऐसे आग की वारदात में ज़रूरी दस्तावेज़ों के जल जाने से उन्हें काफी दिक्कत आती है। अली जौहर ने एक और अहम मुद्दा उठाया कि अगर इस तरह की आग में उनके बर्मा के प्रमाण के दस्तावेज़ जल जाते हैं तो दोबारा उनको बनवा पाना बहुत मुश्किल है और ऐसे में उनके लिए उनकी पहचान पर एक संकट आ जाता है क्योंकि बर्मा की सरकार इनको पिछ्ले से ही अपने देश का नागरिक नहीं मानती है। #RohingyaRefugee #DelhiRohingya #Burma #Delhi