चिंपैंजी के मल को लैब में लेकर उससे एडीनोवायरस को अलग किया गया और फिर उसे ही इंसानी शरीर में डाला गया. कोरोना वैक्सीन तैयार करने की ऑक्सफोर्ड की ये तकनीक काम कर गई.
दुनियाभर के देश कोरोना वायरस वैक्सीनेशन को लेकर तैयारी करने में जुटे हुए हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि कोरोना वैक्सीन कैसे बनी है? निश्चित तौर एक फार्मास्युटिकल फैक्टरी से, लेकिन उससे भी पहले कहां से? आपको ये जानकर हैरानी होगी कि एक कंपनी ने कोरोना वैक्सीन बनाने में चिंपैंजी के मल का भी इस्तेमाल किया है. ये वैक्सीन है ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और ब्रिटिश फार्मा कंपनी एस्ट्राजेनेका की. औसतन 70 फीसदी असरदार कहा जा रही ये वैक्सीन चिंपैंजी के मल से तैयार है.
जैसे किसी सुपरहीरोज के बनने की स्टोरी होती है, वैसे ही इस वैक्सीन की ऑरिजन स्टोरी यही है कि ये चिंपैंजी के कोल्ड वायरस से तैयार हुई है. यानि ऑक्सफोर्ड वैक्सीन चिंपैंजी में सर्दी का कारण बनने वाले एक वायरस से बनी है. साल 2020 के दिसंबर में वैक्सीन के ट्रायल का तीसरा चरण पूरा हुआ. इसके बाद से इसके खरीददार देशों में टीके की मांग हो रही है. औसत के आधार पर 70 फीसदी असरदार इस वैक्सीन के बारे में कहा जा रहा है कि ये दो अलग परिमाणों में डोज दिए जाने पर 90 फीसदी असरदार होगी.
अब बात करते हैं कि वैक्सीन कैसे बनी. इसके लिए चिंपैंजी की मदद ली गई. साइंस जर्नल वेरी वेल हेल्थ में इस प्रक्रिया के बारे में बताया गया है. चिंपैंजी के स्टूल यानी मल को लेकर उसमें से एडीनोवायरल अलग किया गया. एडीनोवायरस जेनेटिकली मॉडिफाइड वायरस है इसलिए ये इंसानी शरीर के भीतर बढ़ता और बीमारी नहीं फैलाता है.

ऐसे में अब सवाल उठता है कि कैसे चिंपैंजी का स्वैब लिया गया उसके छींकने के बाद रूमाल से उसका मुंह साफ किया गया. जर्नल मेडिकल एंड इंजीनियरिंग में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, , उन्होंने सिर्फ एक बीमार चिंपैंजी का चेहरा ढूंढा बस. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने 8 साल पहले ChAdOx1 यानी चिंपैंजी एडिनोवायरस ऑक्सफोर्ड 1 विकसित किया था. इस वैक्टर का इस्तेमाल कोविड वैक्सीन के अलावा फ्लू, जीका और चिकनगुनिया में भी होता रहा है.
चिंपैंजी के मल से लिया गया एडीनोवायरस इंसानी शरीर में जाकर अलग तरह से प्रतिक्रिया करता है. ये इंसानी कोशिकाओं को कोरोना वायरस का स्पाइक प्रोटीन बनाने के लिए प्रेरित करता है. इससे शरीर में कोरोना संक्रमण हुए बगैर ही उसके लिए एंटीबॉडी तैयार हो जाती है.
पहले से तैयार और स्टडी किए जा चुके वायरस पर ही प्रयोग के कारण ऑक्सफोर्ड की कोविशील्ड फाइजर और मॉडर्ना से ज्यादा सस्ती हो सकती है और ज्यादा आसानी से लोग इसपर यकीन कर पाएंगे, ऐसी उम्मीद है. फाइजर और मॉडर्ना दोनों ने वायरस के मृत RNA पर इस्तेमाल करके टीका तैयार किया है, जो काफी महंगी तकनीक थी.

वहीं कोविशील्ड के बारे में एसोसिएटेड प्रेस ने ऑक्सफोर्ड के ही हवाले से बताया कि इसका रखरखाव भी आसान होगा. इसके लिए बहुत कम तापमान की जरूरत नहीं होगी और फ्रिज के सामान्य तापमान पर ही इसे स्टोर किया जा सकेगा. ये गरीब और कम संपन्न देशों के लिए बड़ी राहत होगी.
इटली की एक कंपनी रेईतेरा ने गुरिल्ला के मल में पाए गए एडीनोवायरस के जरिए कोरोना का टीका विकसित किया. सितंबर तक यूरोपियन यूनियन और इटली की कंपनी के साथ वैक्सीन GRAd-COV2 की डील के लिए बातचीत हो रही थी लेकिन उसके बाद फंड की कमी से ये टीका शायद रुक गया. जो भी हो, इसकी कोई जानकारी सामने नहीं आ सकी है.
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