मध्य प्रदेश : जय श्रीराम के नारे लगाती भीड़ ने तीन महीने के बच्चे का पालना तोड़ दिया
बीते साल के अंतिम हफ्ते में इंदौर के चंदनखेड़ी गांव में अयोध्या के राम मंदिर के लिए चंदा जुटाने के अभियान के दौरान हुई सांप्रदायिक हिंसा की फैक्ट फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट का दावा.
मध्य प्रदेश के तीन जिलों उज्जैन, इंदौर और मंदसौर में बीते साल के अंतिम दिनों में सांप्रदायिक हिंसा हुई थी. हिंसा अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के लिए चंदा जुटाने के लिए आयोजित रैली के दौरान हुई. इन तीनों जगहों पर सांप्रदायिक हिंसा का पैटर्न एक ही था. रैली में शामिल लोगों ने मुस्लिम बहुल इलाकों या मस्जिदों के सामने जाकर उत्तेजक नारे लगाए. प्रतिरोध करने पर हिंसा भड़क उठी. उपद्रवियों ने इस दौरान लोगों के घरों पर लगे इस्लामिक झंडों को उतारकर भगवा झंडा फहरा दिया.

एमपी की इन सांप्रदायिक घटनाओं की मीडिया में ज्यादा जगह नहीं मिली थी. इस वजह से इन हिंसाओं को लेकर बहुत सी बातें सामने नहीं आ पाई थीं. लेकिन कुछ स्वतंत्र सामाजिक कार्यकर्ताओं, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और वकीलों की एक फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने सांप्रदायिक हिंसा प्रभावित इंदौर के चंदनखेड़ी गांव का दौरा किया. इस कमेटी में मानवाधिकार कार्यकर्ता मेधा पाटेकर, सुप्रीम कोर्ट के वकील एहतेशाम हाशमी आदि शामिल थे. इस टीम ने 6 जनवरी को चंदनखेड़ी का दौरा किया था. यहां पर 29 दिसंबर को हिंसा हुई थी.
नई जानकारियां
इस टीम ने अपनी रिपोर्ट में बहुत सी नई जानकारियां दी हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि चंदनखेड़ी गांव में करीब 490 परिवार मुसलमानों के, 4 परिवार दलितों के और एक परिवार चौधरी का है. कमेटी ने गांव के पूर्व सरपंचों, वर्तमान सरपंच, बुजुर्गों, महिलाओं और नौजवानों से बात की. टीम ने गांव के लोगों के पास मौजूद घटना के वीडियो भी देखे.
इस टीम ने इंदौर के एमवाई अस्पताल में भर्ती कुछ घायलों से भी मिलने की कोशिश की. लेकिन टीम के पहुंचने से पहले ही उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया था. टीम का कहना है कि इस यात्रा के दौरान पुलिस और प्रशासन के लोग उनके साथ बने रहे. टीम ने जब देपालपुर के शासकीय विश्राम घर में कुछ स्थानीय लोगों और पत्रकारों को बात करने के लिए बुलाया तो प्रशासन ने वहां अपना ताला लगवा दिया.
टीम ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि चंदनखेड़ी के मुस्लिमबाहुल्य गांव होने के बाद भी गांव में रहने वाले हिंदुओं और आसपास के धर्माट, कनवासा और रुखदया जैसे गांवों के लोगों के साथ उनके संबंध काफी सौहार्दपूर्ण रहे हैं. वहां पर कभी भी कोई सांप्रदायिक हिंसा नहीं हुई.

टीम ने रिपोर्ट में कहा है कि 29 दिसंबर को चंदा जुटाने के लिए निकाली गई रैली में धर्माट, बड़ोदिया, कनवासा और रुद्रारव्या के हिंदू शामिल थे. चंदनखेड़ी के लोगों ने टीम को बताया कि उन्हें इस रैली के बारे में पहले से कोई अधिकृत जानकारी नहीं थी और रैली के साथ पुलिस के लोग चल रहे थे.
कोई विरोध नहीं हुआ
टीम ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि रैली जब गांव में पहुंची तो गांव लोग अपने घरों में ही रहे और किसी तरह का प्रतिवाद नहीं किया. रिपोर्ट में कहा गया है कि रैली में शामिल लोगों ने आपत्तिजनक टिप्पणियां की और गालियां दीं. लेकिन गांव में कोई बवाल नहीं हुआ. लेकिन रैली में शामिल कुछ लोगों ने गांव के बाहर स्थित ईदगाह की मीनार को तलवार से तोड़ने का प्रयास किया. मीनार तोड़ने का प्रयास कर रहे तीन युवाओं को पुलिस ने नीते उतारा. इनमें से दो गिरफ्तार किए गए और एक फरार हो गया.
टीम को ग्रामीणों ने बताया है कि रैली में शामिल लोग अपने हाथ में सरिया, दांडिया और तलवारें लिए हुए थे. कुछ के पास केरोसिन या डीजल भी था. रिपोर्ट के मुताबिक गांव वालों के पास मौजूद वीडियो से भी यह बात साबित होती है.
टीम ने बीजेपी के एक स्थानीय नेता से बात की. उन्होंने रैली में शामिल लोगों के पास हथियार होने की बात कही है. लेकिन वीडियो उनके इस दावे को गलत साबित करते हैं.

रिपोर्ट के मुताबिक चंदनखेड़ी गांव के अंत में कादर भाई और अकबर भाई का घर है. उपद्रवियों ने इस घर पर हमला किया. भीड़ ने उनके तीन ट्रैक्टर, दो गाड़ियों (एक जीप), 2 मोटरसाइकिल, कुछ पंखों, टीवी, पंप, कपाट और दरवाजों को तोड़ दिया. भैंस-बकरियों पर भी हमला किया गया. कपाट का सेल्फ तोड़कर उसमें रखा जेवर, नगद राशि आदि को लूटा गया. हमलावरों ने कादर, अकबर और उनके तीन अन्य भाइयों को भी जमकर पीटा. इसमें एक हातम भाई के पैरों में दो गोलियां लगी हैं. उनका इंदौर के सीएचएल अस्पताल में इलाज चल रहा है.
बच्ची का झूला
'जय श्रीराम' का नारा लगा रही उपद्रवियों भीड़ ने कादरभाई के घर की 3 महीने की एक बच्ची का पालना (झूला) भी तोड़ दिया. इसके साथ हीं उनकी रजाइयां और कपड़े भी जलकर राख हो गए.
सीएचएल अस्पताल में भर्ती हातम पटेल ने 'एशियाविल हिंदी' को बताया कि कलेक्टर ने उन्हें 8-9 दिन पहले यहां भर्ती कराया है. उन्होंने बताया कि दवा और इलाज पर आने वाले खर्च को सरकार ही उठा रही है. किसी तरह की धमकी या दवाब के सवाल पर उन्होंने कहा कि उनके साथ अबतक ऐसा कुछ नहीं हुआ है.
वकील एहतेशाम हाशमी से 'एशियाविल हिंदी' ने बात की. उन्होंने बताया कि इन मामलों में जिला प्रशासन, पुलिस और मीडिया की भूमिका पक्षपातपूर्ण है. उन्होंने कहा कि हिंसा के बाद प्रशासन की ओर से अतिक्रमण के नाम घर तोड़ने की कार्रवाई गैर कानूनी है. उन्होंने कहा कि घर तोड़ने का कोई कानून नहीं है. अगर कोई अवैध निर्माण है भी तो उसे हटाने के लिए प्रशासन को नोटिस देना पड़ता है. जवाब और कागजात सही न पाए जाने पर ही अवैध निर्माण हटाया जा सकता है.

उन्होंने बताया कि रविवार को वकीलों की एक टीम इंदौर पहुचेगी. यह टीम उन लोगों से मिलेगी, जिनके घर नाजायज तरीके से तोड़ गए हैं. इसके बाद हाई कोर्ट का रुख करेंगे और अगर जरूरत पड़ी तो सुप्रीम कोर्ट भी जाएंगे.
हाशमी कहते हैं, ''घर तोड़ने की कार्रवाई से सरकार अल्पसंख्यकों को दबाने और उनके मन में डर पैदा करने की कोशिश कर रही. वो चाहती है कि अल्पसंख्यक दूसरे दर्जे के नागरिक बनकर रहें.'' हाशमी ने बताया कि वो रविवार को उज्जैन और मंदसौर का भी दौरा करेंगे.