प्रधानमंत्री के लिए आशाओं ने पोस्टकार्ड पर लिखी अपने ‘मन की बात’, देशभर में विशाल प्रदर्शन की तैयारी
दिल्ली में कार्यरत आशाओं ने अपनी मांगों को लेकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. और पूरे देश में अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन करने की तैयारी कर रही हैं.
आशाएं सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने की मांग कर रही है. इस कड़ी में पहले इन्होंने ‘चुप्पी तोड़ो पोस्टकार्ड अभियान’ शुरू किया है. इस अभियान के तहत दिल्ली के विभिन्न इलाकों में कार्यरत आशाकर्मी, अपनी मांगों को पोस्टकार्ड के माध्यम से प्रधानमंत्री तक पहुंचाई थी. आगामी 24 सितम्बर को ट्रेड यूनियनों के संयुक्त आह्वान पर देशभर में आशाएं अपना विरोध दर्ज करेंगी. दिल्ली आशा कामगार यूनियन (ऐक्टू) देशव्यापी आह्वान के तहत 24 सितम्बर को दिल्ली के मंडी हाउस से विरोध मार्च निकालकर कार्यक्रम में भागीदारी करेगी.


दिल्ली आशा कामगार यूनियन (ऐक्टू) ने 13 सित्मबर को एक विज्ञप्ति भी जारी की थी जिसमें लिखा है कि वे कोरोना महामारी की शुरुआत से ही सभी आशा कर्मियों के लिए 10,000 रूपए प्रतिमाह कोरोना भत्ते का मांग कर रही है. इस महामारी के दौरान बीमार हुई आशाओं को ‘इंसेंटिव’ तक नहीं मिला. दिल्ली में कोरोना महामारी से मारी गई आशाओं को मुआवजे का भुगतान नहीं किया गया. दिल्ली के मुस्तफाबाद इलाके में ‘नूरमाह नाज़’ नामक आशा की मौत का मुआवजा अभी तक नहीं मिला. देशभर में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं की रीढ़ के रूप में कार्य करनेवाली आशाओं को सरकार द्वारा कर्मचारी का दर्जा तक नहीं दिया जाता. आशाओं के काम करने के घंटे तक तय नहीं होते. महामारी के दौरान दिल्ली में कार्यरत हर आशा को लगभग पांच सौ घरों के ‘कोविड सर्वे’ का काम करना पड़ा, जिसके पैसे कई आशाओं को अभी तक नहीं मिले.


विज्ञप्ति में आगे लिखा है कि कोरोना महामारी के भयावह दौर में जिन आशाओं ने देश की राजधानी दिल्ली में लगातार अपने जान की परवाह किये बिना, लोगों के बीच जाकर कोरोना-रोकथाम व बचाव का कार्य किया; उन आशाओं को सरकार द्वारा घोषित मात्र 33 रूपए प्रतिदिन के कोरोना भत्ते का भी भुगतान नहीं किया गया. प्रधानमंत्री के 71वें जन्मदिवस पर सत्तारूढ़ भाजपा ने ‘सेवा और समर्पण अभियान’ चलाने का निर्णय लिया है, जिसके तहत प्रधानमन्त्री को उनकी ‘उपलब्धियों’ पर बधाई देते हुए भाजपा कार्यकर्ता पोस्टकार्ड लिखेंगे. परन्तु आश्चर्य की बात है कि सही मायने में सेवा और समर्पण करने वाली आशाओं को सरकार ‘कर्मचारी’ तक मानने को तैयार नहीं. दिल्ली में कोरोना भत्ते के नाम पर केवल 1000 रूपए मासिक की घोषणा की गई पर वो भी आशाओं को नहीं दिया गया. राजधानी दिल्ली में भी जब मात्र 1000 रूपए प्रतिमाह कोरोना भत्ते का समय से भुगतान नहीं हो पा रहा, तो देश के अन्य हिस्सों के हालात कैसे होंगे ? इससे पहले आशाओं ने दिल्ली स्तर पर तय अपने मांगपत्र को केंद्र और दिल्ली सरकार को जमा भी किया है परन्तु अभी तक केंद्र या दिल्ली सरकार से कोई जवाब नहीं आया है.
दिल्ली आशा कामगार यूनियन की महासचिव श्वेता राज ने एशियाविल से अपनी मांगों के संबंध में बातचीत की
श्वेता ने मुझे बताया, हम 24 सितंबर को मंडी हाउस से जंतर मंतर तक अपनी मांगों को लेकर मार्च निकालेंगे. उसके बाद मंत्री को एक ज्ञापन भी देंगे. की आशा वर्कर्स के मांगों पर सरकार विचार करें. इससे पहले हमने अभी एक पोस्ट कार्ड अभियान चलाया था जिसमें दिल्ली की कोने-कोने से आशाओं ने प्रधानमंत्री मोदी को पोस्ट कार्ड भेजे. जिसका काफी अच्छा रेस्पोंस रहा. क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी के जन्मदिन पर बीजेपी की तरफ से खासकर कैंपेन चलाया गया कि आप हर व्यक्ति पीएम मोदी को चिट्ठी लिखकर थैंक यू बोले तो हमने फैसला किया कि हम आशाओं की तरफ से थैंक यू नहीं करेंगे बल्कि हम सवाल पूछेंगे कि आखिर आशाओं को सरकारी कर्मचारी का दर्जा कब मिलेगा. तो दिल्ली की सभी डिस्पेंसरी से राशियों में पोस्टकार्ड लिखे और उन के माध्यम से सरकार को पॉलिटिकल मैसेज भेजा गया और बताया गया कि आपके टलाने का जो तरीका रहता है उसे हम समझ रहे हैं. हमें कोई इंसेंटिव नहीं चाहिए हमें सिर्फ सरकारी कर्मचारी का दर्जा चाहिए. दूसरा जो आशाओं के साथ भेदभाव चल रहा है पूरी तरह रुके उसी को लेकर के यह पोस्ट कार्ड कैंपेन चलाया गया था.”

विज्ञ्पति के मुताबिक, वजीरपुर की डिस्पेंसरी में काम करने वाली एक आशा ने पोस्टकार्ड लिखते हुए प्रधानमंत्री से आशाओं को सरकारी कर्मचारी घोषित करने की मांग की तो वही आदर्श नगर की एक आशा ने प्रधानमंत्री से कोरोना भत्ते को लेकर सवाल पूछा. पोस्टकार्ड द्वारा आशाओं की बात को प्रधानमंत्री के सामने रखने और अपना विरोध दर्ज करने का कार्यक्रम अभी दिल्ली के अन्य डिस्पेंसरियों में जारी रहेगा.
इससे पहले भी दिल्ली आशा कामगार यूनियन (ऐक्टू) से जुड़ी आशाओं ने इन सभी मुद्दों पर दिल्ली के विभिन्न इलाकों में प्रदर्शन भी किया है. बीते अगस्त और सितम्बर के पहले सप्ताह में दिल्ली के जहांगीरपुरी, वजीरपुर, आदर्श नगर, त्रिलोकपुरी, मुस्तफाबाद, करावल नगर, संगम विहार, देवली, द्वारका, पालम, मंगलापुरी, महरौली, महिपालपुर इत्यादि इलाकों में आशाओं ने काम के दौरान काली पट्टी बांधकर सरकार के प्रति अपना रोष व्यक्त किया था.