छत्तीसगढ़ : सरकार और माओवादियों को वार्ता की टेबल पर लाने के लिए बनी समिति
माओवाद प्रभावित छत्तीसगढ में सिविल सोसाइटी ने पहल करते हुए सरकार और माओवादियों को बातचीत के लिए राजी करने के लिए एक समिति की गठन किया है. यह देखना दिलचस्प होगा कि समिति को कितनी सफलता मिलती है.
छत्तीसगढ़ का करीब आधा हिस्सा माओवाद से प्रभावित है. माओवादियों और सरकार की कार्रवाई में अबतक हजारों लोग मारे जा चुके हैं. मरने वालों में आदिवासियों की संख्या सबसे अधिक है. माओवाद का प्रभाव भी अधिकतर आदिवासी बहुल इलाकों में ही है. छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में जारी राजनीतिक हिंसा को खत्म करने के लिए सिविल सोसाइटी ने एक पहल की है.

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में इस महीने की 22 तारीख को सिविल सोसाइटी की एक बैठक आयोजित की गई थी. इसमें बस्तर में जारी राजनीतिक हिंसा को खत्म करने के लिए सरकार और माओवादियों के बीच बातचीत के प्रयास शुरू कराने का प्रयास करने के लिए एक समिति बनाई गई.
कौन कौन है समिति में
समिति के प्रमुख सदस्यों पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष नंद कुमार साय और सीपीआई नेता मनीष कुंजाम शामिल हैं. वरिष्ठ पत्रकार शुभ्रांशु चौधरी इस समिति के संयोजक बनाए गए हैं. वरिष्ठ पत्रकार दिवाकर मुक्तिबोध और कमल शुक्ल, सामाजिक कार्यकर्ता इंदु नेताम और सर्व आदिवासी समाज के मनोनीत कार्यकारी अध्यक्ष बीएस रावटे, राजनेता वीरेंद्र पांडे, लेखक गिरीश पंकज, सीपीआई के राज्य सचिव आरडीसीपी राव इस समिति के अन्य सदस्य हैं.
समिति को राज्य के जिलों में और सदस्यों को जोड़ने और कोर टीम बनाने का अधिकार दिया गया है. बैठक में तय किया गया कि यह समिति विभिन्न जिलों में बैठकें आयोजित कर अपनी सदस्यता बढ़ाने का प्रयास करेगी.

समिति के सदस्यों का कहना है कि छत्तीसगढ़ में सत्तारूढ़ कांग्रेस ने अपने चुनाव घोषणापत्र में माओवादियों से बातचीत के लिए गंभीर प्रयास करने का वादा किया था. उनका कहना है कि सरकार के यह याद दिलाने की जरूरत है. इसके साथ ही माओवादियों को यह बताने की जरूरत है कि किसी भी राजनीतिक उद्देश्य को पूरा करने के लिए आज के समय हिंसा की जरूरत नहीं है. समिति के सदस्यों का मानना है कि इस समस्या के समाधान के लिए बातचीत के अलावा कोई और विकल्प नहीं है.
सरकार और माओवादियों के बीच बातचीत की एक कोशिश 2004 में आंध्र प्रदेश में राजशेखर रेड्डी के नेतृत्व में बनी कांग्रेस सरकार ने की थी. इसके बाद युद्धविराम भी हुआ था. लेकिन वो बहुत दिन तक चला नहीं. और माओवादियों ने फिर से हथियार उठा लिए थे. यहां तक कि उसके बाद से पीपुल्स वार ग्रुप (पीडब्लूजी) और माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर (एमसीसी) के विलय के बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) का गठन हुआ था. इससे माओवादियों की ताकत काफी बढ़ गई थी.

बातचीत के लिए प्रयास शुरू करने के लिए गठित समिति के सदस्यों का कहना है कि उन्हें आंध्र प्रदेश में असफल हुई बातचीत में हुई गलतियों से सबक भी लेना है. इसके साथ ही दुनिया के अन्य देशों में हुए सफल प्रयोगों को भी देखना है.
बस्तर की समस्या
छत्तीसगढ़ में माओवादियों और सरकार के बातचीत कभी नहीं हुई है. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि समिति इस दिशा में क्या कोशिश करती है और उसे अपने मिशन में कितनी सफलता मिलती है.
समिति में शामिल पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम से 'एशियाविल हिंदी' ने बातचीत की. नेताम ने कहा, ''देश में माओवाद से सबसे अधिक प्रभावित इलाका बस्तर ही है. लेकिन हालत यह है कि इस समस्या के समाधान के लिए न तो मुझे सरकार गंभीर नजर आती है और न ही माओवादी. हालात ठीक वैसे ही हैं, जैसा कि इस समय दिल्ली में किसान आंदोलन को लेकर है.''
वो कहते हैं कि बैठक में यह बात हुई कि सरकार और माओवादियों को वार्ता की टेबल पर लाने के लिए किसी न किसी को तो पहल करनी होगी. इसलिए इस कमेटी का गठन किया गया है. वो कहते हैं कि इस प्रक्रिया में सफलता मिलती है या नहीं, यह अलग बात है. वो कहते हैं कि जबतक इसमें केंद्र सरकार के स्तर से कोई प्रयास नहीं होता या इच्छा नहीं दिखाई जाती है, तबतक सफलता को लेकर थोड़ी आशंका है. उनका यह भी कहना था कि यह भी पता नहीं चल पाता है कि माओवादियों में किससे बाचतीत की जाए. लेकिन अब जब प्रक्रिया शुरू हुई है तो थोड़ी उम्मीद बंधी है कि कुछ हासिल हो सकता है या कुछ तो हो रहा है.
समिति में बीजेपी के वरिष्ठ नेता और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष नंदकुमार साय भी सदस्य हैं. 'एशियाविल हिंदी' से हुई बातचीत में साय कहते हैं, ''बस्तर अभी भी अशांत है. गोली और बंदूक बहुत दिन चल चुकी है. उससे अभी तक किसी भी चीज का समाधान नहीं हुआ है. इसलिए यह आवश्यकता महसूस की जा रही थी कि इसका अंतिम रूप से समाधान कैसे निकालेगा. आखिर विश्व युद्ध का अंत भी तो वार्ता की मेज पर ही हुआ था.समाधान का रास्ता तलाशने के लिए कुछ प्रबुद्ध लोगों ने यह बैठक की.''
साय कहते हैं कि इस संबंध में सबसे पहले राज्य सरकार से बातचीत की जाएगी कि वो क्या चाहती है. राज्य सरकार की मनस्थिति क्या है, वह बातचीत चाहती है या नहीं. वो यह भी कहते हैं कि अगर सरकार बातचीत में रुचि नहीं दिखाएगी, तो यह प्रयास अपने आप वहीं खत्म हो जाएगा. साय ने बताया कि इस दिशा में आगे की बातचीत के लिए समिति एक बैठक 4 मार्च को बुलाई गई है.