भारत एक लोकतांत्रिक देश होने के नाते संविधान के अनुच्छेद 15 में राज्य के द्वारा धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान के आधार पर नागरिकों के प्रति जीवन के किसी क्षेत्र में भेदभाव नहीं किए जाने की बात कही गई है. लेकिन ये विडंबना ही है कि देश को आजाद हुए सात दशक से भी अधिक समय बीत जाने के बाद भी हम जाति प्रथा के चंगुल से मुक्त नहीं हो पाएं हैं.
ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि जातिगत भेदभाव का ताजा मामला देश के समृद्ध माने जाने वाले और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृहनगर गुजरात से आया है. जहां कुछ दूसरी जाति के लोगों पर अनुसूचित जाति के एक युवक को मूछ रखने पर कथित तौर से बुरी तरह पीटने और धारदार हथियार से हमला का आरोप लगा है.
खबरों के मुताबिक, यह घटना रविवार रात की है. इसके अगले दिन यानी सोमवार को वाघेला की शिकायत पर वीरमगाम ग्रामीण थाने में छह नामजद और चार अज्ञात लोगों के खिलाफ एससी/एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है. अहमदाबाद के पुलिस उपाधीक्षक डी एस व्यास ने बताया कि इस घटना में शामिल तीन आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है वहीं अन्य लोगों की तलाश जारी है. पुलिस इस मामले में पीड़ित के आरोपों की भी जांच कर रही है. पीड़ित सुरेश वाघेला अहमदाबाद के साणंद जीआईडीसी इलाके की एक कंपनी में कार्यरत हैं.
परंपरा है मूँछों की। मर्ज़ी की भी बात है। सुरेश वाघेला को रोकने का अधिकार किसी को नहीं है। #सुरेश_मूँछ_जरूर_रखेगा pic.twitter.com/6NF8TUO2j0
— Dilip Mandal (@Profdilipmandal) May 26, 2021
दो दिन बाद 26 मई को यह मामला तब सुर्खियों में आया जब सोशल मीडिया यूजर्स ने इस घटना के पीड़ित युवक सुरेश वाघेला के समर्थन में मुहिम छेड़ दी है. माइक्रोब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर अनेक लोग "सुरेश मूंछ जरूर रखेगा" हैशटैग के साथ अपनी तस्वीरें साझा करने लगे. कुछ ही देर में यह हैशटैग ट्विटर पर टॉप ट्रेंड करने लगा.
देश में दलित आंदोलन को मज़बूत करने की बात करने वाले और गुजरात की वडगाम सीट से निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी अहमदाबाद की घटना पर एशियाविल से कहते हैं, "दरअसल घोड़ी चढ़ने पर लंबी मूछ रखना. अब दलित ऊंचा उठ गए वह भी प्रयास कर रहे हैं. वह भी राजनीति करेंगे सीना तान के जिएंगे, यह सब इन्हें पसंद नहीं आता. यह सब सो-कोल्ड अपर कास्ट वालों को हजम नहीं होता. छुआछूत,जातिगत भेदभाव और जातिगत हिंसा पूरे देश में अभी जिंदा है. और यह इसलिए होता है क्योंकि इस तरीके की घटना होने के बाद जब तक पुलिस पर दबाव ना बनाया जाए तब तक वह ना तो कोई केस दर्ज करती है ना गिरफ्तारी करती है. दूसरी बात यह है कि अगर यह सब केस को भी जाते हैं तो फिर आगे यह ना हो उसके लिए जो करना है वह नहीं होता है जैसे कोई कैंपेन इसके लिए लांच किया जाए लोगों को जागरूक किया जाए, इसका कोई प्रोग्राम गुजरात सरकार के पास नहीं है. भेदभाव खत्म करने का या जो लोग ऐसा कर रहे हैं उन पर सख्त कानून बनाया जाए, ऐसा कोई एजेंडा नहीं है.”
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