क्या उत्तर प्रदेश की गिरती कानून व्यवस्था के पीछे योगी आदित्यनाथ की प्रशासनिक अक्षमता ज़िम्मेदार है
उत्तर प्रदेश में बिगड़ती कानून व्यवस्था के हालात की पड़ताल. क्या इसके पीछे प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ में प्रशासनिक अनुभव की कमी भी एक वजह है.
उत्तर प्रदेश सरकार के लिए जुलाई काफी परेशानी भरी रही. 2-3 जुलाई की रात कानपुर के बिकरू गांव में हुई 8 पुलिसकर्मियों की हत्या के बाद प्रदेश में अपराधियों के बोलबाले की कहानी सबकी जुबान पर आ गई. इस घटना के बाद से मीडिया में उत्तर प्रदेश में बढ़ता अपराध छाया रहा. ऐसा पहली बार हुआ कि योगी आदित्यनाथ की सरकार में मीडिया ने अपराध को मुद्दा बनाया.

बिकरू कांड के मुख्य आरोपी विकास दूबे को उत्तर प्रदेश पुलिस ने एक कथित एनकाउंटर में मार गिराने का दावा किया. इसके बाद से पुलिस 'सिंघम' वाली भूमिक नजर आने लगी. लगातार एनकाउंटर हुए. लेकिन कानपुर में संजीत यादव नाम के लैब टेक्निशियन की अपहरण के बाद हत्या की खबर ने एक बार फिर पुलिस की किरकिरी कराई. हालात यह है कि 'सिंघम' बनी फिर रही यूपी पुलिस संजीत यादव का शव तक बरामद नहीं कर पाई है.
अपराधों का सिलसिला
इन दोनों मामलों के बाद तो उत्तर प्रदेश में हत्या, अपहरण, लूट और बलात्कार का सिलसिला शुरू हो गया. हालत यह है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह क्षेत्र गोरखपुर में 14 साल के एक बच्चे का अपहरण कर उसके पिता से 1 करोड़ रुपये की फिरौती मांगी गई. पुलिस अपहरणकर्ताओं तक पहुंच पाती, उससे पहले ही बच्चे की हत्या कर दी गई. पुलिस उसका शव ही बरामद कर पाई. इससे पहले गोण्डा में 5 साल के एक बच्चे को अगवा कर 4 करोड़ रुपये की फिरौती मांगी गई थी. हालांकि पुलिस ने इस मामले में अपहरणकर्ताओं को एक कथित मुठभेड़ के बाद गिरफ्तार कर मामले का पटाक्षेप कर दिया.
उप्र में जंगलराज फैलता जा रहा है।
— Priyanka Gandhi Vadra (@priyankagandhi) August 1, 2020
क्राइम और कोरोना कंट्रोल से बाहर है।
बुलंदशहर में श्री धर्मेन्द्र चौधरी जी का 8 दिन पहले अपहरण हुआ था। कल उनकी लाश मिली।
कानपुर, गोरखपुर, बुलंदशहर। हर घटना में कानून व्यवस्था की सुस्ती है और जंगलराज के लक्षण हैं।
पता नहीं सरकार कब तक सोएगी?
जुलाई में ही कासगंज में बलात्कार के एक आरोपी ने पीड़ित लड़की और उसकी मांग को ट्रैक्टर से कुचलकर मार डाला. वहीं लखनऊ में एक-मां बेटी ने मुख्यमंत्री कार्यालय के सामने ही आत्मदाह का प्रयास किया. बाद में इलाज के दौरान मां की मौत हो गई. ये दोनों महिलाएं पुलिस की लापरवाही से परेशान थीं. इन घटनाओं के बाद तो प्रदेश में अपराधों की झड़ी लग गई. हर जगह पुलिस बेबस नजर आई. अपराधियों को जो मन में आया वो वह करते रहे.
उत्तर प्रदेश में बढ़ते अपराध को विपक्षी दलों ने मुद्दा बनाया. धरना-प्रदर्शन किए. ट्वीटर पर ट्वीट किए. लेकिन सरकार जस की तस है. इस समय प्रदेश सरकार का पूरा ध्यान अयोध्या में बनने वाली राम मंदिर के शिलान्यास कार्यक्रम पर लगा हुआ है. यह कार्यक्रम 5 अगस्त को प्रस्तावित है. इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाग लेने की बात की जा रही है.

प्रदेश में बढ़ते अपराधों पर 'इंडियन एक्सप्रेस' और 'जनसत्ता' के पूर्व वरिष्ठ पत्रकार और 'जनादेश' नाम से बेवसाइट चलाने वाले अंबरीश कुमार कहते हैं, ''देखिए, बीजेपी की सरकार में मंदिर प्राथमिकता में रहा है. उस मुद्दे को वह छोड़ नहीं सकती है. लॉ एंड ऑर्डर को संभालने की तरीका बिल्कुल अलग है. यह केवल सरकार के बलबूते नहीं संभल सकती. इसके लिए आपको एक रणनीति बनानी पड़ेगी. सरकार ने इसको संभालने के लिए एनकाउंटर को अपनी रणनीति में शामिल किया. लेकिन जहां एनकाउंटर हुआ, वहीं पर अपहरण हो गया. पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों की राय इसको लेकर बिल्कुल अलग. सरकार को इसको लेकर नए सिरे से सोचना पड़ेगा.''
मुख्यमंत्री का अनुभव
वहीं सुप्रीम कोर्ट में वकालत करने वाले और उत्तर प्रदेश ताल्लुक रखने वाले मनोज अभिज्ञान कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ ने एक्ट्रा ज्यूडिशियल तरीके से कानून-व्यवस्था को सुधारने की कोशिश की. लेकिन वो इसमें कामयाब नहीं हुए. बेहतर कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए जरूरी है कि प्रशासनिक अमले पर पकड़ हो. लेकिन यूपी के मामले में ऐसा नहीं दिखता है.
अभिज्ञान कहते हैं कि योगी आदित्यनाथ के पास न तो कोई प्रशासनिक योग्यता है और न ही राजनीतिक योग्यता. ये संयोग से मुख्यमंत्री बन गए हैं. इस वजह से वो प्रशासनिक मशिनरी को कंट्रोल नहीं कर पा रहे हैं. पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी अपने मन से काम कर रहे हैं. उन्हें किसी बात का डर नहीं है. उनके मन में यह बात घर कर गई है कि अच्छा या बुरा काम करने का किसी के ऊपर कोई असर नहीं पड़ने वाला है.
ऐसी ही राय अंबरीश कुमार की भी है. वो कहते हैं कि सरकार चलाने के लिए राजनीतिक अनुभव के साथ-साथ प्रशासनिक अनुभव का होना बहुत जरूरी है. योगी आदित्यनाथ अबतक किसी प्रशासनिक पद पर नहीं रहे हैं. यह सबसे बड़ी समस्या है.

उत्तर प्रदेश में अपराध रोकने की पुलिस की रणनीति या शैली पर सवाल उठाते हैं. वो कहते हैं कि एनकाउंटर से अपराध नहीं रुकने वाले हैं. इसके लिए जरूरी है कि अपराधियों को कानून के जरिए दंड मिले. वो एक और घटना की ओर इशारा करते हैं, जो प्रदेश में पुलिस की मनस्थिति को समझने के लिए काफी है, वह नोएडा के एसएसपी रहे वैभव कृष्ण का मामला. उन्होंने मामलों की जांच और पोस्टिंग में फैले भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया था. इसके बाद उनका तबादला कर शंट कर दिया गया.
वो कहते हैं, ''इस समय उत्तर प्रदेश की योगी सरकार दो-तीन मोर्चों पर जूझ रही है. इसमें कोरोना और बिगड़ते आर्थिक हालात प्रमुख हैं. उत्तर प्रदेश की सरकार बड़े आर्थिक संकट से जूझ रही है. जहां तक रही बात कानून व्यवस्था की तो यह इस सरकार के लिए बड़ी चुनौती है.''
अंबरीश कुमार कहते हैं कि इस समय उत्तर प्रदेश को टीम 11 चला रही है. सारे फैसले यही टीम ले रही है. लेकिन इसमें राजनीतिक नेतृत्व का अभाव है. बीजेपी के नेताओं की इसमें कोई भागीदारी नहीं है. प्रदेश में दो-दो उपमुख्यमंत्री हैं. लेकिन उनकी कोई भूमिका नजर नहीं आती है. इसने एक तरह से वैक्युम क्रिएट किया है. अफसरों का काम करने का तरीका बहुत अच्छा नहीं माना जाता है. वो अपने ढंग से फैसले लेते हैं. उनके फैसलों के पीछे बहुत से कारण होते हैं. इसलिए केवल अफसरों के भरोसे सरकार चलाना ठीक नहीं है. योगी आदित्यनाथ को यह बात देर-सबेर समझ में आएगी.
बीजेपी और राम मंदिर
वो कहते हैं, ''बीजेपी की सरकार के लिए मंदिर सबसे बड़ा मुद्दा रहा है. वो इस मुद्दे को छोड़ नहीं सकते हैं. उसी के नाम पर आए हैं. उसी की वजह से सत्ता में है. इसी के आधार पर उनको आगे की राजनीति करनी है.''

मनोज अभिज्ञान कहते हैं कि पिछले ढाई साल में योगी आदित्यनाथ की छवि न तो एक राजनेता की बन पाई और न ही योग्य प्रशासक की. वो उन्माद फैलाकर एक उन्मादी नेता की छवि बनाना चाहते हैं. अभिज्ञान मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती का उदाहरण देते हैं. वो कहते हैं कि एक समय वो मुख्यमंत्री थीं. लेकिन आज उनका कोई नामलेवा भी नहीं है. वहीं हाल योगी आदित्यनाथ होगा. जब तक वो सत्ता में हैं, तब तक छाए हुए हैं और सत्ता से हटते ही भुला दिए जाएंगे.
योगी आदित्यनाथ के राजनीतिक भविष्य के सवाल पर मनोज अभिज्ञान कहते हैं कि उन्हें जाना ही है. अब उनका कोई राजनीतिक भविष्य नहीं है. वो कहते हैं कि उत्तर प्रदेश के राजनीतिक समीकरणों की वजह से वो मुख्यमंत्री बन गए, हालांकि वो नरेंद्र मोदी और अमित शाह की पहली पसंद नहीं थे. वो पंचायत चुनाव या राम मंदिर के निर्माण कार्यों के रफ्तार पकड़ने के बाद उत्तर प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन की उम्मीद जताते हैं.