छत्तीसगढ़ : विरोध के बावजूद परसा कोयला ब्लॉक खनन के दूसरे चरण को मंज़ूरी
छत्तीसगढ़ के फेफड़े के रूप में जाने जाने वाले हसदेव अरण्य में कोयला खनन के विरोध के बावजूद केंद्र सरकार ने राज्य में परसा कोयला ब्लॉक में खनन के लिए दूसरे चरण की मंजूरी दे दी.
सरकार ने कहा है कि यह मंज़ूरी राज्य सरकार की सिफ़ारिशों पर आधारित थी. इस मामले में आदिवासियों 300 किलोमीटर से अधिक का पैदल मार्च कर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मुलाकात की थी और इसे रोकने को कहा था.
इसके ख़िलाफ़ अभियान चला रहे छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन संगठन ने सरगुजा ज़िले के अंबिकापुर में फतेहपुर से राजधानी रायपुर तक मार्च किया था. इसमें 30 गांवों के आदिवासी समुदायों के लगभग सैंकड़ों लोग शामिल थे इनका कहना था कि इससे राज्य के वन इकोसिस्टम को ख़तरा है. इन्होंने ‘गैर-कानूनी’ तरीके से भूमि अधिग्रहण का आरोप लगाया है.
2nd day of Hasdeo Bachao Padytara: padytaris start with enthusiasm & steady resolve to save their jal-jangal-zameen. The spirit of satyagrahis & our constitutional founders continue to guide them. Please join them in solidarity and support.
— CBA (@CBA_Raipur) October 5, 2021
#हसदेव_बचेगा_देश_बचेगा#SaveHasdeo pic.twitter.com/jTyMJPv8x0
मंजूरी जारी करने के बाद छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के सदस्य आलोक शुक्ला ने टवीट कर लिखा- “300 KM पैदल चलकर हसदेव के आदिवासियों ने राजधानी आकर अपने जंगल,जमीन को बचाने अपील की. वाबजूद इसके मोदी सरकार ने भूपेश सरकार की सहमति पर 3 गांव का विस्थापन और लगभग 1 लाख पेड़ो के विनाश को अनुमति देते हुए परसा कोल ब्लॉक को वन स्वीकृति जारी कर दी.” #हसदेव_बचेगा_देश_बचेगा #Savehasdeo और उन्होंने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को ज्ञापन देकर खनन बंद कराने की मांग का एक फोटो भी शेयर किया था.
एशियाविल ने ‘छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन’ के सदस्य आलोक शुक्ला से इस मामले पर बातचीत की.
आलोक शुक्ला ने मुझे बताया, “हसदेव अरण्य का ये मसला कोल माइनिंग को लेकर है. इस पूरे इलाके को कोल माइनिंग में खत्म किया जा रहा है जिसके खिलाफ एक दशक से लोग आंदोलन कर रहे हैं. ग्राम सभाओं को अनदेखा कर के सारी प्रक्रियाएं की गई हैं. इसके खिलाफ लोगों ने पदयात्रा कर रायपुर भी मुख्यमंत्री से मिलने पहुंचे थे, बावजूद इसके कोल ब्लॉक को इसकी स्वीकृति दे दी गई है. एक तरफ कांग्रेस अडाणी पर लूटने का आरोप लगाती है ओर दूसरी तरफ यहां कांग्रेस अडाणी के साथ खड़ी है. दोनों ही पार्टियां चाहे कांग्रेस हो या बीजेपी, अडाणी की लूट के साथ खड़ी हैं. अब आगे का आंदोलन तय करेंगे.”
हसदेव अरण्य वन मध्य भारत के सबसे बड़े घने और वन क्षेत्रों में से एक है. यह करीब 1,70,000 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है. यहां हजारों आदिवासियों के घर हैं. यह मामला अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी तब चर्चा में आ गया था जब इससे संबंधित टवीट को अंतर्राष्ट्रीय क्लाइमेट एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग ने रिट्वीट कर दिया था. दरअसल, भारत की एक क्लाइमेट एक्टिविस्ट विनिशा हसदेव बचाओ पदयात्रा का एक वीडियो पोस्ट किया था. सेव हसदेव हैशटैग के साथ उन्होंने लिखा था कि हसदेव क्षेत्र के हजारों स्थानीय आदिवासी शांतिपूर्ण विरोध को बाधित करने की कोशिश कर रहे कोयला एजेंडा समर्थकों का सामना कर रहे हैं. वे राज्य की राजधानी तक 300 किमी पैदल मार्च पर निकले हैं ताकि अपनी जमीन से कोयला खनन को खत्म करा सकें. इस ट्वीट को ग्रेटा थनबर्ग ने रिट्वीट किया इसके बाद इस मुद्दे पर जगह-जगह बातचीत शुरू हुई हो गई थी.