'दिल्ली पुलिस ने लोकतंत्र के सीने में ठोकी हैं लोहे की कीलें
दिल्ली पुलिस ने सीमाओं पर किसानों को रोकने के लिए जिस तरह की किलेबंदी की है, उसकी वजह से उसकी काफी आलोचना हो रही है.प्रदर्शनकारी किसानों का कहना है कि किसान इससे डरने वाले नहीं हैं.
नरेंद्र मोदी सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन जारी है. किसानों का सबसे बड़ा जमावड़ा दिल्ली की सीमाओं पर है. दिल्ली के सिंघू, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर हजारों की संख्या में किसान धरना दे रहे हैं.

दिल्ली की इन सीमाओं की कुछ तस्वीरें सोमवार शाम से सोशल मीडिया पर वायरल होने लगीं. दरअसल ये तस्वीरें इन सीमाओं पर दिल्ली पुलिस की ओर से की गई किलेबंदी की थीं.
किसानों की घेराबंदी करने के लिए पुलिस ने सीमाओं पर कंटीले तार, लोहे के बैरिकेड्स, क्रंकीट के बैरिकेड्स लगाए हैं. और कंक्रीट के स्लैब के बीच सीमेंट और बालू का मसाला भरा है. पुलिस ने रास्तों पर कई फिट गहरे गड्ढे भी खोदे हैं. और तो और सड़कों पर छड़ से बनाई गई बड़ी-बड़ी नुकीली कीलें भी धंसा दी गई हैं. गाजीपुर बॉर्डर जैसी किलेबंदी दिल्ली पुलिस ने टिकरी और सिंघू बॉर्डर पर भी की है. इन दोनों बॉर्डर पर भी किसान प्रदर्शन कर रहे हैं.

दिल्ली पुलिस की यह किलेबंदी देख हर कोई हैरान है. दिल्ली पुलिस की यह किलेबंदी लोगों के समझ से बाहर है.
जमीन बचाने की लड़ाई
गाजीपुर बॉर्डर पर मुझे उत्तर प्रदेश के बदायूं जिले के बिल्सी तहसील के एक गांव से आए झांझन सिंह मिले. अब 79 साल के हो चुके झांझन सिंह से जब मैंने पुलिस की इस किलेबंदी को लेकर सवाल किया तो उनका कहना था कि ये कीलें लोकतंत्र के सीने में ठोकी गई हैं. इससे लोकतंत्र जख्मी हो गया है.
झांझन सिंह किसानों का आंदोलन शुरू होने के बाद से अबतक चार बार गाजीपुर आकर धरने पर बैठ चुके हैं. 30 बिघे जमीन के मालिक झांझन सिंह कहते हैं कि वो अपनी जमीनें बचाई आए हैं. उनका कहना था कि अगर ये तीनों कृषि कानून लागू हो गए, तो उनकी जमीनें नहीं बच पाएंगी.
गाजीपुर बॉर्डर पर किसान आंदोलन में शामिल लोगों में उत्तर प्रदेश के साथ-साथ हरियाणा, पंजाब और उत्तराखंड से आए किसान हैं. इन्हें लोगों में मिले उत्तर प्रदेश के संभल से आए मनोज कुमार. खेती-किसानी करने वाले मनोज कुमार ने कहा कि प्रधानमंत्री अपने ही लोगों के रास्ते में कंटीले तार बिछा रहे हैं. उन्होंने दिल्ली पुलिस की इस कार्रवाई को लोगों को मारने की साजिश बताया है. इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि किसान सरकार के इन कदमों से डरने वाले नहीं हैं. उन्होंने कहा कि अगर सरकार ने किसानों का उत्पीड़न नहीं रोका तो वो आत्मदाह कर लेंगे.

उत्तर प्रदेश के कासगंज से आए 30 साल के किसान राजू यादव ने कहा कि जिस तरह से सरकार किसान आंदोलन से निपट रही है, उससे किसानों और गांवों में काफी नाराजगी है. उन्होंने कहा कि बीजेपी को इसकी कीमत चुनाव में चुकानी पड़ेगी. आंकड़े गिनाते हुए राजू ने कहा कि उत्तर प्रदेश संसद में सबसे अधिक सांसद भेजने वाला राज्य है. बीजेपी के सबसे अधिक सांसद भी इसी राज्य से जीते हैं. उन्होंने कहा कि अगर सब कुछ ऐसे ही चलता रहा तो अगले साल होने वाले उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव और 2024 में होने वाले आम चुनाव में बीजेपी का सुपड़ा साफ हो सकता है.
बीजेपी का राजनीतिक नफा-नुकसान
राजू यादव की बातों से मेरठ से आए किसान अनिल कुमार भी सहमति जताते हैं. गन्ने की खेती करने वाले अनिल कुमार बताते हैं कि वो बीजेपी के कार्यकर्ता और पदाधिकारी हैं. वो कहते हैं कि सबसे पहले मैं किसान हूं, इसलिए वो यहां किसानों के धरने में शामिल होने आए हैं. अनिल कुमार बताते हैं कि बीजेपी को लेकर गांवों में बहुत नाराजगी है. लोग बहुत गुस्से में हैं. इसका बीजेपी को आने वाले चुनावों में नुकसान हो सकता है.
गाजीपुर में किसानों के धरनास्थल पर कई घंटे घूमने के बाद एक बात यह भी समझ में आई कि किसानों के सामने केवल ये कृषि कानून ही समस्या नहीं हैं, बल्कि उनके सामने बेरोजगारी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे मुद्दे भी हैं. वो चाहते हैं कि उनके बच्चे पढ़-लिखकर नौकरी करें, न की किसानी. वो अपने लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं और शिक्षा की व्यवस्था भी चाहते हैं. यही बात राजू यादव भी कहते हैं. राजनीति शास्त्र से एमए करने वाले राजू कहते हैं कि जब पढ़ने-लिखने के बाद नौकरी नहीं मिली तो उन्होंने खेती-बाड़ी शुरू की. लेकिन खेती-किसानी कर गुजारा कर पाना बहुत मुश्किल है.

मेरठ से आए नितिन बालियान ने कहा कि गांवों में लोग अपनी फसलों को अवारा पशुओं से बचाने के लिए खेतों की बाड़बंदी करते हैं, कटीले तार लगाते हैं. वो कहते हैं कि दिल्ली की सीमाओं पर सरकार ने जिस तरह से बैरिकेडिंग की है, उसे देखकर तो यही लगता है कि सरकार किसानों को जानवर से भी बदतर समझ रही है.
पंजाब से आया एक नौजवान गाजीपुर बॉर्डर पर वालंटियर का काम करता है. वो अपना नाम नहीं देना चाहते हैं. दिल्ली पुलिस की किलेबंदी के सवाल पर वो कहते हैं कि यह किसानों के खिलाफ आम लोगों को भड़काने की कोशिश है. उन्होंने कहा कि 26 जनवरी की घटना के बाद सीमाओं पर आम लोगों की भावनाएं भड़काने की कोशिश हुई थी. लेकिन वो सफल नहीं हो पाई. अब इस तरह से किलेबंदी कर आम लोगों को परेशान करने की कोशिश की जा रही है.

वो कहते हैं कि पुलिस की इस घेरेबंदी से आम लोगों को ही परेशानी हो रही है. वो बताते हैं कि किसानों ने सड़क पर एंबुलेंस और अन्य जरूरी सेवाओं वाली गाड़ियों के लिए रास्ता छोड़ रखा था. उससे एंबुलेंस बहुत आसानी से आती-जाती थीं. लेकिन पुलिस की इस बाड़बंदी से एंबुलेंस का रास्ता भी बंद हो गया है. वो बताते हैं कि मंगलवार को ही 4 एंबुलेंस को यहां से लौटकर जाना पड़ा.