पैंडोरा पेपर्स : 'भारत रत्न' सचिन तेंदुलकर, अनिल अंबानी, किरण मजूमदार शॉ सहित दुनियाभर के सैंकड़ों रसूखदारों के वित्तीय लेन-देन का भंडाफोड़
पिछले दिनों आईसीआईजे यानि इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इनवेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स ने ऑफ श्योर अकाउंट्स में अरबों डॉलर जमा रखने वाली हस्तियों की एक सूची जारी कर दुनियाभर में हड़कंप मचा दिया है.
'पैंडोरा पेपर्स' के नाम से जारी की गई इस रिपोर्ट में भारत सहित दुनिया के सैंकड़ों रईस और ताकतवर लोगों की छिपी हुई दौलत सामने आई है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि आर्थिक अपराध के आरोपी एवं जांच का सामना करने वाले लोगों ने टैक्स हैवन ठिकानों पर अपनी कंपनियां बनाई हैं. इस रिपोर्ट में दुनिया भर की 14 लाख कंपनियों से मिले लगभग एक करोड़ 20 लाख दस्तावेजों की पड़ताल से भारत सहित 91 देशों के सैकड़ों नेताओं, अरबपतियों, मशहूर हस्तियों, धार्मिक नेताओं और लोगों के गुप्त निवेशों का खुलासा हुआ है. इसे गुप्त वित्तीय लेन-देन और कारोबार पर पेंडोरा पेपर्स लीक को अब तक का सबसे बड़ा खुलासा करार दिया गया है. रिपोर्ट में प्रभावशाली एवं भ्रष्ट लोगों के छुपाकर रखे गए धन की जानकारी के साथ बताया है कि इन लोगों ने किस तरह हजारों अरब डॉलर की अवैध संपत्ति को छुपाने के लिए विदेश में खातों का इस्तेमाल किया.
वॉशिंगटन डीसी स्थित 'इंटरनेशनल कंसोर्टियम ऑफ इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट्स' ने यह रिपोर्ट 117 देशों के 150 मीडिया संस्थानों के 600 पत्रकारों की एक साल से अधिक की खोजी पत्रकारिता एवं दस्तावेजों की जांच-पड़ताल के बाद तैयार की है. इन मीडिया संस्थानों में बीबीसी, द गार्डियन, द वाशिंगटन पोस्ट, ऑस्ट्रेलियन ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन और भारत का द इंडियन एक्सप्रेस शामिल हैं.
• More than 11.9M confidential files
— ICIJ (@ICIJorg) October 4, 2021
• More than 600 journalists
• 150 news outlets
• 2 years of reporting
The #PandoraPapers offer insights into why governments and global organizations have made little headway in ending offshore financial abuses. https://t.co/5JF4u2V4eN pic.twitter.com/IF7VEiBhFz
पेंडोरा पेपर्स लीक में 300 से अधिक भारतीयों के नाम भी सामने आए हैं, जिनमें 60 से अधिक प्रसिद्ध लोग भी हैं. इनमें क्रिकेटर और भारत रत्न सचिन तेंदुलकर, अपने आप को दिवालिया बताने वाले अनिल धीरूभाई अंबानी ग्रुप के अनिल अंबानी, बायकॉन की किरण मजूमदार शॉ, विनोद अडाणी, नीरा राडिया, सतीश शर्मा, जैकी श्रॉफ और भगोड़े कारोबारी नीरव मोदी की बहन शामिल हैं. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, कई भारतीयों ने 2016 में पनामा पेपर्स लीक के बाद अपनी सपंत्तियों को इधर-उधर किया और अपनी संपत्ति को 'रीऑर्गनाइज' करना शुरू कर दिया. सचिन तेंदुलकर भी लीक के तीन महीने बाद ही ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड में अपनी संपत्ति के लिक्विडेशन में जुट गए थे.
An Express Investigation, Part 1. Prime accused: @iyervaidy, @Tweetsandeep, @khushboo_n, @RTIExpress, @mazoomdaar and the Ritu (proudly not on Twitter) Sarin. Part 2 tonight. #PandoraPapers. pic.twitter.com/J6I6TypRKY
— Raj Kamal Jha (@rajkamaljha) October 4, 2021
पैंडोरा पैपर्स के इस खुलासे पर प्रमुख अर्थशास्त्री प्रोफेसर डॉ अरुण कुमार से एशियाविल ने बातचीत की. और इसके सामाजिक और आर्थिक प्रभावों पर चर्चा की.
डॉ अरुण कुमार ने मुझे बताया, “यह सिलसिला 2007-8 से शुरू हुआ था, इससे पहले भी कई खुलासे हो चुके हैं. जैसे-लक्जमबर्ग पेपर, पनामा पेपर्स थे और ब्रिटिश वर्जन आयरलैंड का नाम बार-बार आ रहा है. यह जो फिलहाल अभी पैंडोरा पेपर्स आए हैं यह किसी एक टेक्स हैवन के नहीं बल्कि यह पेपर 14 अलग-अलग जगह से आए हैं. यानी 14 अलग-अलग जगह से अलग-अलग कंपनियों का डाटा निकला है इस वजह से इसे पेंडोरा कहा गया है. तो अब यह एक दो जगह नहीं बल्कि दुनिया भर में फैला हुआ है. इससे पहले जो आए थे वह तो एक जगह जैसे लक्जमबर्ग या पनामा से थे. अब सवाल ये उठता है कि ये ‘टैक्स हैवन’ क्या है. दरअसल टैक्स हैवन वह जगह होती है जहां एक तो आपकी ‘सिक्रेसी’ मेंटेन की जाती है और दूसरा वहां टैक्स रेट कम होता है. पूरी दुनिया में 90 टैक्स हैवन है. यूएस में भी टैक्स हैवन है.”

डॉ अरुण आगे बताते हैं, “जो दुनिया भर के अमीर लोग होते हैं और वह पैसा छुपाना चाहते हैं तो वह उसे किसी जरिए (हवाला या किसी और) से टैक्स हैवंस में भेज देते हैं. चाहे उन्होंने वह पैसा लीगल ही कमाया हो. जब तक यह पकड़ें नहीं जाएंगे, पता नहीं चलेगा कौन पैसा भेज रहा है. जैसे अगर एक एक्सपोर्टर यहां से 100 मिलियन डॉलर का खनिज लोहा भेज रहा है. लेकिन दिखा 50 मिलियन डॉलर का रहा है. तो बचा 50 मिलियन डॉलर बाहर के किसी बैंक में पे कर बाद में उसे टैक्स हैवन में छुपा लेगा. तो ये चोरी पकड़ी भी नहीं जाएगी. इसके अलावा एक ‘लीयरिंग’ प्रोसेस होता है. उसमें टैक्स हैवन में कई कंपनी खोल, वहां से दूसरी, तीसरी में डाल दिया और उससे पहली को बंद कर दिया. और फिर उसे स्विस बैंक में डालें देंगे. तो इसी को ‘लियरिंग’ बोलते हैं. जैसे अंतिम पड़ाव अगर स्विट्जरलैंड है तो वह कहेगा यह तो ब्रिटिश पैसा है, इंडियन पैसा नहीं है. क्योंकि यह तो ब्रिटिश आईलैंड से आया है. इसमें आप को ट्रैक करना मुश्किल हो जाएगा कि पैसा कहां गया. और आपका नाम भी सामने नहीं आएगा. और इसे सिर्फ अमीर आदमी ही भेज सकता है कोई मिडिल क्लास वाला भेज नहीं सकता क्योंकि इसमें बहुत खर्चा आता है.”
लेकिन अमीर लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं, क्या यहां की नीतियां कुछ उनके अनुकूल नहीं है इस सवाल के जवाब में प्रोफ़ेसर अरुण कुमार कहते हैं, “दो तीन चीजें हैं, एक तो कर की चोरी करनी है. दूसरा बिजनेसमैन और पॉलिटिशियन अपने पैसे का कुछ हिस्सा बाहर रखना चाहते हैं कि यहां पता नहीं कब गड़बड़ हो जाए. तीसरी बात है कि आप बाहर इन्वेस्ट करना चाह रहे हैं, जैसे कंपनी, घर, खरीदना चाह रहे हैं या अपने बच्चों को शिक्षा देना चाह रहे हो उसके लिए इन्वेस्ट करना है. और सबसे बड़ी बात है कि अब अमीर लोगों को गरीब और दूसरे लोगों से कोई सरोकार नहीं रह गया है वह सिर्फ अपने लिए सोचते हैं. जो पहले एक इमोशनल अपील हुआ करती थी वह खत्म हो चुकी है. इससे देश का भी नुकसान हो रहा है. क्योंकि अगर यह पैसा यहां होता तो हमारी तरक्की ज्यादा होती. लेकिन इस बात से इन्हें कोई लेना-देना नहीं रह गया. और मेरा मानना है कि भारत में जितने भी अमीर लोग हैं उन सब ने पैसा बाहर निकाला हुआ है. ऐसे बहुत ही कम लोग बचे हुए होंगे जिन्होंने इसका इस्तेमाल नहीं किया.”
“जबकि दूसरी तरफ जैफ बेजॉस , वॉरेन बफे और दुनिया भर के जो अमीर लोग हैं वह इस बात की वकालत करते हैं कि अमीर लोगों पर काफी कम टैक्स लगता है उन पर ज्यादा टैक्स लगाया जाए. यह बात 2 साल पहले भी काफी उठी थी कि अमीरों को ज्यादा टैक्स देना चाहिए जिससे कि और लोगों को सुविधाएं मिल सकें. लेकिन हमारे यहां के अमीर इस बात को नहीं मानते, वह अपना पैसा बचाते हैं. (कोरोना में) सोनू सूद जैसे कुछ ही लोग हैं जिन्होंने अपने पैसा लगाया. बाकी तो कोई खास सामने नहीं आया जिसने अपना पैसा ज्यादा लगाया हो,” डॉ. अरुण कुमार ने कहा.
इसका एक आम आदमी पर क्या फर्क पड़ा. इस सवाल के जवाब में डॉ अरुण कुमार कहते हैं, “अगर आप बाहर पैसा निकालते हैं तो देश में इन्वेस्टमेंट कम हो जाएगा, ग्रोथ रेट कम हो जाएगा. साथ ही यहां पर रोजगार कम पैदा होंगे. क्योंकि जब काला धन बढ़ता है तो सरकार का टैक्स कम हो जाता है. और टैक्स कम होने से जो शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे दूसरे बुनियादी जरूरतों पर सरकार खर्च करती है वह कम हो जाता है, महंगाई दर बढ़ जाती है. लोगों के सोशल और फिजिकल स्ट्रक्चर पर भी फर्क पड़ता है. यानि इसके बहुत सारे नेगेटिव परिणाम होते हैं.”
हालांकि इस मामले में सचिन और मजूमदार ने अपनी सफाई भी पेश की है. और अपने को पाक साफ बताया है.
दूसरी तरफ पैंडोरा पेपर्स मामले में केंद्र सरकार ने कहा है कि वह पैंडोरा पेपर्स के जरिए सामने आए तथ्यों की जांच कराएगी. इस पूरे मामले की जांच सीबीडीटी चेयरमैन की अध्यक्षता में विभिन्न जांच एजेंसियों के एक समूह को सौंपी गई है. वित्त मंत्रालय द्वारा जारी किये गये बयान में कहा गया है कि सरकार ने इस पूरे मसले को अपने संज्ञान में लिया है. संबंधित एजेंसियां इस पूरे मामले की जांच करेंगी और कानून के हिसाब मामले में कार्रवाई की जाएगी.