एएमयू : ड्यूटी का भार झेल रहे जूनियर डॉक्टर्स के मानसिक स्वास्थ्य पर असर
देश की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटियों में शुमार अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के जूनियर डॉक्टर ओवरटाइम ड्यूटी की वजह से मानसिक रूप से परेशान है.
नया बैच न आने की वजह से उन्हें ज्यादा ड्यूटी करना पड़ रहा है साथ ही कोरोना के बाद से मरीजों की संख्या भी बढ़ चुकी है. ऐसे में उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है. जिस कारण बहुत से जूनियर डॉक्टर ड्यूटी छोड़ रहे हैं. इन जूनियर डॉक्टरों की इस पीड़ा को जूनियर डॉक्टर एसोसिएशन ने वाइस चांसलर को एक पत्र लिखकर उनकी मानसिक हालत के बारे में बताया है.
पत्र मैं लिखा गया है कि ज्यादा ड्यूटी करने की वजह से बहुत से जूनियर डॉक्टर मानसिक रूप से परेशान हैं. कुछ न तो ड्यूटी करना ही छोड़ दिया है. और बहुत से फोन नहीं उठा रहे हैं. इसका सबसे बड़ा कारण फ्रैस का जॉइन न होना है.
रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन में ने पत्र में संबंधित अथॉरिटी से इससे पहले कि देर हो जाए तुरंत इसका कुछ ना कुछ हल निकालने के लिए कहा है. साथ ही गुजारिश की है कि इस बारे में स्वास्थ्य मंत्रालय और प्रधानमंत्री ऑफिस को भी आगाह किया जाए. और नीट 2021 की परीक्षा के परिणाम घोषित किए जाएं जिससे इस स्थिति को सुधारा जा सके.
डॉ सैयद फैजान ने अपने टि्वटर अकाउंट से रेजिडेंट डॉक्टर एसोसिएशन के पत्र को साझा करते हुए लिखा है एएमयू में जूनियर डॉक्टर 36 से 38 घंटे ड्यूटी कर रहे हैं. जिससे वे मानसिक रूप से बीमार हो चुके हैं. जिस कारण कुछ दवाई ले रहे हैं और कुछ ड्यूटी छोड़ चुके हैं.
Junior Doctors of AMU are facing #psychiatric illness due to 36-38hours of duties.
— Dr Syed Faizan Ahmad (@drsfaizanahmad) September 21, 2021
Similar problem are facing by JRs of other medical colleges.
- Some are taking Anti Anxiety Drugs , some Drs left out their duties, some are surviving anyhow#MediaAttention pic.twitter.com/5RVLIGE9cZ
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के जूनियर डॉक्टर रेजिडेंस एसोसिएशन के महासचिव डॉक्टर मोहम्मद खलफ सबा से एशियाविल ने बातचीत की.
डॉक्टर खलफ सबा ने मुझे बताया, “जो रेजिडेंस डॉक्टर हैं उनकी संख्या कम होने की वजह से उन्हें ज्यादा समय ड्यूटी करना पड़ रहा है. इसका कारण है कि जो हमारा जूनियर बैच आना था वह नहीं आया. उसका तो रिजल्ट भी नहीं आया क्योंकि एग्जाम टाइम पर नहीं हुए. अब चाहे उस में कोरोना का कारण हो या कुछ और हो इस वजह से एक बैच ऑलरेडी लेट है. तो टोटल नंबर ऑफ वर्किंग रेजिडेंस कम है और मरीजों का लोड पहले से ज्यादा है. इससे उनकी पर्सनल लाइफ का जो बैलेंस है वह ऑलमोस्ट डिस्टर्ब हो चुका है. इससे उनकी मेंटल कंडीशन पूरी तरह सही नहीं है. इसी वजह से प्रॉब्लम आ रही है. इसके सलूशन के लिए हमने वाइस चांसलर साहब को लेटर लिखा है. क्योंकि अगर थोड़ा जूनियर रेजिडेंट आ जाएंगे वर्किंग रेजिडेंस बढ़ेंगे तो कुछ सुधार हो सकता है. बाकी अभी इसमें हम डिपार्टमेंट ऑफ साइकोटिक्स से भी बात कर रहे हैं. लेकिन जब तक न्यू बैच नहीं आ जाता है तब तक परेशानी है.”
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