हम चिपको आंदोलन चलाएंगे और अंतिम सांस तक पेड़ों को नहीं कटने देंगे
मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के बक्स्वाहा में हीरा खनन के लिए जंगल को काटे जाने की चल रही प्रक्रिया के विरोध तेज होता जा रहा है. पर्यावरणविदों और कार्यकर्ताओं के साथ स्थानीय लोग इसे बचाने के लिए बक्स्वाहा जंगल बचाओ आंदोलन, चिपको आंदोलन, हरित सत्याग्रह, जैसे आदोलन चला रहे हैं. पर्यावरणविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि इन जंगलों की कटाई से पर्यावरण और स्थानीय आदिवासियों को अपूरणीय क्षति होगी. इसके अलावा छतरपुर में पूर्णतया अहिंसक व कोविड के गाइडलाइन का पालन करने का लिखित आश्वासन के साथ 26 से 30 जून तक 5 दिवसीय अनशन की अनुमति मांगी थी. जिसे प्रशासन ने देने से इंकार कर दिया.
दरअसल राज्य सरकार ने पिछले दिनों, आदित्य बिरला ग्रुप की एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड को बक्सवाहा के जंगलों की कटाई करने की अनुमति दे दी है. यह अनुमति इस क्षेत्र में पाई जाने वाली हीरों की खानों की खुदाई के सन्दर्भ में दी गई है. अनुमान है कि 382.131 हेक्टेयर के इस जंगल क्षेत्र के कटने से 40 से ज्यादा विभिन्न प्रकार के 2 लाख से ज्यादा जंगली पेड़ों को कंपनी काटेगी.
इन पेड़ों के कट जाने से यहां के लोगों का जीवन बेहद कठिन होने की संभावना है. क्योंकि आदिवासी लोगों की आजीविका इन जंगलों की पत्तियों, फलों-बीजों पर ही निर्भर करती है. स्थानीय आदिवासियों ने इसे अपने जीवन पर संकट बताते हुए इस परियोजना पर रोक लगाने की मांग करते हुए एनजीटी में याचिका दाखिल कर दी है. एनजीटी में इस मामले की अगली सुनवाई 30 जून को होगी.
पहले से ही पानी की भारी कमी से जूझते बुंदेलखंड के इस क्षेत्र में पेड़ों की कटाई से यहां होने वाली वर्षा में भी भारी कमी आने की संभावना है. क्योंकि इसी क्षेत्र से बुंदेलखंड क्षेत्र में भी जल उपलब्धता सुनिश्चित होती है. यहां के पेड़ कटने से जल बहाव प्रभावित होगा और बुंदेलखंड क्षेत्र को और अधिक जल संकट का सामना करना पड़ सकता है. और क्षेत्र में रहने वाले लाखों वन्य जीवों के प्राकृतिक आवास पर भी असर पड़ेगा.
एशियाविल ने “बक्स्वाहा जंगल बचाओ आंदोलन” के सदस्य और सामाजिक कार्यकर्ता अमित भटनागर से इस मामले में बात की.


अमित ने मुझे बताया, “मैं पहले से ही आंदोलनों में प्रमुख भूमिका में रहता हूं. हम 14-15 साल से जल, जंगल, जमीन और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते और गांधीवादी तरीके से अनशन करते रहते हैं. अब यहां बक्स्वाहा में जंगल कट रहा है और वह भी विकास के लिए नहीं कि बिजली, पानी या किसी और परपज के उद्देश्य से बल्कि हीरे निकालने के लिए उसे काटा जाएगा. इस परियोजना से पर्यावरण का बहुत नुकसान होगा. क्योंकि हीरा निकालने के लिए 11 सौ फुट नीचे खुदाई करनी पड़ेगी. इससे तो पूरा जंगल ही तहस-नहस हो जाएगा. बुंदेलखंड वैसे भी अपनी गरीबी के लिए जाना जाता है और उसमें भी यह बक्सवाहा तहसील और ज्यादा गरीबी के लिए जानी जाती है. पानी के लिए वहां कोई खास साधन नहीं है लेकिन हीरा खदान के लिए मैन्युफैक्चरिंग में एक करोड़ 60 लाख लीटर पानी प्रतिदिन लिया जाएगा. तो उसके लिए वहां एक नदी है जो अभी बरसाती नदी बन चुकी है उस नाले पर यह लोग बांध बनाएंगे. तो जंगली जानवर वगैरह है उनके लिए भी चिंता की बात है.”
अमित बताते हैं, “तो हम इसे बचाने के लिए लोग इस लड़ाई को लड़ रहे हैं. इसमें छोटे-छोटे ग्रुप बना कर सैकड़ों लोग शामिल हैं. इसके लिए हमने वहां पर अनशन रखा था कि हम उपवास रखेंगे और हमने प्रशासन से लिखित में अनुमति मांगी थी साथ ही लिखा था कि जो कोरोना की गाइडलाइंस है उसी के हिसाब से हम अनशन करेंगे. और यह आंदोलन पूरी तरह अहिंसक होगा. इससे पहले भी हमने कई आंदोलन किए हैं, किसी में भी किसी प्रकार की कोई हिंसा नहीं हुई है. लेकिन इसके लिए प्रशासन ने हमें अनुमति नहीं दी जबकि यहां सांसदों नेताओं के कोरोना के बावजूद चुनाव संबंधी रैलियां हुई. अभी भी कोरोना वैक्सीन एक्शन के लिए रेलिया निकल रही हैं. हम सरकार में संवेदना पैदा करना चाहते थे.”
“अब सरकार कह रही है कि कंपनी में 400 लोगों को रोजगार देगी .लेकिन उसमें जो महुआ, चिरवा, चिरौंजी के पेड़ हैं उनसे तो पहले ही 5000 से ज्यादा लोग रोजगार प्राप्त कर रहे हैं और वह समाज के बिल्कुल निचले तबके के आदिवासी लोग हैं. जिनके लिए सरकार भी काफी योजनाएं भी लाती है लेकिन भ्रष्टाचार के कारण वह इन तक नहीं पहुंच पाती हैं. और कंपनी जो 400 लोगों को रोजगार देगी, वह तो कुछ सक्षम और पढ़े लिखे होंगे. लेकिन इन बिल्कुल निचले तबके के लोगों जिनके तन पर पूरा कपड़ा भी नहीं है. उनके हाथ से काम चला जाएगा तो उनका क्या होगा, इसका सरकार के पास कोई जवाब नहीं है,” अमित ने बताया.
अंत में अमित कहते हैं, “हालांकि आंदोलन वहां लगातार चल रहा है भले ही सरकार ने हमें परमिशन ना दी हो लेकिन जंगल बचाना हमारा दायित्व है. और कोरोना के खतरे को देखते हुए जिस तरीके से हम मार्केट जा रहे हैं, उसी तरीके से जंगल बचाने के लिए भी निकलेंगे जंगल चला गया तो फिर तो बहुत दिक्कत है ऑक्सीजन कहां से मिलेगी. हम तो हरित सत्याग्रह करेंगे, इसमें पहले दिन हम उपवास रखेंगे और दूसरे दिन रक्तदान, श्रमदान जैसे कार्य करेंगे. और हमारी कल वेब मीट हुई है, इसमें कई कृषि वैज्ञानिक, रिटायर्ड आईएएस-आईपीएस सबसे चर्चा हुई है. तो उन्होंने कहा है कि सरकार इस तरीके से हमें नहीं रोक सकती और हमारे संविधान अधिकारों को नहीं दबा सकती. हम शांतिप्रिय तरीके से अपने कार्यक्रम करेंगे. और अब सरकार से संवाद न करके जनता से संवाद करेंगे. क्योंकि सरकार ने संवाद के रास्ते बंद कर दिए. अभी हमने 5 जून को पर्यावरण दिवस के मौके पर भी 1 दिन का उपवास रखा था. साथ ही वृक्षारोपण भी किया था और वृक्षों को रक्षा देने के उद्देश्य से चिपको आंदोलन भी किया था. हम किसी भी कीमत पर इसे काटने नहीं देंगे, हम चिपको आंदोलन चलाएंगे. आखिरी सांस तक हम इसे बचाने की लड़ाई लड़ते रहेंगे, जंगल तो नहीं कटने देंगे.”