लोकसभा चुनाव में वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र के सामने कितनी चुनौती पेश कर पाएंगी सपा-बसपा-रालोद गठबंधन की उम्मीदवार शालिनी यादव.
उत्तर प्रदेश की वाराणसी लोकसभा सीट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले सपा-बसपा-रालोद गठबंधन ने शालिनी यादव को उम्मीदवार बनाया है. वहीं चर्चा इस बात की भी है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की बहन प्रियंका गांधी वाराणसी से चुनाव लड़ सकती हैं. इसे देखते हुए वाराणसी का मुकाबला काफी दिलचस्प होने की उम्मीद है.
सपा प्रमुख अखिलेश यादव के साथ शालिनी यादव.
सपा ने शालिनी यादव की उम्मीदवारी की घोषणा सोमवार को की. वो लोकसभा में वाराणसी का प्रतिनिधित्व कर चुके पूर्व केंद्रीय मंत्री श्यामलाल यादव की बहू हैं. काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से अंग्रेजी में स्नातक शालिनी ने 2017 में वाराणसी के मेयर का चुनाव कांग्रेस के टिकट पर लड़ा था. उन्हें एक लाख 14 हजार वोट मिले थे. लेकिन वो चुनाव हार गई थीं.
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की मौजूदगी में शालिनी सोमवार को कांग्रेस छोड़ सपा में शामिल हो गईं.
वाराणसी में विधानसभा की पांच सीटें शामिल हैं. ये सीटें हैं, रोहनिया, वाराणसी उत्तरी, वाराणसी दक्षिणि, वाराणसी छावनी और सेवापुरी.
वाराणसी की राजनीति
आजादी के बाद से वाराणसी कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है. लेकिन 1990 के दशक में मंडल के जवाब में राम मंदिर आंदोलन शुरू होने के बाद यह सीट बीजेपी ने हथिया ली. लेकिन 2004 के चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस ने वाराणसी में जीत दर्ज की. लेकिन 2009 के बाद से फिर यह सीट फिर बीजेपी के कब्जे में है.
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के साथ शालिनी यादव. (शालिनी यादव की फेसबुक प्रोफाइल से साभार)
बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी 2009 का चुनाव यहां से जीते थे. नरेंद्र मोदी ने 2014 का चुनाव लड़ने के लिए वारणसी को चुना था. इस वजह से मुरली मनोहर जोशी को चुनाव लड़ने कानपुर जाना पड़ा था. इस बार पार्टी ने उन्हें टिकट ही नहीं दिया है.
वाराणसी सीट पर कम्युनिस्ट पार्टी का भी कब्जा रहा है. साल 1967 के चुनाव में यहां से सीपीएम के सत्य नारायण सिंह जीते थे. वहीं 1977 के चुनाव में इंडियन नेशनल लोकदल के टिकट पर चंद्रशेखर जीते थे.
वहीं 1989 में चली जनता दल की लहर में पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के बेटे अनिल शास्त्री यहां से सांसद चुने गए थे.
मोदी लहर में वाराणसी
अगर बात करें 2014 के चुनाव की तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव लड़ने की वजह से यह सीट हाई प्रोफाइल हो गई थी. वाराणसी के चुनाव पर पूरी दुनिया की नजर लग गई. राम मंदिर आंदोलन के बाद हुए सामाजिक ध्रुवीकरण और काशी के रूप में इस शहर की देश-दुनिया मान्यता को देखते हुए बीजेपी ने वाराणसी को नरेंद्र मोदी के लिए चुना था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी.
मोदी के लिए वाराणसी सीट चुनने का एक दूसरा मकसद पूर्वांचल की दूसरी सीटों पर असर डालना भी था, जिन्हें बीजेपी राम मंदिर आंदोलन के बाद से जीतती आ रही थी या वहां अपनी पकड़ मजबूत करती आ रही थी. साल 2014 के चुनाव में नरेंद्र मोदी की ऐसा आंधी चली की बीजेपी और उसके साथियों ने राज्य की 80 में से 73 सीटें जीत लीं.
नरेंद्र मोदी ने 2014 के चुनाव में आम आदमी पार्टी (आप) के अरविंद केजरीवाल को तीन लाख 71 हजार 784 वोटों से हराया था. मोदी को पांच लाख 81 हजार 22 वोट मिले थे. वहीं केजरीवाल को दो लाख नौ हजार 238 मतों से ही संतोष करना पड़ा था.
कांग्रेस उम्मीदवार और विधायक अजय राय 75 हजार 614 वोट मिले थे. वो अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए थे. वहीं बहुजन समाज पार्टी के विजय प्रकाश जायसवाल को 60 हजार 579 वोट मिले. सपा के कैलाश चौरसिया को केवल 45 हजार 291 वोटों से ही संतोष करना पड़ा था. बसपा-सपा के उम्मीदवार भी अपनी जमानत नहीं बचा पाए थे.
सपा-बसपा का गठबंधन
अब लौटते हैं 2019 के चुनाव पर. इस चुनाव के लिए उत्तर प्रदेश की दो कट्टर प्रतिद्वियों सपा-बसपा ने हाथ मिलाया है. ये दोनों दल करीब 24 साल बाद एक साथ आए हैं. सपा-बसपा का दलितों और पिछड़ा वर्ग के लोगों में मजबूत आधार है.
सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव, सपा प्रमुख अखिलेश यादव के साथ बसपा की प्रमुख मायावती.
सपा-बसपा गठबंधन के अस्तित्व में आने के बाद बीजेपी में बेचैनी महसूस की जा रही है. हालात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने आप को पिछड़ा बताने का कोई भी मौका नहीं चूक रहे हैं. वह रह-रह कर खुद को पिछड़ा बता रहे हैं. वहीं सपा-बसपा उन्हें नकली पिछड़ा बता रही हैं. उनका कहना है कि नरेंद्र मोदी ने सत्ता का दुरुपयोग कर खुद को पिछड़ा घोषित कर दिया है.
अब ऐसे में अगर प्रियंका गांधी चुनाव लड़ने के लिए वाराणसी आती हैं और सपा अपने उम्मीदवार को नहीं हटाती है, तो वाराणसी का मुकाबला काफी दिलचस्प होगा. एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी होंगे तो दूसरी ओर उन्हें चुनौती देती नजर आएंगी दो महिलाएं.
वाराणसी का केदार घाट.
सपा-बसपा ने अमेठी और रायबरेली में उम्मीदवार नहीं खड़ा किया है. वहां से राहुल गांधी और सोनिया गांधी चुनाव लड़ रही हैं. वहीं कांग्रेस ने उन सात सीटों पर उम्मीदवार न खड़ा करने की घोषणा की है, जहां से सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव और उनके परिजन चुनाव लड़ रहे हैं.
वाराणसी की बाजी किसके हाथ लगती है, इसका पता तो 23 मई को ही चल पाएगा, जब चुनाव के नतीजे आएंगे.
(हमें फ़ेसबुक, ट्वीटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर फ़ॉलो करें)