यूपी में कोरोना से 10 लाख लोगों की मौत का दावा करने वाले पूर्व बीजेपी विधायक एशियाविल से बोले- “सच अगर कहते हैं तो अपराध हो जाए”
उत्तर प्रदेश की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की कार्यसमिति के सदस्य एवं पूर्व विधायक राम इकबाल सिंह ने सोमवार को कोरोना वायरस संक्रमण से राज्य में दस लाख लोगों की मौत होने का दावा किया था.हालांकि उन्होंने अपने दावे के समर्थन में कोई आंकड़ें या दस्तावेज पेश नहीं किए. जिस पर काफी बवाल मचा हुआ है. एशियाविल ने राम इकबाल सिंह से उनके इस बयान के बारे में फोन पर उनसे विस्तार से बातचीत की.
राम इकबाल सिंह ने कहा, “ प्रूफ क्या होता है मेरे पास कोई उसका रिकॉर्ड तो है नही! हम लोग गांव में रहते हैं नदियों का किनारा देखते हैं, गांव में ऐसी बहुत जगह हैं जहां शव जलाए जाते हैं. बहुत से लोगों शवों को पानी में फेंक देते हैं. तो मैंने यही बात कही. हो सकता किसी कि सभी लोग कोरोना से न मरे हों क्योंकि अगर किसी को जुखाम खांसी हुई है, तो बोल देते हैं कि कोरोना है. मैंने तो एक आईडिया बताया था किसी को जांच कराना है तो जांच करा ले, समीक्षा कर ले. 25-50 गांव का सर्वे कर ले आईडिया लग जाएगा.”
तो आप इस बात पर कायम है. इस सवाल पर राम इकबाल कहते हैं, “कायम ना कायम रहने की बात नहीं हैं मेरे पास में एक छोटा सा गांव है 400 लोगों की आबादी है वहां 9 लोग मरे हैं. किसी गांव में 15 भी मरे हैं. इस तरीके से काफी डेथ हुई हैं. तो यह सरकारी रिकॉर्ड में नहीं है, सरकारी रिकॉर्ड में तो कितने लोग बलिया में सरकारी अस्पताल में आए. बहुत से लोगों की घर पर डेथ हो गई. और हमारे बलिया में तो सरकारी अस्पताल बहुत दिन से बंद है यहां के 95 परसेंट डॉक्टर प्राइवेट में है. अब मेरे ही गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है. यहां डॉक्टर हफ्ते में 3 दिन आते हैं तो मैंने भी 2 महीने पहले स्वास्थ्य मंत्री से कहा था. इसे तो बेकार व्यवस्था ही कहेंगे ना.”
“और मैंने किसी की व्यक्तिगत आलोचना नहीं की है. मैं एक राजनीतिक कार्यकर्ता हूं, मैं विद्यार्थी परिषद से बीजेपी में हूं, जब बीजेपी बनी भी नहीं थी. अगर कोई मंत्री दौरे पर आता है तो सरकारी अस्पतालों में दवा मिल जाती हैं लेकिन उसके जाते ही फिर वही हाल है सब प्राइवेट में रेफर कर देते हैं. मैं चुनौती देता हूं कि 2 बजे दिन के बाद अगर किसी को कोई समस्या आ जाए तो उसका इलाज प्राइवेट में ही होता है,” राम इकबाल ने कहा.
तो ये कहीं ना कहीं सरकार का ही फेलियर है ना. इस सवाल पर राम इकबाल कहते हैं, “मेरे कहने का मतलब यह नहीं है, आप समझने की कोशिश करिए. स्वास्थ्य विभाग में इतने बड़े अधिकारी हैं, सचिव हैं इन लोगों का क्या काम है. अभी सरकार को फीडबैक देते हैं, कि सब ठीक है. लेकिन हम लोग तो जमीन पर रहते हैं ना, हम देखते हैं क्या ठीक है क्या नहीं. हम देश को आजाद कराए थे, 1942 में बलिया आजाद हो गया था. लेकिन हालत यह है, कि बलिया के जिला अस्पताल में छोटे तो छोड़ दो एक न्यूरो का, हार्ड, किडनी का कई साल से डॉक्टर नहीं है. सब मऊ वाराणसी लखनऊ रेफर करना पड़ता है. अब आप लोग बताओ हम अपना दर्द किससे कहें...सच अगर हम कहते हैं तो अपराध हो जाए.”
लेकिन इस बयान को लेकर आपके ऊपर कारवाई की बात भी हो रही है. इस पर राम इकबाल कहते हैं, “तो इसमें हम क्या कर सकते हैं. जो मैं आपसे बोला हूं सही बोल रहा हूं. राजनीति में हूं तो क्या करूं मुंह में चाव लगाए रहूं...जो सच है उसे ना कहूं. अगर रेप हुआ है कहीं, तो ना कहूं रेप हुआ है... कोई पेमेंट लेता हूं क्या...मैंने भी सेंट्रल यूनिवर्सिटी से पढ़ाई किया है लॉ पढ़ा है, मैं भी अपने फंडामेंटल राइट जानता हूं. जहां नागरिकों के साथ संवेदना ना हो, जहा डॉक्टर लाश के ऊपर से निकल जाए, मरीज चिल्ला रहा हो डॉक्टर बिना पैसे के देखने को तैयार ना हो. सरकार पूरी दवा देती है, लेकिन यह सब दुकानों पर पहुंचा देते हैं. क्या कारण है कि सरकारी अस्पताल के बगल में प्राइवेट दुकान में होती हैं दवाई की. अगर दवा मिलती तो वहां दुकान क्यों होती.”
लेकिन सरकार या राज्य हेल्थ मिनिस्ट्री इस पर कार्रवाई कर सकती है. इस सवाल पर राम इकबाल कहते हैं, “हम तो यही कहते हैं कि उनके ऊपर कार्रवाई करनी चाहिए. सरकार तो यह नहीं चाहेगी ना कि उसके नागरिकों को दवा ना मिले. हां तो यह पहली नहर से सबक कहां सीखें...अस्पतालों में झाड़ू तक नहीं लगता था मैंने कई बार कहा, तब जाकर झाड़ू लगने लगा. शौचालय में जाने में लोग डरते थे. सरकार को धोखा अधिकारी दिए सरकार ने तो नेचुरल कोशिश की होगी. जब कोरोना बंद होने लगा है...तब ऑक्सीजन प्लांट लगाए हैं मुझे खुद करोना हुआ था, तो मुझे लखनऊ जा कर भर्ती होना पड़ा. बताओ क्या करें.”
