पिछले साल 27 नवंबर को दिल्ली की सीमाओं पर शुरू हुआ किसान आंदोलन 1 मार्च को भी जारी रहा. दिल्ली-यूपी सीमा पर गाजीपुर में धरना दे रहे किसानों की संख्या भले ही कम हुई है. लेकिन उनकी प्रतिबद्धता पहले की ही तरह है.
नरेंद्र मोदी सरकार की ओर से बनाए गए तीन कृषि कानूनों के विरोध में किसानों का आंदोलन 1 मार्च को भी जारी रहा. इस आंदोलन के 90 दिन से अधिक हो चुके हैं. लेकिन किसानों के आंदोलन के प्रति प्रतिबद्धता में कोई कमी नहीं आई है. इस बीच लालकिला हिंसा के बाद शुरू हुई किसान महापंचायतों का सिलसिला जारी है. आंदोलन में शामिल संगठन अब इसे देश के अलग-अलग राज्यों में ले जा रहे हैं.

किसान आंदोलन का जायजा लेने के लिए 'एशियाविल हिंदी' ने सोमवार को दिल्ली-यूपी सीमा पर गाजीपुर में जारी धरने वाली जगह का दौरा किया. वहां धरना देने वाले किसानों की संख्या कम तो हुई है. लेकिन उनकी प्रतिबद्धता में कोई कमी नहीं आई है. वहां पहले की ही तरह लंगर चल रहे हैं. और उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों से किसानों का आना जारी है.

गाजीपुर में मेरी मुलाकात मुरादाबाद जिले के कांठ से आए महेंद्र सिंह से हुई. करीब 70 साल के हो चुके महेंद्र सिंह 2013 में एक जूनियर हाईस्कूल से टीचर के पद से रिटायर हुए हैं. किसान आंदोलन के भविष्य और नरेंद्र मोदी सरकार के रुख के सवाल पर वो कहते हैं, ''किसान एक धर्म युद्ध लड़ रहे हैं. मैं धर्म के साथ हैं और मुझे पूरा विश्वास है कि अंत में जीत सत्य की ही होगी. जो सत्य होगा, वो जीतेगा. भले ही इसमें कितना भी समय क्यों न लग जाए.''
अपनी बात को साबित करने के लिए महेंद्र सिंह महाभारत की लड़ाई का हवाला देते हैं. वो कहते हैं कि पांडव केवल पांच ही थे. लेकिन उन्होंने कौरवों और उनकी सेना को धूल चटा दी थी. महेंद्र सिंह ने यह उदाहरण किसानों की लड़ाई और उनके जज्बे को बताने के लिए दिया था. वो यह भी कहते हैं कि तीनों कृषि कानूनों को वापस करवाने के लिए किसानों को बहुत सी कुर्बानियां देनी पड़ेगी. वो कहते हैं कि 200 से अधिक किसान अपनी कुर्बानी दे चुके हैं.

महेंद्र सिंह की बातों से अमरोहा से आए 76 साल के नानक सिंह भी सहमति जताते हैं. नानक सिंह 28 नवंबर से ही गाजीपुर बॉर्डर पर धरना दे रहे हैं. वो कहते हैं कि वो 28 नवंबर को गाजीपुर आए थे और तभी से किसान आंदोलन के समर्थन में जमे हुए हैं. वो कहते हैं कि उनके नेता राकेश टिकैत जबतक कहेंगे वो यहां पर डंटे रहेंगे.

किसान आंदोलन के प्रभाव के सवाल पर नानक सिंह कहते हैं कि उनके इलाके में बीजेपी की कहानी खत्म हो चुकी है. वो यह भी कहते हैं कि जाटों ने राष्ट्रीय लोकदल के अजित सिंह को हराकर बहुत बड़ी गलती की थी. उन्होंने कहा कि अब जाट वो गलती दोबारा नहीं करेंगे.
गाजीपुर समते दिल्ली की उन सीमाओं पर जहां-जहां किसान धरना दे रहे हैं, वहां किसानों की जरूरत का सामान देने के लिए स्टाल लगाए गए हैं. गाजीपुर के एक ऐसे ही स्टाल 'नानक दी हट्टी' के बाहर मिले गुरचरन प्रीत सिंह. उत्तर प्रदेश के तराई के इलाके पीलीभीत से आए गुरचरन नवंबर से ही गाजीपुर में सेवा कर रहे हैं. वो कहते हैं कि आजकल खेतीबाड़ी का समय चल रहा है. उसकी वजह से बहुत से किसान अपने घरों को लौट गए हैं. वो कहते हैं कि खेती के काम से फारिग होकर किसान फिर गाजीपुर लौटेंगे.

दिल्ली के लालकिले पर 26 जनवरी को हुई हिंसा के बाद से दिल्ली पुलिस ने किसानों के धरनास्थल के आसपास भारी किलेबंदी कर दी थी. इसके लिए बैरिकेड्स के साथ-साथ कंटीले तार लगाए गए थे और सड़क पर लोहे की बड़ी-बड़ी कीलों को गाड़ा गया था. इसके अलावा पुलिस ने रास्ते में गड्ढे भी खोद दिए थे. लेकिन गाजीपुर में पुलिस की बाड़बंदी और किलेबंदी को जनता रौंदती हुई नजर आई. बैरीकेड्स गिरे हुए हैं और तारों को रौंदते हुए लोग आ-जा रहे थे.

सोमवार को गाजीपुर में हवा काफी तेज चल रही थी. इसने वहां लगे किसानों के टेंट उड़ रहे थे. उड़ रहे और उजड़ गए टेंटों को संभाल रहे बलबीर सिंह उत्तराखंड के गदरपुर से आए हैं. उन्होंने बताया कि सोमवार को रूद्रपुर में किसान महापंचायचत आयोजित की गई है. इसके बाद वहां से बड़ी संख्या में लोग गाजीपुर आएंगे, उन्हीं लोगों के लिए टेंटों को अब नए सिरे से लगा रहे हैं, ताकि उस पर तेज हवा की भी असर कम हो.
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