ओबीसी दिवस: जातिवार जनगणना की मांग पर यूपी से बिहार तक प्रदर्शन
बिहार-यूपी के कई संगठनों और बुद्धिजीवियों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने 7 अगस्त को राष्ट्रीय ओबीसी दिवस घोषित करते हुए जातिवार जनगणना सहित अन्य मांगों पर सड़क पर उतरने का आह्वान किया था.
ओबीसी दिवस: जातिवार जनगणना की मांग पर यूपी से बिहार तक प्रदर्शन
बिहार-यूपी के कई संगठनों और बुद्धिजीवियों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने 7 अगस्त को राष्ट्रीय ओबीसी दिवस घोषित करते हुए जातिवार जनगणना सहित अन्य मांगों पर सड़क पर उतरने का आह्वान किया था.

इसी को लेकर प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र बनारस से भागलपुर तक अच्छी तादाद में बहुजन समाज और प्रगतिशील नागरिक 7 अगस्त को सड़क पर उतरे और विरोध मार्च, प्रदर्शन व सभाओं का आयोजन किया. कई जगह मार्च निकालकर राष्ट्रपति के नाम जिलाधिकारी को ज्ञापन भी सौंपा गया. इन संगठनों ने ओबीसी की जाति जनगणना नहीं कराने को इस समुदाय के सम्मान व पहचान पर हमला बताते हुए कहा कि जातिवार जनगणना संवैधानिक मांग है और ओबीसी के संवैधानिक हक व सामाजिक न्याय के लिए बुनियादी जरूरत है.
राष्ट्रीय ओबीसी दिवस को जातिवार जनगणना सहित अन्य सवालों पर सड़क से सोशल मीडिया तक आवाज बुलंद करते हुए मनाने का आह्वान करने वाले संगठनों के प्रतिनिधियों और सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं में प्रमुख हैं- पूर्वांचल बहुजन मोर्चा के डा. अनूप श्रमिक, पूर्वांचल किसान यूनियन के योगीराज पटेल, बनारस के अधिवक्ता प्रेम प्रकाश यादव, पटना के युवा सामाजिक कार्यकर्ता रंजन यादव, बहुजन स्टूडेंट्स यूनियन (बिहार) के अनुपम आशीष, रिहाई मंच के बलवंत यादव, आदि शामिल थे.
इस बारे में रिहाई मंच लखनऊ ने एक प्रेस विज्ञप्ति भी जारी की. जिसमें रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि 7 अगस्त 1990 खासतौर से ओबीसी समाज के लिए भारी महत्व का दिन है. इसी दिन वी.पी. सिंह की केन्द्र सरकार ने मंडल आयोग की कई अनुशंसाओं में एक अनुशंसा-सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण को लागू करने की घोषणा की थी. देश की 52 प्रतिशत आबादी के लिए सामाजिक न्याय की दिशा में इस फैसले का राष्ट्रीय महत्व है. इस दिन हमें पूरा-पूरा हक-हिस्सा लेने की लड़ाई को तेज करने का संकल्प लेना है. ओबीसी पहचान और बहुजन एकजुटता को बुलंद करते हुए ही सामाजिक न्याय की लड़ाई को आगे बढ़ाया जा सकता है और भाजपा को पीछे धकेला जा सकता है.
गौरतलब है कि पिछले काफी दिनों से जातीय जनगणना की मांग उठाई जा रही है. समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी पिछले दिनों जातीय जनगणना की वकालत की थी.
आरक्षण सीमा बढ़ाई जाये और जातिय जनगणना कराई जाये: @yadavakhilesh जी
— R.B.Yadav (@YRBSamajwadi) August 10, 2021
जिसकी जितनी संख्या भारी
उसकी उतनी हो हिस्सेदारी ! pic.twitter.com/EtJ4X7Qxal
सामाजिक न्याय आंदोलन (बिहार) के गौतम कुमार प्रीतम से एशियाविल ने बातचीत की.
गौतम कुमार ने मुझे बताया, “आरक्षण क्या होता है कि आरक्षण तो मिला लेकिन सीट पर वैकेंसी को खाली रखते तो हैं. जैसे वर्तमान में जो बैकलॉग में सीट खाली है उनमें सिर्फ यूनिवर्सिटी में ही पचास हजार से ज्यादा सीट खाली हैं. जबकि पूरे देश के अंदर सात लाख से ज्यादा खाली हैं. और हमारी मांग है कि जो पदाधिकारी उन सीटों को नहीं भर रहा है वह संघीय अपराध के दायरे में आए और उस को दंड दिया जाए. यानि जो आरक्षण है, वह अनिवार्य रूप से लागू होना चाहिए. अभी होता क्या है कि आरक्षित सीट खाली रख देते हैं और जनरल सीट भर देते हैं. अभी जातीय जनगणना में केंद्र ने क्या किया है कि उसे स्टेट के अधीन कर दिया है यानी स्टेट अपनी जाति का जनगणना कर सकता है. वह तो पहले से ही था, जिसे अटल बिहारी वाजपेई की सरकार ने खत्म कर दिया था और अभी मोदी सरकार में यह फिर आया है. हमारी मांग है कि ये स्टेट नहीं सेंट्रल में होना चाहिए. क्योंकि फिर जो सेंट्रल गवर्मेंट की जॉब निकलेंगी, उसमें तो आरक्षण के स्तर पर नौकरी नहीं मिल पाएगी. और आगे हम जल्द ही भारत बंद करने की कॉल भी लेने वाले हैं.”
री की गई विज्ञप्ति के मुताबिक, यूपी के बनारस में जातिवार जनगणना की मांग पर वकील, किसान, पत्रकार छात्र-नौजवान व सामाजिक कार्यकर्ता बड़ी तादाद में जुटे और शास्त्री घाट कचहरी से जिला मुख्यालय तक मार्च निकालकर राष्ट्रपति के नाम जिलाधिकारी को ज्ञापन भी सौंपा गया. बनारस में प्रेम प्रकाश यादव, योगीराज पटेल, अनुप श्रमिक, जयप्रकाश निराला, इंद्रजीत पटेल, परवेज़, मनमोहन आदि के नेतृत्व में शास्त्री घाट कचहरी से जिला मुख्यालय तक मार्च निकालकर राष्ट्रपति के नाम जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपा.

वहीं बिहार के भागलपुर शहर के साथ बिहपुर व सुल्तानगंज में सामाजिक न्याय आंदोलन (बिहार) और बहुजन स्टूडेंट्स यूनियन (बिहार) के बैनर तले जातिवार जनगणना कराने, ओबीसी को आबादी के अनुपात में आरक्षण देने, न्यायपालिका व निजी क्षेत्र में एससी-एसटी-ओबीसी को आरक्षण देने, एससी-एसटी-ओबीसी आरक्षण के प्रावधानों के उल्लंघन को संज्ञेय अपराध बनाने की मांगों को लेकर विरोध मार्च, प्रदर्शन व सभाओं का आयोजन हुआ. जिसमें सामाजिक न्याय आंदोलन (बिहार) के रिंकु यादव और कम्युनिस्ट फ्रंट (बनारस) के मनीष शर्मा ने कहा कि एक बार फिर हिंदी पट्टी की सड़कों पर 90 के शुरुआती दौर के लौटने की धमक सुनाई पड़ रही है. ओबीसी समाज हिंदुत्व के जकड़बंदी से बाहर निकलते हुए सामाजिक न्याय के लिए सड़कों पर आ रहा है. नये सिरे से ओबीसी दावेदारी और बहुजन एकजुटता आगे बढ़ती हुई दिख रही है. किसानों ने दिल्ली घेर रखा है तो किसान जातियां सामाजिक न्याय के प्रश्नों पर फिर से खड़ा हो रही हैं. पिछड़ों-दलितों के वोट पर चलने वाली पार्टियां भी सड़क पर आने और मुंह खोलने को बाध्य हो रही है.
