ब्लैक फंगस में पैनिक न लें, यह संक्रमण से नहीं फैलता : आरएमएल डीन डॉ. राजीव सूद
पिछले कुछ दिनों से देश में कोविड के मामलों में कमी जरूरी देखी जा रही है, लेकिन ब्लैक फंगस के बढ़ते मामले अब भी चिंता का विषय बने हुए हैं. भारत में अब तक म्यूकोरमाइकोसिस के 11 हजार से अधिक मामले सामने आ चुके हैं. यह बीमारी आगे कितनी खतरनाक हो सकती है और इसके लक्षण, उपचार क्या हैं. इन तमाम पहलुओं को समझने के लिए हमने डॉ राम मनोहर लोहिया अस्पताल के संस्थापक और डीन डॉक्टर राजीव सूद से बातचीत की. डॉ सूद ने मुझे बताया, “ये ब्लैक फंगस एक म्यूकोरमाइकोसिस है जो एक प्रकार का फंगस ही है. इसे व्हाइट, ब्लैक और येलो जो बोला जा रहा है, इससे एक मैसेज कन्वेंस नहीं हो पाता. क्योंकि हमें यह समझना चाहिए कि ब्लैक फंगस एक खाने वाला भी होता है.
यह जो ब्लैक फंगस है यह हमारे इन्वायरमेंट में हमारे आसपास की धूल-मिट्टी, हवा,पानी सब में इसके तत्व मिलते हैं और यह यूज़ली हमारे इको-सिस्टम को बैलेंस करती है. जैसे जो पशु-पक्षी वगैरा की मौत हो जाती है तो उसे यह डीकंपोज करते हैं. और उसके अंदर जो खनिज होते हैं उसको वापस मिट्टी में मिला देती है. और वर्तमान स्थिति में क्या होता है कि जो जिंदा टिशु हैं,जीवित मनुष्य हैं, उसे यह फंगस मृत शरीर की तरह लेना शुरू कर देता है, ये स्थिति जब आती है जब हमारा शरीर कमजोर होता है. जैसे एचआईवी एड्स, कैंसर या कुछ पैदाइशी और अन्य बीमारी जिनमें इम्यून सिस्टम कमजोर होता है. जब ब्लड में ग्लूकोस की मात्रा ज्यादा हो या शरीर में आयरन ज्यादा हो जाए और बाकी शरीर कमजोर हो तो यह ज्यादा ग्रो करता है, यानी उन्हें ज्यादा प्रभावित करता है. क्योंकि उनसे इसे भोजन मिलता है.”
फंगस के लक्षण
डॉ. सूद आगे बताते हैं, “यह 5 तरीकों से हमारे शरीर के अंदर जा सकता है. पहला और दूसरा तरीका नाक और मुंह है, इसके जरिए यह हमारे दिमाग तक भी जा सकता है. तीसरा पेट में पानी के जरिए और चौथा और पांचवां तरीका है जो हमारे शरीर में कट लग जाते हैं. इसके लक्षण सर दर्द, आंखों उभरना, मुंह पर काले रंग के चकत्ते पड़ना, टेढ़ापन आ जाना आदि ब्लैक फंगस के लक्षण हैं.
अगर व्हाइट फंगस की बात करें तो यह तो हमारे शरीर में होता है जैसे फंगस की बीमारी बगल में हो जाती है नेल्स में हो जाती है. अगर ये बीमारी हो जाए तो कोरोना में और व्हाइट फंगस में अंतर करना मुश्किल हो जाता है. बाकी इलाज इसका वही है जो ब्लैक फंगस का है.
और येलो फंगस में जैसे मैंने पहले बताया, रंग से फंगस की पहचान नहीं होती. जो हमारे शरीर के अंदर के ऑर्गेन से इंफेक्शन की शुरुआत हुई, उनमें पस पड़ा और वो फैलना शुरू हुए, उसे ही येलो फंगस बोल दिया गया.”
पैनिक न लें
डॉक्टर शूद कहते हैं, “ब्लैक फंगस में पैनिक लेने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह एक से दूसरे आदमी के कांटेक्ट से नहीं होता. यह करोना की तरह संक्रमण का रोग नहीं है. क्योंकि कोरोना के अंदर इम्यून सिस्टम हमारा वीक होता है. तो अब यह भी माना जा रहा है कि ब्लैक फंगस पहली कोरोना वेव में नहीं था लेकिन अब आया है तो नए वायरस के म्युटेंट कुछ ज्यादा है. और इसकी दवाई “एफोटेरिसन बी” है, जो कि इतनी मात्रा में नहीं बनाई जाती जितने केस आ रहे हैं. जैसे दिल्ली की कैपेसिटी 300 है लेकिन डिमांड आज दो तीन हजार की है. कोरोना पेंडमिक है, और यह एपेडमिक की तरह है. और इस बारे में रिसर्च किया जा रहा है की यह पहली वेव में नहीं था तो आप इतनी तेजी से कैसे फैला. बाकी उस पर भी रिसर्च चल रही है कि जो कोरोना के कुछ नए लक्षण आए हैं उनकी वजह से तो यह ब्लैक फंगस नहीं हुआ है.”
उपचार
इसके उपचार के बारे में डॉक्टर सूद बताते हैं, “इन सब फंगस का इलाज एक जैसा है. और इसमें सफाई बहुत जरूरी है. जो वेंटिलेटर है,ऑक्सीजन के उपकरण है और जो हम मास्क पहनते हैं तो हम उन्हें बदलते नहीं या धोते नहीं तो उसमें भी ब्लैक फंगस के लक्षण आ सकते हैं. इसलिए सफाई का ध्यान रखना, मास्क को बदलना जरूरी है. इसके ऊपर हम कंट्रोल तभी कर पाएंगे अगर हमको अवेयरनेस है, पैनिक रिएक्शन को हटाएं, अरली ट्रीटमेंट करें. अगर डॉक्टर शल्य चिकित्सा की जरूरत बताए तो एकदम करा ले. क्योंकि ब्लैक फंगस में यह माना गया है कि 54 परसेंट लोगों की मृत्यु हो जाती है, जो बहुत ज्यादा है. और अगर यह आंख नाक से होती हुई दिमाग में चलेगी तो 90 परसेंट लोगों की मृत्यु हो जाती है. इसके उपचार में इसे काट कर निकाला जाता है, यहां तक की पूरी की पूरी आंख भी निकाली जा सकती है. तो यह बहुत खतरनाक भी है तो इसके लिए अवेयरनेस और अरली ट्रीटमेंट बहुत जरूरी है.”