क्या केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एससी-एसटी और ओबीसी के लोगों को जानबूझकर अवसर नहीं दिया जाता
केंद्र सरकार ने लोकसभा में बताया है कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों और अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों में एससी-एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षित कितनी सीटें अभी तक खाली हैं. आंकड़े काफी चौकाने वाले हैं.
सरकार ने इस हफ्ते संसद में बताया कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों और अन्य उच्च शिक्षण संस्थानों में एससी-एसटी और ओबीसी के कोटे के आधे से अधिक पद रिक्त पड़े हुए हैं. केंद्र सरकार के मुताबिक केंद्रीय विश्वविद्यालयों और अन्य उच्च शिक्षण संस्थानों में एससी, एसटी और ओबीसी के लिए क्रमश: 7409, 3921 और 9960 पद स्वीकृत हैं. सरकार ने बताया है कि इन संस्थानों में एससी के 2847, एसटी के 1686 और ओबीसी 5142 पदों पर नियुक्तियां नहीं हुई हैं. यानि की आधे से अधिक पद अभी भी इन शिक्षण संस्थानों में खाली पड़े हैं. पदों की यह संख्या केवल नॉन फैकल्टी पदों की है.

अन्य उच्च शिक्षण संस्थानों में संस्कृत केंद्रीय विश्वविद्यालय, इग्नू, आईआईटी, आईआईएम, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस जैसे संस्थान शामिल हैं.
दरअसल उड़ीसा से आने वाले कांग्रेस सांसद सप्तगिरि संकर उल्का, केरल के कांग्रेस सांसद बेनी बहनान और तमिलनाडु से आने वाले कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर बी ने सरकार से पूछा था कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों के कितने पद अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और पिछड़े वर्गों (ओबीसी) के लिए स्वीकृत हैं और उनमें से कितने पदों पर नियुक्तियां हुई हैं.
क्या कहते हैं आंकड़े
इन सांसदों के लिखित सवाल के जवाब में केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने बताया कि सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों और अन्य उच्च शिक्षण संस्थाओं में एससी के लिए 7409, एसटी के लिए 3921 और ओबीसी के लिए 9960 पद स्कीकृत हैं. इनमें से एससी के आरक्षित 2847 पद, एसटी के आरक्षित 1686 पद और ओबीसी के लिए आरक्षित 5142 पदों पर अभी नियुक्तियां नहीं हुई हैं. ये सभी ताजा आंकड़े हैं.
शिक्षा मंत्री निशंक ने लोकसभा में ही कांग्रेस सांसद उत्तम कुमार रेड्डी के एक सवाल के जवाब में बताया कि देश के 42 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर, एसोशिएट प्रोफेसर और अस्सिटेंट प्रोफेसर के स्वीकृत पदों में से जनरल, एससी, एसटी और ओबीसी के कितने पद खाली हैं.
शिक्षा मंत्री के मुताबिक देश के 42 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर के लिए जनरल के 1505, एससी के 295, एसटी के 137 पद और ओबीसी के 378 पद स्वीकृत हैं. इन केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर पद पर जनरल के 543, एससी के 232, एसटी के 128 और ओबीसी के 361 पद खाली हैं.

इसी तरह इन केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एसोशिएट प्रोफेसर के स्वीकृत पदों में से 2980 पद जनरल, 603 पद एससी, 295 पद एसटी और 770 पद ओबीसी के लिए आरक्षित हैं. लेकिन इनमें से जनरल के 578, एससी के 449, एसटी के 254 और ओबीसी के 708 पद अभी भी खाली हैं.
इन केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अस्सिटेंट प्रोफेसर के लिए जनरल वर्ग के 5751, एससी के लिए 1369, एसटी के 709 और ओबीसी के 2206 पद स्वीकृत हैं. इनमें से जनरल के 359, एससी के 310, एसटी के 207 और ओबीसी के 790 पद अभी भी खाली हैं.
ये आंकड़े चौकाने वाले हैं. देश के प्रतिष्ठित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट में ओबीसी और एससी वर्ग के लिए आरक्षित पदों में से 60 फीसदी से अधिक खाली हैं. वहीं एसटी वर्ग के लिए आरक्षित 80 फीसदी पद अभी भी खाली हैं.
शिक्षा मंत्री का बयान
इस संबंध में शिक्षा मंत्री निशंक का कहना था कि यह एक सतत चलने वाली प्रक्रिया है. उन्होंने कहा कि लोग नियुक्त होते हैं और रिटायर होते हैं. उन्होंने कहा कि यूजीसी ने विश्वविद्यालयों में खाली पड़े पदों को भरने के लिए पत्र लिखा है. शिक्षा मंत्री के बात की तस्दीक आंकड़े नहीं करते हैं.
देश के इन प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में दलितों-पिछड़ों के लिए आरक्षित सीटों में से अधिकांश सीटों पर नियुक्ति न हो पाने के कारण खोजने की कोशिश हमने की. इसी क्रम में 'एशियाविल हिंदी' ने बात की लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा से.
प्रोफेसर वर्मा ने कहा, ''आरक्षण को लेकर हमारे यहां लोगों की मानसिकता अभी भी नकारात्मक ही है. लोगों को लगता है कि आरक्षित वर्ग के लोग कुछ जानते नहीं हैं और केवल आरक्षण की वजह से आ जाते हैं. मेरा अनुभव यह रहा है कि नियुक्तियों में आने वाले एक्सपर्ट एससी-एसटी के पदों को भरते ही नहीं है. उनका तर्क होता है कि उनके मुताबिक उस पद के लिए कोई योग्य व्यक्ति नहीं मिला. वो उनके पास ऐसा करने का अधिकार भी होता है. यह मानसिकता का परिणाम है.''

शिक्षा मंत्री के सतत प्रक्रिया वाले बयान से बीएचयू में पढ़ाने वाले प्रोफेसर एमपी अहिरवार सहमति नहीं जताते हैं. वो कहते हैं कि इन विश्वविद्यालयों में एससी-एसटी और ओबीसी के पदों पर तो नियुक्ति ही नहीं हुई है तो रिटायर होने का सवाल ही नहीं बनता है. वो कहते हैं कि इन विश्वविद्यालयों में तो अभी एससी-एसटी और ओबीसी के लोगों को तो घुसने ही नहीं दिया गया है. उन्होंने कहा कि शिक्षा मंत्री की बात केवल जनरल कैटेगरी पर ही लागू होती है. वो कहते हैं कि जनरल कैटेगरी के पदों को भरने में तो रुचि दिखाई जाती है. लेकिन बात जब एससी-एसटी और ओबीसी की बात आती है तो यह रुचि गायब हो जाती है. वो कहते हैं कि इन वर्गों के लोगों को इन विश्वविद्यालयों में घुसने देने से रोकने की सुनियोजित साजिश है.
केंद्रीय विश्वविद्यालयों में खाली रह गए पदों को कैसे भरा जाए. इस सवाल पर प्रोफेसर वर्मा कहती हैं यह सरकार की इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है. अगर सरकार इन विश्वविद्यालयों में होने वाली नियुक्तियों की निगरानी करे तो इन पदों को भरा जा सकता है. दूसरी बात यह कि इस तरह के मुद्दों को सामने भी लाया जाना चाहिए. अगर सरकार चाह ले तो ये पद भरे जा सकते हैं. उसे केवल इन भर्तियों की मॉनिटरिंग ही करनी होगी.
वहीं प्रोफेसर अहिरवार विश्वविद्यालयों में होने वाली नियुक्तियों में भेदभाव को रोकने का एक दूसरा तरीका ही बताते हैं. वो कहते हैं कि इस भेदभाव को रोकने के लिए जरूरी यह है कि इन भर्तियों से इंटरव्यू वाली व्यवस्था को हटाया जाए. वो कहते हैं कि या तो भर्ती शैक्षणिक मेरिट के आधार पर हो या परीक्षा कराकर. वो कहते हैं कि जब तक इंटरव्यू की व्यवस्था बनी रहेगी, इस स्थिति में बहुत अधिक बदलाव नहीं आने वाला है.