आजमगढ़ : कर्ज में डूबे किसान ने की आत्महत्या, पति-पत्नी पर था लाखों का कर्ज
सरकार किसानों की आय दोगुनी करने का दावा कर रही है. लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है और घाटे में पड़ा किसान आत्महत्या जैसे कदम उठाने को मजबूर है.
सरकार किसानों की आय दो गुनी करने के लाख दावे कर रही है. लेकिन जमीन पर होता हुआ कुछ दिख नहीं रहा है. किसान आत्महत्या करने को मजबूर हैं. अब तक महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों से ही किसानों की आत्महत्या की खबरें आती थीं. लेकिन अब पूर्वी उत्तर प्रदेश से एक किसान की आत्महत्या की खबर आई है. कर्ज से डूबे आजमगढ़ के एक किसान ने 2 अप्रैल को एक बाग में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली. उस पर और उसकी पत्नी पर करीब साढ़े 4 लाख रुपये का कर्ज था. कर्ज उतारने के लिए उसने अपनी जमीन भी बेची, फिर भी कर्ज नहीं उतरा. यह पूर्वी उत्तर प्रदेश में कर्ज में डूबे किसान की पहली आत्महत्या है.

आजमगढ़ के पुलिस थानाक्षेत्र दीदारगंज के करुई गांव निवासी 55 साल के बेचन यादव ने अपने गांव के ही भिखारी यादव के बाग में आम के पेड़ पर फांसी का फंदा लगाकर जान दे दी. किसान क्रे़डिट कार्ड के कर्ज और खेती-बाड़ी में होने वाले नुकसान से वो परेशान थे. और उन्होंने आत्महत्या जैसा कदम उठा लिया.
कर्ज का संकट
'एशियाविल हिंदी' ने बेचन यादव के सबसे बड़े बेटे पंकज यादव से बात की. उन्होंने बताया कि उनके पिता कुछ काम की तलाश में दिल्ली जाने वाले थे. वो 30 मार्च को घर से निकले भी थे. लेकिन लॉकडाउन की आशंका को देखते हुए गए नहीं. लेकिन वो घर भी नहीं लौटे और खेत में जाकर फांसी लगा ली. वो बताते हैं कि उनके पिता और मां के नाम पर करीब 4.5 लाख रुपये का कर्ज था. इसको लेकर वो काफी परेशान रहते थे.
पंकज 7 भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं. वो बताते हैं कि उनके परिवार के पास करीब 6 बीघे खेत था. उनकी एक बहन को उसके ससुराल वालों ने जलाकर मार डाला था. उस मुकदमे को लड़ने में कुछ खेत बिक गए और कुछ खेत कर्ज को उतारने में बिक गए. वो बताते हैं कि अब करीब डेढ़ बीघे खेत ही उनके परिवार के पास बचे हैं.
इंटर तक की पढ़ाई करने वाले पंकज बताते हैं घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने की वजह से वो आगे की पढ़ाई नहीं कर पाए. वो घर पर ही रहकर अपने पिता का खेती-बाड़ी में हाथ बंटाने लगे. उनका परिवार धान-गेहूं की खेती तो करता है. लेकिन उससे उन्हें कभी कोई लाभ नहीं हुआ.

अभी पंकज के दो भाइयों और एक बहन की शादी होनी बाकी है. पंकज बताते हैं कि उनके पिता की आत्महत्या की खबर आने के बाद पुलिस आई थी और उनके शव को पोस्टमार्टम के लिए ले गई थी. लेकिन उसके बाद शासन-प्रशासन का कोई अधिकारी या कर्मचारी उनके परिवार की सुध लेने नहीं आया है.
प्रशासन की बेरुखी
किसान की आत्महत्या की खबर आने के बाद मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले संगठन रिहाई मंच के राजीव यादव बेचन के घर गए और वहां उनके परिजनों से मुलाकात की. राजीव यादव ने 'एशियाविल हिंदी' से कहा, ''सरकार कि किसानों की आय दुगनी करने जैसे खोखलें वादों की भेंट किसान चढ़ रहा है. मौत के बाद भी अब तक किसी प्रशासनिक अधिकारी का उनके घर न जाना किसान के प्रति प्रशासनिक संवेदनहीनता को उजागर करता है. जबकि उसी दिन मार्टिनगंज के एसडीएम को इसकी सूचना दे दी गई थी.''
राजीव ने बताया कि यूनियन बैंक आफ इंडिया ने 16 फरवरी को बेचन की पत्नी सुशील यादव के नाम 1 लाख 77 हजार 37 रुपये और 33 हजार 171 रुपये की रिकवरी का नोटिस भेजा था. इससे बेचन बहुत दबाव में थे. वहीं कोऑपरेटिव के कर्मचारी ने उनसे कहा कि अभी ढाई हजार रुपए जमा करवा दीजिए नहीं तो बाद में 8 हजार रुपये जमा करने होंगे.
कर्ज की यह कहानी एक पीढ़ी पुरानी है. बेचन के पिता राम दुलार ने भी 2001 में स्टेट बैंक की कुशल गांव शाखा से 1 लाख 10 हजार रुपये का लोन लिया था. वो कर्ज की भरपाई नहीं कर पाए तो मुकदमा लड़ते-लड़ते अटैक हुआ मर गए. तो उनका मुकदमा उनके बेटे बेचन ने लड़ा.
