गुजरात हाईकोर्ट: लव जिहाद कानून पर गुजरात सरकार को झटका, कानून के कुछ प्रावधानों पर लगाई रोक
गुजरात हाई कोर्ट ने गुरुवार को लव जिहाद पर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए राज्य के लव जिहाद कानून की कुछ धाराओं पर रोक लगा दी. इस अधिनियम (एक्ट) को ‘लव जिहाद’ के नाम से जाना जाता है.
अदालत ने प्राथमिकी दर्ज करने पर यह कहते हुए रोक लगा दी है कि यह तब तक नहीं किया जा सकता, जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि लड़की को झूठा या किसी साजिश के तहत फंसाया गया है. अदालत ने गुरुवार को अधिनियम की धारा 3, 4, 4ए, 4बी, 4सी, 5, 6 और 6ए पर रोक लगा दी. गुजरात हाई कोर्ट विवाह के माध्यम से जबरन धर्मांतरण से संबंधित नए कानूनों से जुड़ी दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था. इसमें कानून में नए अधिनियमित संशोधन को चुनौती दी गई थी. अब इन धाराओं पर रोक का मतलब है कि केवल अंतर धार्मिक विवाह के आधार पर किसी के खिलाफ एफआईआर अब दर्ज नहीं हो सकेगी.
गुजरात में लव जिहाद कानून 15 जून को अस्तित्व में आ गया था. इस नए कानून के तहत राज्य में दूसरे धर्म में विवाह के लिए धर्मांतरण पर प्रतिबंध है और इसके तहत जुर्माने तथा सजा का प्रावधान है. इन संशोधनों का मकसद राज्य में 'लव जिहाद' की घटनाओं पर रोक लगाना बताया गया था. इसी नए कानून के खिलाफ पिछले महीने जमीयत उलेमा-ए-हिंद के गुजरात चैप्टर ने एक याचिका दायर की थी और दावा किया था कि इस कानून के कुछ संशोधन असंवैधानिक हैं. साथ ही कहा कि संशोधित कानून में अस्पष्ट शर्तें हैं, जो विवाह के मूल सिद्धांतों के खिलाफ हैं और संविधान के अनुच्छेद 25 में निहित धर्म के प्रचार, आस्था और अभ्यास के अधिकार के खिलाफ हैं.
Gujarat High Court passed an interim order stating that the provisions of the Gujarat Freedom of Religion (Amendment) Act, 2021, will not apply to inter-faith marriages which take place without force, allurement or fraudulent means https://t.co/iQ1ObB8Vvd
— Live Law (@LiveLawIndia) August 19, 2021
इससे पहले मंगलवार को हुई सुनवाई में राज्य सरकार ने हाई कोर्ट के सामने दलील दी थी कि राज्य में 'अंतर्धार्मिक विवाह पर प्रतिबंध' नहीं है लेकिन शादी 'जबरदस्ती धर्मांतरण' का जरिया नहीं बन सकता है.
चीफ जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस बीरेन वैष्णव की डिवीजन पीठ ने कहा कि यह अंतरिम आदेश अनावश्यक उत्पीड़न से लोगों की रक्षा के लिए दिया गया है. चीफ जस्टिस नाथ ने कहा कि हमारा मत है कि अगली सुनवाई तक, गुजरात धार्मिक स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम, 2021 की धारा 3, 4, 4ए से 4सी, 5 और 6 व 6ए के अमल पर रोक रहेगी, क्योंकि विवाह एक व्यक्ति द्वारा किया जाता है.
गुजरात हाईकोर्ट के इस निर्णय पर दिल्ली हाइकोर्ट के एडवोकेट हसानुल हक एशियाविल से बातचीत में कहते हैं, “मेरी राय में, गुजरात हाइकोर्ट का ये अंतरिम आदेश, जो धर्म की स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम, 2021 की विभिन्न धाराओं पर रोक लगाता है, अदालत का एक प्रगतिशील रुख है. क्योंकि ये प्रावधान स्पष्ट रूप से संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत उल्लिखित संवैधानिक गारंटी और मौलिक अधिकारों के खिलाफ हैं जो किसी भी धर्म के प्रचार, उसे मानने और उसका पालन करने का अधिकार सुनिश्चित करते हैं. यह महिलाओं के शादी के लिए चुनने के उन अधिकारों का भी उल्लंघन करता है जो हमारे संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत उन्हें मिले हुए हैं. जैसा कि डॉ. बी.आर. अम्बेडकर और महात्मा गांधी ने कहा था कि किसी भी प्रगतिशील और लोकतांत्रिक समाज में उसकी महिलाएं सुरक्षित और स्वतंत्र होनी चाहिए, और उन्हें किसी भी धार्मिक पूर्वाग्रह से मुक्त होकर अपनी पसंद चुनने का अधिकार होना चाहिए.”
वकील हसानुल हक आगे कहते हैं, “हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि गुजरात न केवल पीएम मोदी का गृह राज्य है, बल्कि अपने तेजी से विकास के लिए भी विश्व प्रसिद्ध है. दूसरी तरफ प्रगतिशील प्रधानमंत्री के गृह राज्य में ऐसा पिछड़ा दिखने वाला कानून असंवैधानिक होने के अलावा अन्यायपूर्ण और विरोधाभासी भी है. साथ ही देश भर के सभी राज्यों विशेष रूप से "योगी" शासित यूपी, जहां लव जिहाद कानून अधिक कड़े व प्राकृतिक न्याय और संवैधानिक सिद्धांतों के खिलाफ हैं, द्वारा इन मामलों में समान दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए.”
बताते चलें कि15 जून को गुजरात में जो लव जिहाद का जो कानून अस्तित्व में आया था, इसमें दस साल तक की जेल की सजा और विवाह में धोखाधड़ी या जबरन धर्म परिवर्तन के लिए अधिकतम 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया. इसे धार्मिक स्वतंत्रता ऐक्ट, 2003 में संशोधन करके लाया गया है. इस विधेयक के अनुसार धर्मांतरित व्यक्ति के माता-पिता, भाई, बहन या उसके रक्त संबंधियों, शादी या गोद लेने के जरिए बने रिश्तेदारों को इस मामले में एफआईआर दर्ज कराने का अधिकार होगा.
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में भी इस कानून के खिलाफ दो अलग अर्जी दाखिल कर कहा गया था कि शादी के लिए धर्म परिवर्तन रोकने के लिए जो कानून बनाए गए हैं वह संविधान के मौलिक अधिकार में दखल देता है और इस आड़ में उन लोगों के साथ अन्याय होगा जो इन गतिविधियों में संलिप्त नहीं हैं. और ये कानून जीवन और लिबर्टी के अधिकार के साथ-साथ किसी को पसंद करने के अधिकार में दखल है.
ध्यान रहे कि उत्तर प्रदेश में 'लव जिहाद' का कानून प्रभावी हो चुका है और हरियाणा, कर्नाटक औऱ कई अन्य बीजेपी शासित राज्यों में भी लव जिहाद पर कानून लाने की कवायद चल रही है.
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